बाइडन ने अपने चुनावी प्रचार के दौरान रूस को अमेरिका का सबसे बड़ा दुश्मन बताया था। अक्टूबर में उन्होंने एक बयान देते हुए कहा था “मुझे लगता है कि अमेरिका और उसके साथियों की सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा रूस है।” इतना ही नहीं, राष्ट्रपति बनने के बाद वे अपने कई फैसलों से यह स्पष्ट भी कर चुके हैं। वे न सिर्फ चीन के खिलाफ नर्म रुख अपनाए हुए हैं, बल्कि वे रूस के खिलाफ कई आक्रामक कदम उठा चुके हैं। बाइडन पहले ही पुतिन विरोधी नवनली की रिहाई के पक्ष में आवाज़ उठाकर पुतिन को ललकार चुके हैं। हालांकि, अब उन्होंने एक नए फैसले में नॉर्वे में अपने 4 बी-1 Bombers को तैनात करने का फैसला लिया है, जो सीधे-सीधे रूस को एक बड़ी चुनौती है। ऐसे में बाइडन रूस के साथ तनाव को बढ़ाकर दोबारा शीत-युद्ध की स्थिति को पैदा करना चाहते हैं।
वर्ष 1949 में अमेरिका के नेतृत्व में सोवियत का मुक़ाबला करने के लिए North Atlantic Treaty Organization यानि NATO की स्थापना हुई थी, जिसमें अधिकतर यूरोपीय देश भी अमेरिका के पक्ष में आए। उसके बाद शीत युद्ध का दौरा चला जिसके नतीजे में वर्ष 1991 में सोवियत कई भागों में टूट गया और आज के रूस की स्थापना हुई। हालांकि, इसके बावजूद भी NATO विश्व की सुरक्षा नीति में एक बड़ी भूमिका निभाता आया है।
हालांकि, आज के नए भू-राजनीतिक समीकरणों के बीच NATO की महत्ता कम होती जा रही है। यूरोपीय देश जैसे जर्मनी और फ्रांस की रूस के साथ बढ़ती नज़दीकियों के कारण अमेरिका की रूस नीति को बड़ा झटका लगा है। इसके साथ ही फ्रांस के नेतृत्व में यूरोप के देश अब “रणनीतिक स्वतंत्रता” की बात कर रहे हैं, जिसका अर्थ है कि यूरोप अब अपनी विदेश नीति अमेरिका के निर्देशानुसार नहीं, बल्कि अपने हितों को सबसे आगे रखकर तय करेगा। अमेरिका में बाइडन प्रशासन को इससे सबसे ज़्यादा तकलीफ़ है, जो आज की भू-राजनीति की सच्चाई को नकारते हुए आज भी रूस के खिलाफ पारंपरिक विचारधारा को बल दे रहे हैं।
दूसरी ओर यूरोप के नेता अब Democrats की रूस-विरोधी नीति को अपना समर्थन देने में कतराते दिखाई दे रहे हैं। उदाहरण के लिए मर्कल के बाद Christian Democratic Union के नेता बने Armin Laschet अपने रूस के पक्ष में दिये गए बयानों के लिए चर्चित हैं, और अगर वे मर्कल के बाद जर्मनी के चांसलर बनते हैं तो जर्मनी और यूरोप की रूस नीति में बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा जो कि अमेरिका की रूस नीति से एकदम अलग होगी। जर्मनी पहले ही रूस के साथ मिलकर Nord Stream 2 गैस पाइपलाइन पर काम कर रहा है और अगर Armin Laschet सत्ता में आते हैं तो वे रूस के साथ अपने सम्बन्धों को और मजबूत करेंगे।
दूसरी ओर फ्रांस और तुर्की के खराब होते सम्बन्धों के कारण पहले ही NATO में दो भाग बन चुके हैं जो तेजी से NATO की महत्ता को खत्म करते जा रहा है। फ्रांस पहले ही Indo-Pacific में NATO की किसी भी भूमिका को खारिज कर चुका है और ऐसे में फ्रांस भी NATO को नकारता नज़र आ रहा है। ऐसे में बाइडन के पास NATO और अपने साथियों को एकजुट रखने का एक ही तरीका है और वह है रूस के साथ तनाव को बढ़ाना! इसीलिए वे नॉर्वे में अपने 4 bombers और करीब 200 सैनिकों को तैनात कर रहे हैं ताकि आर्कटिक में रूसी आक्रामकता का मुक़ाबला किया जाये! हालांकि, बाइडन का यह कदम NATO की अंदरूनी कलह को और ज़्यादा भड़का देगा!