चन्दन, नारंग, कमलेश और अब रिंकू- अब समय आ गया है कि हम देश की सबसे बड़ी समस्या से निपटें!

लिंचिंग को लेकर देश में 2014 के बाद से एक नया एजेंडा चलाया जा रहा है जहां किसी अल्पसंख्यक की अगर भीड़ द्वारा हत्या होती है तो वो मोदी सरकार के खिलाफ एक घटिया विरोध की वजह बन जाता है, जबकि यदि किसी बहुसंख्यक के साथ ऐसी वारदात होती है,  तो वामपंथियों के पास उस शख्स को मारने वाले का नाम तक याद नहीं रहता है जिससे अल्पसंख्यकों को इस तरह के अनैतिक कार्य करने का अधिक बल मिलता है। इसका एक और अंजाम अब दिल्ली के अंकित शर्मा की हुई हत्या के रूप में सामने आया है, उसका नाम है रिंकू शर्मा जिसे अल्पसंख्यकों ने केवल राम मंदिर निर्माण के लिए इकट्ठा कर रहे चंदे के कारण मौत के घाट उतार दिया।

इस देश के तथाकथित बुद्धिजीवियों और वामपंथियों को अखलाक, पहलू खान, तबरेज अंसारी जैसे मुस्लिम अल्पसंख्यकों के नाम तो याद रहते हैं, लेकिन जब किसी हिंदू धर्म के व्यक्ति के साथ लिंचिंग जैसी घटना होती है तो उसका नाम लेना तो दूर, उस घटना की जानकारी भी रखना इन लोगों को नहीं भाता है। पिछले कुछ वर्षों में सभी ने नोटिस किया है कि कासगंज की हिंसा में मारे जाने वाले चंदन गुप्ता से लेकर दिल्ली दंगों में आईबी के अधिकारी अंकित शर्मा को बेतरतीब तरीके से मारा गया है। इन लोगों को न केवल मारा गया, बल्कि इनके पार्थिव शरीर के साथ भी अमानवीय व्यवहार किया गया, लेकिन इस मुद्दे पर किसी वामपंथी और तथाकथित शांतिप्रिय लोगों के मुख से कुछ नहीं निकला।

उन वाकयों के बाद अब रिंकू शर्मा का कत्ल भी कुछ इसी बर्बर तरीके से किया गया है। उनके शरीर के साथ हत्यारों ने जहालत की सारी हदें पार कर दी। इस मुद्दे पर परिवार का कहना है कि रिंकू राम मंदिर के लिए चंदा इक्ट्ठा कर रहे थे, इसलिए उनसे नाराज अल्पसंख्यक लोगों ने उनका कत्ल कर दिया है। वहीं पुलिस की थ्योरी परिवार के दावों को नकारने वाली ही है। पुलिस का कहना है कि रिंकू की कुछ लोगों से आपसी रंजिश भी है।

इस पूरे प्रकरण के बाद देश का वामपंथी धड़ा इस घटना को लिंचिंग मानने से इंकार करते हुए बयान दे रहा है कि पुलिस की जांच और उसकी थ्योरी पर विश्वास करना चाहिए और परिवार की बातों को खास तवज्जों नहीं देनी चाहिए। इसके विपरीत हाल ही में जब 26 जनवरी की ट्रैक्टर रैली के दौरान हिंसा में खुद की गलती के कारण एक युवक की आईटीओ के पास मौत हुई थी, तो ये ही वामपंथी धड़ा  पुलिस की बातों को गलत बता अपने दावों को सही ठहरा रहा था। ये दोनों प्रकरण इस बात का उदाहरण है कि देश में वामपंथ केवल अपनी सहूलियत के अनुसार ही एजेंडों को गढ़ता है क्योंकि उसके जरिए ही मोदी सरकार के विरोध की नींव तैयार होती है।

एक सवाल ये भी उठता है कि एक खास धर्म के लोग कैसे इतनी नृशंस हत्याओं को अंजाम देते हैं। इसके पीछे की एक बड़ी वजह देश के तथाकथित बुद्धिजीवियों की तरफ से उन्हें लगातार विक्टिम दिखाया जाना है। जब भी किसी अल्पसंख्यक शख्स की दुर्घटना के कारण मृत्यु हो जाती है तो देश का तथाकथित शांतिप्रिय धड़ा उन्हें इस मुद्दे पर सहानुभूति प्रदान करने लगता है। इन लोगों का कहना यही रहता है कि देश का अल्पसंख्यक बेहद ही दबा-कुचला है, उसे देश में समान अधिकार ही प्राप्त नहीं है। इन लोगों के मन में इतनी ज्यादा नफरत केवल सहानुभूति के नाम पर ही भर दी जाती है जो कि नृशंस हत्याओं का कारण बन जाती हैं।

इसके अलावा धार्मिक कट्टरता फैलाने वाले लोगों की बात भी कुछ ऐसी ही है क्योंकि इस मुद्दे पर अल्पसंख्यक समुदाय के धार्मिक गुरु आए दिन इन लोगों के मन में देश की बहुसंख्यक आबादी के खिलाफ जहर भरते रहते हैं और क्रूरता की हद तक उनका ब्रेनवॉश किया जाता है। इन परिस्थितियों में भरी नफरत के कारण देश का अल्पसंख्यक समाज आज के दौर में दंगे से लेकर नृशंस हत्याओं को अंजाम देने लगा है।

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इन कट्टरपंथियों की इसी क्रूरता के चलते आए दिन अल्पसंख्यक समुदाय के कुछ लोग कभी किसी कमलेश तिवारी को अपना निशाना बनाते हैं तो कभी किसी रिंकू शर्मा को। ये लोग बजरंग दल और उनका इतिहास खोजकर इन हत्यारों को बचाने की कोशिश करते हैं, और यही इन कट्टरर मानसिकता वाले लोगों की सबसे बड़ी दिक्कत है। ऐसे में ये कहा जा सकता है कि लिंचिंग के मुद्दे पर भी तुष्टीकरण की नीति अपनाने वाले लोग ही असल में बहुसंख्यकों के खिलाफ होने वाली लिंचिंग के प्रमुख अपराधी हैं, क्योंकि ये लोग ही इस विकृत मानसिकता को सहानुभूति के नाम पर बढावा देते हैं।

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