मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार भारत ने ईरान को एक बड़ा झटका देते हुए ऐन आखिरी वक्त पर ईरान द्वारा आयोजित एक नेवल ड्रिल में हिस्सा लेने से मना कर दिया। इससे पहले ईरान रूस के साथ मिलकर 16 फरवरी से ईरान के दक्षिणी हिन्द महासागर में संयुक्त सैन्य अभ्यास करने वाला था, जिसमें बाद में चीन ने भी हिस्सा लेने का ऐलान किया। इसी बीच ईरानी सूत्रों ने इस बात को पुष्ट किया कि भारत भी इस नेवल ड्रिल का हिस्सा बनने का इच्छुक था, और भारतीय नौसेना के जहाजों के एक बेड़े को तेहरान-मॉस्को की इस ड्रिल में शामिल होना था। हालांकि, बाद में भारत ने इस ड्रिल में शामिल होने से मना कर दिया। भारतीय नेवी ने एक बयान जारी कर कहा है कि उसने कभी इस ड्रिल में शामिल होने की बात कही ही नहीं, और ईरानी प्रशासन ज़रूर किसी गलतफ़हमी का शिकार बना है।
भारत के इस फैसले के बाद बेशक ईरान को एक बड़ा झटका पहुंचा है। हालांकि, यहाँ बड़ा प्रश्न यह है कि आखिर ईरान ने ऐसा क्यों किया होगा। कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक इस ड्रिल में चीन की हिस्सेदारी ने भारत को नाखुश कर दिया, जिसके बाद भारत ने अपने आप को इस ड्रिल से दूर कर लिया, लेकिन इस खबर का सिर्फ एक यही एंगल नहीं है। भारत के इस कदम के पीछे अरब देशों और इजरायल से जुड़ा एंगल भी हो सकता है, जो दर्शाता है कि भारत क्षेत्र में और अधिक सक्रिय भूमिका निभाकर सऊदी अरब और इजरायल के पक्ष में ईरान को एक कड़ा संदेश भेज रहा है।
बाइडन प्रशासन के सत्ता संभालने के बाद अरब देशों सहित इजरायल में चिंता देखने को मिली है, ऐसा इसलिए क्योंकि इन दोनों के हितों को नकारते हुए बाइडन ईरान को वापस न्यूक्लियर समझौते में शामिल करना चाहते हैं। बाइडन ना सिर्फ UAE और सऊदी अरब को बेचे जाने वाले अमेरिकी हथियारों के समझौतों पर रोक लगा चुके हैं, बल्कि ईरान समर्थित और सऊदी विरोधी हाऊथी उग्रवादियों पर से प्रतिबंध भी हटा चुके हैं। ऐसे में अब भारत इस क्षेत्र में सक्रियता बढ़ाकर शांति बरकरार रखने में अपनी भूमिका निभा रहा है।
ईरान को नाखुश करना भारत के हितों के विरुद्ध है क्योंकि ऐसा करके भारत अपने सबसे महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट चाबहार को खतरे में ड़ाल रहा है, लेकिन उसके बावजूद भारत ने ईरान की नेवल ड्रिल में हिस्सा लेने से मना करके सऊदी अरब और इजरायल को संकेत भेजा है कि वह बाइडन की अरब विरोधी और इजरायल विरोधी नीति का विरोध करने में उनके साथ खड़ा है। इसके साथ ही भारत ने ईरान के लिए भी यह संदेश भेजा है कि अगर ईरान खुलकर अरब देशों और इजरायल के खिलाफ अभियान चलाता है तो उसके ईरान-भारत के सम्बन्धों पर गलत प्रभाव पड़ सकते हैं।
यहाँ भारत द्वारा ईरान को किनारे किया जाना बाइडन प्रशासन के लिए भी संकेत है कि वह अमेरिका की middle east नीति से सहमत नहीं है।
भारत पश्चिम एशिया के देशों को अपने पड़ोसी के रूप में ही देखता है और पिछले छः महीनों के दौरान भारत ने पश्चिम एशिया के देशों के साथ बातचीत को बेहद तीव्र कर दिया है। उदाहरण के लिए 28 जनवरी को पीएम मोदी ने जहां अबू धाबी के क्राउन प्रिंस शेख मोहम्मद बिन जायद से फोन पर बात की थी तो वहीं ठीक एक दिन बाद ही पीएम मोदी ने बहरीन के क्राउन प्रिंस और प्रधानमंत्री सलमान बिन हमद से रणनीतिक मुद्दों पर चर्चा की थी। इतना ही नहीं, पिछले वर्ष नवंबर महीने में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पश्चिम एशिया की अपनी 6 दिवसीय यात्रा के दौरान UAE और बहरीन का दौरा किया था। साथ ही दिसंबर 2020 में भारत के सेना प्रमुख ने पहली बार UAE और सऊदी अरब की यात्रा भी की थी। इससे स्पष्ट होता है कि भारत आज से नहीं, बल्कि पिछले कुछ महीनों से लगातार अरब देशों के साथ रणनीतिक और कूटनीतिक तौर पर नजदीकी बढ़ाने के प्रयास कर रहा है, और अब जब बाइडन प्रशासन अमेरिका की सत्ता संभाल है तो भारत अपनी इसी कूटनीतिक शक्ति का इस्तेमाल करते हुए इन देशों में शांति कायम रखने के मुख्य भूमिका में आ चुका है। इसी कूटनीतिक शक्ति का इस्तेमाल करते हुए अब भारत ने ईरान को कड़ा संदेश भेजा है, जिसका प्रभाव अमेरिका से लेकर इजरायल और अरब देशों में देखने को मिल सकता है।