ऑस्ट्रेलिया ने दुनिया को बताया: लड़ाई में कंगारू का कद नहीं, उसकी बहादुरी मायने रखती है

ऑस्ट्रेलिया

वैश्विक ताकतों ने कभी भी ऑस्ट्रेलिया की ऊंचा दर्जा नहीं दिया है। उनके लिए ऑस्ट्रेलिया एक ऐसा देश है, जो ज्यादा शक्तिशाली नहीं हो सकता। ऑस्ट्रेलिया अपने निरंतर प्रगति और अपने उदार स्वभाव के लिए विश्व भर में मशहूर रहा है, परंतु पिछले एक वर्ष में ऑस्ट्रेलिया के कद और काठी में आकाश पाताल का अंतर आ चुका है।

वो कैसे? आजकल ऑस्ट्रेलिया पहले की भांति सबसे सामंजस्य नहीं बैठाता, बल्कि अपने स्वाभिमान के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है। कहां वह भारत जैसी उभरती शक्तियों के साथ नए रक्षा संबंध स्थापित करने को उत्सुक है, तो वहीं दूसरी ओर वह चीन की गुंडई को मुंहतोड़ जवाब भी देता है और फेसबुक जैसी बिग टेक कंपनियों को ठेंगा भी दिखाता है, क्योंकि आज के ऑस्ट्रेलिया के  लिए राष्ट्र हित से बढ़कर कुछ नहीं।

लेकिन यह सब शुरू कैसे हुआ? इसके लिए हमें जाना होगा पिछले वर्ष अप्रैल में, जब चीन ने अनावश्यक टैरिफ ऑस्ट्रेलिया पर थोपे थे। ये इसलिए हुआ क्योंकि ऑस्ट्रेलिया ने वुहान वायरस के फैलने में चीन की भूमिका को लेकर WHO से निष्पक्ष जांच कराने की मांग की थी।

बस, इतनी सी बात पर चीन इतना बिदक गया कि उसने ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध ताबड़तोड़ प्रतिबंध लगाने शुरू कर दिए। ऑस्ट्रेलिया के जौ, कोयला, गेहूं और वाइन पर चीन ने अप्रत्याशित आयात शुल्क यानी टैरिफ बढ़ा दिया ।

लेकिन उल्टे चीन को इस प्रतिबंध से जबरदस्त नुकसान हुआ। ऑस्ट्रेलिया को कोई खास नुकसान नहीं हुआ, जबकि चीन को वित्तीय संकट के साथ साथ बिजली संकट का भी सामना करना पड़ा। इसके साथ ही चीन को हो रहे आर्थिक नुकसान का कोरिया और जापान जैसे देशों ने भरपूर फायदा भी उठाया।

इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया ने रक्षात्मक मोर्चे पर भी चीन की हेकड़ी को मुंहतोड़ जवाब दिया। इंडो पैसिफिक क्षेत्र को चीन के चंगुल से मुक्त रखने के लिए ऑस्ट्रेलिया ने भारत और जापान सहित कई ताकतवर देशों के साथ मजबूत संबंध स्थापित किए। इसी कारण से इंडो पैसिफिक क्षेत्र में चीन को मुंहतोड़ जवाब देने की मुहिम में अब जर्मनी और फ्रांस जैसे देश भी इच्छुक है।

लेकिन कुछ लोग तो जैसे ठानके आए थे कि उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेइज्ज़ती करवानी है, और फेसबुक ने यही किया। हाल ही में  ऑस्ट्रेलियाई सरकार द्वारा प्रस्तावित एक कानून के तहत बिग टेक कंपनियों को अपनी कमाई का एक हिस्सा ऑस्ट्रेलिया के Content creators को भी देना होगा। इसके खिलाफ अपना रोष प्रकट करते हुए हाल ही में फेसबुक ने अपने platform पर किसी भी न्यूज़ वेबसाइट का लिंक शेयर करने पर ही प्रतिबंध लगा दिया।

ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने चेतावनी दी कि अन्य देश भी समाचार साझा करने के बदले डिजिटल कंपनियों से शुल्क वसूलने के उनकी सरकार के कदमों को अपना सकते हैं।

मॉरिसन ने कहा “मैंने फेसबुक विवाद के बारे में गुरुवार को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात की है। हम ब्रिटेन, कनाडा और फ्रांस के नेताओं के साथ भी ऑस्ट्रेलिया के इस प्रस्तावित कानून के बारे में बात कर रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया जो कर रहा है उसमें कई देशों की दिलचस्पी है। इसलिए मैं फेसबुक को आमंत्रित करता हूं कि वह रचनात्मक तरीके से बातचीत करें, क्योंकि वे जानते हैं कि ऑस्ट्रेलिया जो करने जा रहा है उसका अनुसरण कई देश कर सकते हैं”।

इतना सामने आते ही फेसबुक ने अपना प्रतिबंध तुरंत हटा लिया, जिससे स्पष्ट होता है कि नया ऑस्ट्रेलिया अपने हितों के लिए किस हद तक जा सकता है। उसे न चीन जैसे तानाशाही देश की परवाह है और न ही बिग टेक कम्पनियों की गुंडई की, क्योंकि ऑस्ट्रेलिया के लिए अब राष्ट्र हित से बढ़कर कुछ नहीं।

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