एक सिख RJ ने भारत के कृषि कानूनों का समर्थन करते हुए की ‘मन की बात’ और इसका अंजाम उन्हें भुगतना पड़ा!

एक सिख को कृषि कानूनों के समर्थन की मिली सज़ा!

देश की संसद द्वारा पारित कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर चल रहा तथाकथित किसान आंदोलन अब हद से ज्यादा हिंसक हो चला है। अराजकता फैलाने वाले इन्हीं लोगों ने देश की शान लाल किले पर निशान साहब का झंडा फहरा कर सारी सीमाएं लांघी थी, लेकिन अब ये हिंसा के केवल देश में नहीं बल्कि इसकी गूंज विदेशों से भी सुनाई दे रही है। खालिस्तानी लोग हर उस शख्स की जान के दुश्मन बन गए हैं जो कि कृषि कानूनों के समर्थन में बयान दे रहा है। इन खालिस्तानी आतंकियों का एक ऐसा ही आक्रोश अब न्यूजीलैंड के एक उम्रदराज सिख रेडियो होस्ट के खिलाफ सामने आया है।

न्यूजीलैंड के ऑकलैंड में बतौर रेडियो जॉकी काम कर रहे हरनेक सिंह पर इस बार खालिस्तानी अलगाववादियों और आतंकियों का गुस्सा फूटा है। कहा जा रहा है कि ये हमला धार्मिक कट्टरता फैलाने वालों ने किया था। उन पर धारदार हथियारों से हमला किया गया जिसके चलते वो अभी भी जिंदगी और मौत के बीच जंग लड़ रहे हैं। उन पर ये हमला तब हुआ जब वो अपना रेडियो शो खत्म करके घर लौट रहे थे।

NZ हेराल्ड को दिये गए साक्षात्कार में उन्होनें बताया कि, “फिलहाल मैं ठीक हूँ, मैं खुश हूं। लेकिन मनोवैज्ञानिक रूप से, जब भी मैं [हमले] को याद करता हूँ तो … मेरा परिवार और रिश्तेदार बहुत डर जाते हैं। मेरी पत्नी, बहुत हिम्मत वाली है। वह मुझे समझती है, वह जानती है कि मेरी प्रतिबद्धताएं क्या हैं।”

इस मामले में हरनेक सिंह के साथी बलविंदर सिंह ने कई चौंकाने वाले खुलासे किए हैं। उन्होंने बताया कि हरनेक सिंह पर ये हमला कोई पहली बार नहीं हुआ है। इससे पहले भी उन पर ऐसा ही एक हमला जुलाई 2020 में हो चुका है‌। इन हमलों की वजह ये है कि वो लगातार धार्मिक कट्टरता से इतर लोगों को साथ रहने का संदेश देने के साथ ही सिख समुदाय के उत्थान के लिए प्रयासरत रहते हैं। उनके साथी बताते हैं कि हरनेक सिंह सिर्फ धर्म पर ही बातें नहीं किया करते, बल्कि सिख समुदाय कैसे पीछे छूट रहा है और वो सामाजिक समस्याओं के संभावित निदानों पर भी चर्चा करते हैं।

बलविंदर सिंह ने बताया है कि  हरनेक ने हाल ही में दिल्ली में राजनीतिक रूप से प्रेरित आंदोलन को वापस लेने की अपील की थी, जिसमें तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की माँग की जा रही है।  उन्होंने 26 जनवरी की हिंसा की भी घोर भर्त्सना की थी। खास बात ये भी है कि जब से हरनेक सिंह पर हमला हुआ है तब से उनकी रेडियो कंपनी के लोगों को भी फोन पर हजारों धमकियां मिल रही हैं। ये सारे बिंदु दिखाते हैं कि किसानों के नाम पर चल रहा दिल्ली का आंदोलन असल में हिंसात्मक होने के साथ ही बेहद ही खतरनाक होता जा रहा है।

दिल्ली में हुई हिंसा के बाद तो कुछ खालिस्तानी कट्टरपंथियों के हौसले इतने बुलंद हो गए हैं कि वो अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा जैसे देशों में खालिस्तान के सपोर्ट में नारेबाजी कर रहे हैं और भारतीय के खिलाफ जहर उगल रहे हैं। तथाकथित किसानों का आंदोलन अब केवल हिंसा की प्रयोगशाला बन गया है, जहां आए दिन ऐसी खबरें सुनने को मिलेंगी। देश में तो खालिस्तानी आतंकी ज्यादा उत्पात नहीं मचा पा रहे हैं लेकिन विदेशों में यदि इनके खिलाफ कोई सकारात्मक बात बोलता है तो ये आग बबूला हो जाते है।

हिंसक किसान आंदोलन का इस पूरे प्रकरण का प्रत्यक्ष उदाहरण हरनेक सिंह हैं, जो किसानों को सकारात्मक रास्ते पर ले जाने के साथ ही देश से बाहर होने के बावजूद भारत के हित की बात ही कर रहे थे लेकिन खालिस्तानी आतंकियों को ये बात मंजूर ही नहीं थी तो उन्होंने हरनेक पर जानलेवा हमला कर दिया।

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