अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के सत्ता संभालने के बाद से ही चीन भारत को खुश करने के लिए कई कदम उठा चुका है। उदाहरण के लिए हाल ही में चीन ने आधिकारिक तौर पर इस बात की पुष्टि की कि गलवान घाटी में उसके भी चार सैनिकों की मौत हुई थी, जिन्हें अब चीनी सरकार अब सम्मानित किया जा रहा है। यहाँ पर बेशक चीनी आंकड़ों पर संदेह किया जा सकता है, लेकिन इतना तय हो गया कि भारत से भिड़ने के चलते चीन को भी अच्छा खासा नुकसान सहना पड़ा था। इतना ही नहीं, बाइडन के आने के बाद चीन ने तिब्बत बॉर्डर पर भी तनाव को कम करने की कोशिश की है। Disengagement के तहत चीन ने अब तक करीब 5 हज़ार से 10 हज़ार सैनिकों को बॉर्डर से पीछे बुला लिया है।
In all 5000-10000 Chinese PLA soldiers have left Pangong lake. More Chinese soldiers were present in South Bank of pangong lake, than in north bank.
— Sidhant Sibal (@sidhant) February 19, 2021
हालांकि, ऐसा नहीं है कि बाइडन के आने के बाद चीन ने अपनी आक्रामक सुरक्षा नीति में कोई बदलाव किया है, बल्कि दक्षिण चीन सागर और पूर्वी चीन सागर में चीन ने अपनी आक्रामकता को कई गुना बढ़ा दिया है। बाइडन के सत्ता में आने के बाद चीन ने लगातार ताइवान को धमकाया है और इसके साथ ही उसने अपनी कोस्टगार्ड को “दुश्मनों” पर ओपन फायर करने के लिए भी छूट दे दी है। इतना ही नहीं, उसने जापान के सेनकाकु द्वीपों पर अपने दावे को मजबूत करने के लिए और ज़्यादा उकसावे भरे कदम चलना शुरू कर दिया है। पिछले सप्ताह चीनी कोस्ट गार्ड की दो vessels सेनकाकु द्वीपों के आसपास मंडराती हुई दिखाई दी थी, जहां उन्होंने एक जापानी फिशिंग बोट के खिलाफ आक्रामकता दिखाई दी। हालांकि, बाद में उन्हें जापानी कोस्ट गार्ड द्वारा बाहर खदेड़ दिया गया था।
इससे यह स्पष्ट होता है कि चीन अब अमेरिका और भारत के साथ तनाव को कम कर अपना सारा ध्यान दक्षिण चीन सागर और पूर्वी चीनी सागर पर केन्द्रित करना चाहता है। ट्रम्प के जाने के बाद पहले ही अमेरिका की ओर से चीन-विरोधी आक्रामकता में भारी कमी देखने को मिली है। बाइडन प्रशासन के लिए रूस सबसे बड़ा खतरा है, ना कि चीन, ऐसे में चीन के खिलाफ अमेरिका के नर्म रुख का पूरा-पूरा फायदा उठाकर चीन अब सेनकाकु द्वीप विवाद को भड़काना चाहता है। इसके साथ ही वह दक्षिण चीन सागर पर दोबारा अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता है, जो कभी ट्रम्प के समय कम होता दिखाई दे रहा था।
ट्रम्प ने अपने चार सालों के कार्यकाल में भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर Indo-Pacific क्षेत्र में चीनी प्रभाव को खत्म करने के Quad को अपना भरपूर समर्थन दिया। ट्रम्प के समय जापान के नेतृत्व में Quad काफी हद तक चीन की नाक में दम करने में सफल हुआ था, लेकिन अब White House में कमजोर बाइडन के आने के साथ ही Quad में अमेरिका की भूमिका कमजोर पड़ती जा रही है। ऐसा इसलिए क्योंकि बाइडन प्रशासन चीन को अपने लिए खतरा मानने से ही भागता दिखाई दे रहा है।
Quad में अमेरिका की सक्रिय भूमिका ना होने की स्थिति में जापान की स्थिति कमजोर होगी और फिलहाल चीन वही चाहता है। चीन अभी चाहता है कि भारत के साथ वह अपने सभी विवाद खत्म कर अपना सारा ध्यान पूर्वी चीन सागर पर फोकस कर सके। हालांकि, पीएम मोदी के नेतृत्व में भारत अब चीन के खिलाफ नर्म रुख तो नहीं दिखाने वाला। भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर यह पहले ही साफ कर चुके हैं कि गलवान घाटी विवाद के बाद अब चीन के साथ दोबारा पहले जैसा बर्ताव नहीं किया जा सकता। इसके साथ ही भारतीय सेना और भारतीय सरकार पूरे तिब्बत बॉर्डर पर अपनी स्थिति को और मजबूत करने का काम जारी किए हुए है। ऐसे में भारत की ओर से शायद ही चीन को कोई राहत मिले, जो चीन के मंसूबों पर पानी फेर सकता है।
जिस प्रकार भारत ने पिछले कुछ महीनों में दक्षिण चीन सागर में अपनी सक्रियता को बढ़ाया है, उसने भी चीन को चिंतित कर दिया है। गलवान घाटी विवाद के दौरान भी भारत ने दक्षिण चीन सागर में अपने एक युद्धपोत को तैनात किया था। ऐसे में अब चीन के इस नर्म रुख के बाद भी शायद ही भारत चीन को कोई राहत प्रदान करे। ऐसे में दक्षिण चीन सागर और सेनकाकु द्वीपों पर अपने प्रभाव को बढ़ाने की मंशा से बनाई गयी चीन की यह रणनीति भारत के कड़े रुख के बाद फुस्स साबित हो सकती है।