सऊदी और इज़रायल के सामने बाइडन ने टेके घुटने, ईरान को खुले समर्थन से हाथ पीछे खींचे

न चाहते हुए भी बाइडन, ट्रम्प की रणनीति अपना रहे हैं

ईरान

अपने चुनावी अभियान में बाइडन ईरान नीति को लेकर बार-बार ट्रम्प की आलोचना करते रहे हैं और यह कहते रहे हैं कि वे सत्ता में आएंगे तो ईरान के साथ, दुबारा 2015 की न्यूक्लियर डील पर हस्ताक्षर करेंगे। यहाँ तक कि सुलेमानी की हत्या पर भी राष्ट्रपति ट्रम्प की आलोचना हुई थी, उन्हें युद्ध चाहने वाले व्यक्ति के रूप में पेश किया गया था, यह जानते हुए की सुलेमानी हिजबुल्लाह जैसे दुर्दांत आतंकी संगठनों का सहयोगी था और पश्चिम एशिया में तमाम विवादों के पीछे उसका ही हाथ था।

सरकार बनने के बाद भी शुरू में बाइडन ने ईरान के प्रति नर्म रुख अपनाने का संकेत किया था, किंतु अब लगता है कि उन्हें यह समझ आने लगा है कि ईरान के प्रति ट्रम्प की नीति अधिक व्यवहारिक थी। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार बाइडन ने साफ कर दिया है कि वह ईरान पर से प्रतिबंध तभी हटाएंगे, जब वह 2015 की अपनी शर्तों को पूरा करेगा और उस समझौते के अनुरुप ही यूरेनियम की मात्रा का संचय करेगा।

बता दें कि 2015 में ईरान को Civil इस्तेमाल के लिए यूरेनियम संचय की छूट मिली थी। किंतु ट्रम्प ने सरकार में आने के बाद यह आरोप लगाया कि ईरान संचित यूरेनियम का इस्तेमाल परमाणु बम बनाने में कर रहा है। ईरान के प्रति अपनी Maximum Presure की नीति के तहत ट्रम्प ने उस पर भारी प्रतिबंध लगा दिए। ईरान ने भी इसके जवाब में खुले तौर पर यूरेनियम संवर्धन शुरू कर दिया।

ट्रम्प ने अपने पूरे कार्यकाल में ईरान को घुटनों पर रखा। सुलेमानी की हत्या हो या उसके न्यूक्लियर साइंटिस्ट की मौत, IRAN को एक के बाद एक बड़े नुकसान हुए। किंतु बाइडन के सत्ता में आते ही ईरान के हौसले बुलंद हो गए, क्योंकि बाइडन अपनी नीतियों में अत्यधिक इज़रायल विरोधी हैं। इतना ही नहीं, बाइडन सऊदी की राजशाही को भी नापसंद करते हैं, क्योंकि वह स्वयं को लोकतंत्र का मसीहा मानते हैं।

सरकार में आते ही बाइडन ने सबसे पहले फिलिस्तीन के मुद्दे अपनी नीति स्पष्ट की और बताया कि वह इजराइल-फिलिस्तीन समस्या के द्विराष्ट्र सिद्धांत वाले समाधान के पक्ष में हैं। फिर उन्होंने सऊदी अरब को होने वाली हथियारों की आपूर्ति पर रोक लगाई, तथा यमन के गृहयुद्ध में सऊदी को किसी भी प्रकार का सहयोग देने से मना कर दिया। इतना ही नहीं, उन्होंने ईरान समर्थक Robert Malley को ईरान में अपना विशेष प्रतिनिधि बनाकर भेजा, जो अपने इज़रायल विरोधी रवैये के कारण प्रसिद्ध हैं।

बाइडन की इन्हीं योजनाओं ने ईरान का मनोबल बढ़ाया और उसने यह घोषणा की कि वह अपने यूरेनियम संचय को 20% बढ़ाएगा। वास्तविकता यह है कि ईरान न्यूक्लियर शक्ति बनने के जितना भी करीब जाएगा, पश्चिम एशिया में तनाव उतना ही बढ़ेगा।

हमने अपने एक लेख में बताया था कि अमेरिका बाइडन की नीतियों के कारण, वैश्विक राजनीति में, किस प्रकार अप्रासंगिक होता जा रहा है। सत्य यह है की अमेरिका यदि अब ईरान को नियंत्रित करने के लिए कोई कदम नहीं उठाता है तो सऊदी अरब और इज़रायल जैसे ईरान विरोधी देश इस मामले को स्वयं सुलझाने को मजबूर हो जाएगे। यह स्थिति पश्चिम एशिया को युद्ध में झोंक सकती थी।

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