Amnesty इंडिया एक मानवीय संगठन है जो काले धन को सफ़ेद भी करता है

NGO के नाम पर गोरख धंधा!

एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भारत में जब अपना बोरिया बिस्तर समेटा, तो कई वामपंथी इस निर्णय को अत्याचारी बताते हुए केंद्र सरकार को घेरने लगे, परंतु अब ऐसा प्रतीत होता है कि एमनेस्टी इंटरनेशनल ऐसे ही नहीं भागी थी, क्योंकि प्रवर्तन निदेशालय ने इस संगठन पर पैसों की धांधली का आरोप लगाया है।

हाल ही में एमनेस्टी इंडिया के करीब 17.66 करोड़ रुपये की चल संपत्ति [moveable properties] को प्रवर्तन निदेशालय द्वारा अटैच किया गया है। प्रवर्तन निदेशालय ने यह निर्णय एमनेस्टी इंडिया द्वारा मनी लौंडरिंग से संबंधित एक मामले के चलते लिया है।

प्रवर्तन निदेशालय ने प्रेस को जारी अपने बयान में कहा, “हमने एक अस्थायी ऑर्डर जारी किया है, जिसमें Prevention of Money Laundering Act (PMLA) के अंतर्गत हम Amnesty International India Pvt Ltd (AIIPL) और Indians for Amnesty International Trust (IAIT) के बैंक अकाउंट जब्त कर रहे हैं। 2011 से 2012 तक Amnesty International India Foundation Trust (AIIFT) को FCRA के अंतर्गत विदेशी फंडिंग की स्वीकृति मिली थी, परंतु प्रतिकूल जानकारी मिलने के कारण ये स्वीकृति वापिस लेनी पड़ी।”

तो फिर ऐसा क्या किया एमनेस्टी इंटेरनेशनल ने जो उन्हे भारत से अपना बोरिया बिस्तर समेटना पड़ा? पीआईबी द्वारा जारी बयान का शीर्षक ही सरकार के इरादे बताने के लिए पर्याप्त था, “मानवाधिकारों की आड़ में देश के कानून नहीं तोड़े जा सकते।  केंद्र सरकार के बयान के अनुसार, “एमनेस्टी इंटेरनेशनल ने FCRA के अंतर्गत केवल एक बार स्वीकृति पाई थी, और वो भी 20 वर्ष पहले 2000 में। तब से आज तक Amnesty International को एक बार भी एफ़सीआरए से स्वीकृति नहीं पाया गया है। लेकिन इस अधिनियम से बचने के लिए एमनेस्टी के यूके विभाग ने भारत में पंजीकृत चार संगठनों को भारी मात्रा में पैसे भेजे, जिसे उन्होंने विदेशी निवेश की संज्ञा दी। काफी धनराशि एफ़सीआरए के अंतर्गत गृह मंत्रालय की स्वीकृति के बिना भेजे गए, और ये देश के कानून के विरुद्ध भेजा गया था”

इससे पहले भी Amnesty International को इन्ही कारणों से भारत में अपनी गतिविधियों पर रोक लगानी पड़ी थी, क्योंकि तत्कालीन यूपीए सरकार ने लंदन में स्थित मुख्य कार्यालय से फंड की आपूर्ति पर रोक लगाई थी। 2006 से दो बार ऐसी याचिकाओं को निरस्त किया गया था। वित्तीय अनियमितताओं के कारण प्रवर्तन निदेशालय ने 2018 में बेंगलुरु स्थित एमनेस्टी के कार्यालय पर छापा भी डाला था, जिसके बारे में TFI पोस्ट ने अपनी पिछली पोस्ट में बताया था।

एमनेस्टी इंडिया अब चाहे जितना रोना रो ले, परंतु प्रवर्तन निदेशालय द्वारा संपत्ति जब्त करना इस बात का परिचायक है कि अब मानवाधिकार के नाम पर भारतीय संसाधनों की घपलेबाजी अब और नहीं चलेगी। जब से टूलकिट गिरोह का खुलासा हुआ है, केंद्र सरकार हर उस ताकत का मुंहतोड़ जवाब दे रही है, और अब ठप पड़ चुकी एमनेस्टी इंडिया भी कोई अपवाद नहीं।

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