कांग्रेस के पूर्व राज्यसभा सांसद और नेता विपक्ष गुलाम नबी आजाद के रिश्ते निजी तौर पर विचारधारा से विपरीत होने के बावजूद विरोधी नेताओं के साथ कितने प्रगाढ़ थे, उसका उदाहरण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का उनके विदाई संबोधन में भावुक होना ही दिखाता है। राजनीति में जमीनी स्तर के नेता आजाद के साथ पीएम ने अपने अनुभवों को याद कर सदन में बैठे प्रत्येक सांसद को भावुक कर दिया। इसके विपरीत देश के पूर्व-राष्ट्रपति हामिद अंसारी के विदाई समारोह में पीएम ने उनकी मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति पर दबे शब्दों में आलोचना की थी, दोनों प्रकरणों से सामने आता है कि पीएम मोदी का रवैया उसी तरह का होता है जैसा कि किसी व्यक्ति का सामाजिक इतिहास हो।
कांग्रेस सांसद गुलाम नबी आजाद और प्रधानमंत्री मोदी के बीच राजनीतिक तल्खियां इतनी ज्यादा हैं कि उसे बयां करना मुश्किल हो सकता है, लेकिन उन दोनों के बीच निजी स्तर पर रिश्ते कितने अधिक प्रगाढ़ हैं वो उन दोनों के ही राज्य सभा में दिए गए संबोधन बताते हैं। पीएम मोदी ने अपने संबोधन में आजाद साहब के साथ अपने रिश्तों का जब उल्लेख किया, तो वो भरी संसद में भावुक हो गये। कश्मीर में आजाद द्वारा किए गए देशहित के कार्यों के लिए पीएम ने उनकी खूब सराहना की। उन्होंने गुलाम नबी आजाद की उस नीति की तरफ सभी का ध्यान आकर्षित किया जोकि वो राजनीति और विचारधाराओं को निजी स्तर पर बिल्कुल ही अलग रखते हैं।
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प्रधानमंत्री के बाद जब गुलाम नबी आजाद ने उनके संबंध में बातें कहीं, वो भी काफी भावुक कर देने वाली थीं। उन्होंने कहा कि जब-जब वो प्रधानमंत्री के पास किसी सकारात्मक कार्य के लिए प्रस्ताव लेकर जाते थे तो प्रधानमंत्री मोदी उनकी बातों को ज्यादा प्राथमिकता देते थे। विपक्षी होने के बावजूद पीएम मोदी और आजाद के बीच के रिश्ते किसी को भी आश्चर्यचकित कर सकते हैं। इस पूरे प्रकरण के बाद लोगों को एक पुराना मामला याद आ गया है, जब देश के पूर्व उप-राष्ट्रपति हामिद अंसारी की संसद से विदाई हुई थी।
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गुलाम नबी आजाद देश हित के लिए काम करने वाले माने जाते हैं, जबकि हामिद अंसारी की स्थिति कुछ विपरीत थीं। हामिद अंसारी को अपने राजनीतिक कार्यकाल में अनेकों प्रतिष्ठित पद मिले थे। अनेक देशों में उन्हें भारत का राजदूत नियुक्त करने के साथ ही विश्वविद्यालयों में कुलपति बनाया गया और उप-राष्ट्रपति पद पर बिठाया गया। उन्हें उनकी क्षमता के अनुसार स्थान मिला, लेकिन हामिद अंसारी संवैधानिक पदों पर रहने के बावजूद अपनी कांग्रेसी मुस्लिम तुष्टीकरण वाली विचारधारा छोड़ ही नहीं पाए। इसी तरह ईरान में बतौर राजदूत उन्होंने खुफिया एजेंसी रॉ तक पर सवाल उठा दिए थे। उन्होंने बतौर उप-राष्ट्रपति मोदी सरकार के बिलों को भी राज्यसभा में पास करने में खूब अड़ंगा डाला। यही कारण था कि उन्होंने अपने आखिरी संबोधन में भी मुस्लिमों के प्रति रोना भी रोया था।
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इसके चलते प्रधानमंत्री ने उनकी आलोचना सांकेतिक शब्दों में की थी। पीएम ने संसदीय भाषा में ही उनके सारे कुकर्मों को उजागर कर दिया था। पीएम मोदी ने हामिद अंसारी के रवैए को लेकर कहा था, “…कुछ छटपटाहट रही होगी भीतर आपके अंदर भी…लेकिन आज के बाद शायद वो संकट भी नहीं रहेगा..मुक्ति का आनंद भी रहेगा..आपकी मूलभूत जो सोच रही होगी उसके अनुसार कार्य । करने का, सोचने का, मार्ग बताने का अवसर भी मिलेगा।” साफ शब्दों में कहें तो पीएम ने व्यंग्यात्मक ढंग से शाब्दिक तमाचा जड़ा था।
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पीएम मोदी का गुलाम नबी आजाद और हामिद अंसारी के प्रति रवैया काफी विपरीत दिखाई देता है। ये दिखाता है कि जो व्यक्ति जमीन से जुड़ा हुआ होता है और देश हित के लिए राजनीति को किनारे कर देता है तो वो विपक्षी होने के बावजूद गुलाम नबी आजाद की तरह प्रधानमंत्री का प्रिय हो जाता है। वहीं, जो व्यक्ति संवैधानिक पदों पर रहकर भी राजनीति और अपने धर्म तक ही हामिद अंसारी की तरह सीमित रह जाता है, तो उस प्रवृत्ति के व्यक्ति को पीएम मोदी अपने शब्दों में सटीक जवाब देते हैं और वैसा ही व्यवहार करते हैं।
ये दोनों ही प्रकरण इस बात का पर्याय हैं कि प्रधानमंत्री मोदी देशहित के लिए सकारात्मक सोच रखने वालों के साथ दलगत राजनीति से ऊपर उठकर आचरण रखते हैं। इसलिए उनके लिए वही लोग प्रिय होते हैं, जो संवैधानिक मूल्यों की रक्षा करते हुए देश हित के विषय में सोचते हैं।