सरकार इन दिनों एक के बाद एक ताबड़तोड़ सुधारवादी कदम उठा रही है। कृषि कानून पर जहां वह अपने पक्ष पे अडिग है, तो वहीं टीकाकरण अभियान और भारत की छवि के विषय पर भी भारत आक्रामक रुख अपनाए हुए है। अब ये खबर आ रही है कि जल्द ही भारत मणिपुर राज्य से अफस्पा अधिनियम हटवा सकती है।
हाल ही में मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बिरेन सिंह ने विधानसभा में प्रश्नोत्तरी के दौरान बताया कि उनकी केंद्र सरकार से निरंतर बातचीत जारी है कि अफस्पा को कब और कैसे मणिपुर से हटाना है। यदि ये सच में लागू होता है तो ये इस बात का परिचायक है कि कैसे भाजपा की केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार ने इस समस्या पर विजय प्राप्त की है।
परन्तु यह अफस्पा है क्या? आखिर ऐसा क्या है इस अधिनियम में जिसके कारण लोग इसे हटाने की मांग करते आए हैं। दरअसल, अफस्पा यानी Armed Forces Special Powers Act एक विशेष अधिनियम है, जिसके अंतर्गत सेना को कुछ अहम क्षेत्रों में आतंकियों से निपटने के लिए विशेष ताकतें प्राप्त होती है। यहां शासन भी इनपर दबाव नहीं डाल सकता। यह इस समय जम्मू कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश, असम, नागालैंड, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में लागू है ।
तो इससे समस्या क्या है? दरअसल, सेना और अन्य पैरामिलिट्री फोर्सेज पर इस अधिनियम के दुरुपयोग के आरोप लगे हैं, और इसलिए अफस्पा को हटाए जाने की मांग पिछले दो दशकों से व्याप्त है।
लेकिन अब भाजपा शायद इसी दिशा में आगे बढ़ रही है, क्योंकि उनके पास एक ठोस कारण भी है – मणिपुर में घटता उग्रवाद। 2016 में उग्रवाद से संबंधित 233 मामले सामने आए थे, वही अगले वर्ष 167 और 2018 में 127 तक घट गए।
पिछले वर्ष ही बिरेन सिंह ने कहा था कि मणिपुर में स्थिति सुधर रही है, हालांकि अभी अफस्पा हटाने का समय नहीं आया है। लेकिन जिस तरह से मणिपुर के मुख्यमंत्री ने इस वर्ष ये संकेत दिए हैं कि वे केंद्र सरकार से अफस्पा को हटाने के विषय पर बातचीत कर रहे हैं, उससे स्पष्ट है कि अफस्पा को हटाने के लिए से कितने प्रतिबद्ध है। यह ना सिर्फ इस बात का सूचक है कि पूर्वोत्तर, विशेषकर मणिपुर में भाजपा उग्रवाद को नियंत्रित करने में सफल रही है, बल्कि यह भी कि अब पूर्वोत्तर में भी खुशहाली का मौसम आ चुका है।