अरब देशों के खिलाफ अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के सख्त रुख के बाद अब UAE ने अपने विदेश मंत्री अनवर गरगश को उनके पद से हटा दिया है। अनवर वर्ष 2008 से UAE के विदेश मंत्री थे और पिछले वर्ष उन्हीं के नेतृत्व में UAE ने इज़रायल के साथ ऐतिहासिक Abraham Accords पर हस्ताक्षर किए थे। ऐसे में UAE ने अपने इस कदम से बाइडन प्रशासन को संकेत देने की कोशिश की है कि वह बाइडन की नई Middle East नीति के मुताबिक अपने आप को ढालने के लिए तैयार है। हालांकि, इसी बीच UAE और सऊदी अरब ने कुछ ऐसे कदम भी उठाए हैं, जो बाइडन के लिए सख्त संदेश के रूप में देखे जा सकते हैं। स्पष्ट है कि बाइडन के अरब-विरोधी रुख को देखते हुए अब इस्लामिक विश्व के दो सबसे बड़े देश यानि सऊदी अरब और UAE ने एक रणनीति के तहत अमेरिका का मुक़ाबला करने की तैयारी पूरी कर ली है।
बाइडन ने सत्ता संभालने के बाद जिस प्रकार UAE और सऊदी अरब के खिलाफ एक के बाद एक कदम उठाए हैं, उसने अरब देशों को चिंता में डाल दिया है। बाइडन प्रशासन ने एक तरफ जहां UAE को होने वाली F-35 की प्रस्तावित सेल पर रोक लगा दी, तो वहीं यमन के सऊदी अरब विरोधी हऊथी उग्रवादियों से आतंकियों का दर्जा भी वापस ले लिया। उसके बाद सऊदी अरब ने UN में एक बयान देते हुए यह साफ़ किया कि वे “अब हम भी हाऊथी लड़ाकों को आतंकवादी का दर्जा देना जारी रखेंगे, ताकि हम हाऊथी के खतरे से निपट सकें।” इतना ही नहीं, अमेरिका ने यह भी साफ़ किया है कि वे सऊदी अरब में अब कूटनीतिक वार्ता के लिए MBS से ज़्यादा सऊदी के आधिकारिक राजा किंग सलमान को तवज्जो देंगे, जिससे सऊदी-US के रिश्तों में तनाव बढ़ने की पूरी-पूरी संभावना है।
दूसरी ओर UAE ने भी हाल ही में इज़रायल में अपना एक राजदूत तैनात करने का फैसला लिया है, जिसके बाद UAE ने बाइडन प्रशासन को साफ़ संकेत दिया है कि अरब देश Abraham Accords को लेकर अपनी स्थिति पर टिके हुए हैं। सऊदी-UAE मिलकर बाइडन को मिले-जुले संकेत दे रहे हैं। UAE द्वारा एक ही समय में अपने विदेश मंत्री को हटाना और इज़रायल में अपने राजदूत को तैनात करना दर्शाता है कि अरब देश मिलकर बाइडन प्रशासन के सामने प्रभावशाली स्थिति में आना चाहते हैं। इसी के साथ यूएई और सऊदी अरब इज़रायल को भी यह संदेश देना चाहते हैं कि वे बाइडन के समय में भी इज़रायल के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं।
बाइडन ने सत्ता में आने के बाद इज़रायल के खिलाफ भी कदम उठाए हैं, जिसके कारण यहूदी देश में चिंताएँ बढ़ गयी हैं। बाइडन ने सत्ता में आने के बाद जिस प्रकार फिलिस्तीन के समर्थन में अपनी आवाज़ उठाई है, उसके बाद इज़रायल-अमेरिका के बीच तनाव बढ़ना शुरू हो गया है। हाल ही में बाइडन ने इजरायल के विरुद्ध फैसला करते हुए फिलिस्तीनी शरणार्थियों को दी जाने वाली आर्थिक मदद पुनः बहाल कर दी, यह जानते हुए की इन शरणार्थियों में से कई, इजरायल विरोधी आतंकी घटनाओं में संलिप्त रहते हैं। उन्होंने वेस्ट बैंक पर इजराइली आधिपत्य को मान्यता देने से इनकार किया और द्विराष्ट्र सिद्धांत का समर्थन किया। इसके बाद इज़रायल ने भी अमेरिका के खिलाफ अपनी आवाज़ को बुलंद कर दिया है।
बाइडन प्रशासन इस बात को स्वीकारने से भी कतरा रहा है कि इज़रायल और सऊदी अरब अमेरिका के “महत्वपूर्ण साथी” हैं भी या नहीं! इसका नमूना तब देखने को मिला जब हाल ही में White House की प्रैस सचिव जेन साकी से यह पूछा गया कि क्या बाइडन प्रशासन इज़रायल और सऊदी अरब को महत्वपूर्ण साथी के तौर पर देखता है? इसका उत्तर देते हुए साकी ने कहा था “अभी अमेरिका की संबन्धित एजेंसियां इस मुद्दे पर गहनता से विचार कर रही हैं और वे middle east से जुड़े कई मुद्दों पर निष्कर्ष निकालने वाली है”।
अरब देशों और इज़रायल के खिलाफ इस रुख को दिखाकर बाइडन ने संकेत दिये हैं कि Abraham Accords पर उनकी राय डोनाल्ड ट्रम्प से अलग हो सकती है। ऐसे में अरब देश बिलकुल नहीं चाहेंगे कि बाइडन के इन कदमों से किसी भी प्रकार Abraham Accords को नुकसान पहुंचे! शायद इसी कारण अब अरब देशों ने बाइडन के खिलाफ Good Cop और Bad Cop का खेल खेलने का फैसला लिया है।