किसी ने सही कहा है, सब दिन ना होत एक समान। कभी जो कांग्रेस के दिग्गज नेता पार्टी हाईकमान को बचाने के लिए नैतिकता की धज्जियां उड़ाने को तैयार थे, आज वो अपना औचित्य पार्टी हाईकमान के दृष्टि में खत्म होता देख उनके विरुद्ध विद्रोह करने को विवश है।
हाल ही में जम्मू में कांग्रेस के वो 23 नेता, जो पार्टी में व्यापक बदलाव चाहते हैं, कांग्रेस पार्टी के विरुद्ध आक्रामक रुख अपनाते हुए दिखे। यूं तो प्रमुख मुद्दा राज्यसभा के पूर्व नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद के साथ हुआ अन्याय था, लेकिन इसके साथ ही कांग्रेस की अंदरूनी कलह एक बार फिर खुलकर सामने आ गई है, जिन्होंने पार्टी की कार्य प्रणाली पर गंभीर सवाल उठाए हैं।
इन 23 विद्रोही नेताओं में अग्रणी रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री व कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने गुलाम नबी आजाद के रिटायरमेंट पर कहा, “हम नहीं चाहते थे कि आजाद साहब संसद से जाएं,हमें दुख हुआ। आजाद कांग्रेस की असलियत जानते हैं, जमीन को जानते हैं। मुझे यह बात समझ नहीं आई कि कांग्रेस इनके अनुभव का इस्तेमाल क्यों नहीं कर रही है?”
परन्तु कपिल सिब्बल वहीं पर नहीं रुके। उन्होंने आगे कहा, “सच्चाई ये है कि कांग्रेस पार्टी हमें कमजोर होती दिखाई दे रही है और इसीलिए हम यहां एकत्रित हुए हैं। हमें इकट्ठे होकर पार्टी को मजबूत करना है। गांधी जी सच्चाई के रास्ते पर चलते थे, ये सरकार झूठ के रास्ते पर चल रही है”। जम्मू पहुंचने वाले नेताओं में गुलाम नबी आजाद, हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा, कपिल सिब्बल, आनंद शर्मा, मनीष तिवारी, विवेक तन्खा और राज बब्बर भी शामिल थे। इसके अलावा इस सम्मेलन में गुलाम नबी आजाद ने कहा, “मैं राज्य सभा से रिटायर हुआ हूं, राजनीति से रिटायर नहीं हुआ और मैं संसद से पहली बार रिटायर नहीं हुआ हूं”।
लेकिन उन्हें ऐसा बोलने को विवश क्यों होना पड़ा है? G-23 के एक वरिष्ठ नेता के अनुसार, “आज कांग्रेस में जो कुछ हो रहा है, वह पिछले साल दिसंबर में कांग्रेस वर्किंग कमिटी (CWC) की बैठक में हुई सहमति का उल्लंघन है। किसी सुधार या चुनाव के कोई संकेत नहीं हैं”।
पिछले वर्ष G-23 के नेताओं ने सोनिया गांधी को लिखे खत में पार्टी के कामकाज को लेकर अपनी नाराजगी जताई थी। इन नेताओं ने कांग्रेस के सांगठनिक चुनाव को तत्काल कराने सहित संगठन में जरूरी बदलाव की मांग भी की थी।
लेकिन इस बैठक का प्रमुख कारण ये माना जा रहा है कि असंतुष्ट नेताओं के अनुसार गुलाम नबी आजाद के साथ सम्मानपूर्ण व्यवहार नहीं हुआ। पार्टी के एक नेता ने यह भी कहा कि जब दूसरी पार्टियां आजाद को सीट देने की पेशकश कर रही थीं, प्रधानमंत्री उनकी तारीफ कर रहे थे तब कांग्रेस के नेतृत्व ने उनके प्रति कोई सम्मान नहीं दिखाया, जबकि रॉबर्ट वाड्रा के लिए केस लड़ने वाले एक वकील को राज्य सभा पहुंचा दिया गया।
इसके अलावा असंतुष्ट कांग्रेस नेताओं के समूह में शामिल एक वरिष्ठ नेता ने राहुल गांधी के बचकाने बयान पर निशाना साध दिया। उक्त नेता ने बताया कि राहुल गांधी की तरफ से केरल में हाल ही में दिए गए उत्तर-दक्षिण बयान से चीजें और बिगड़ी हैं। सूत्रों ने बताया कि कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व भी असंतुष्ट नेताओं के इस कदम से वाकिफ है। पार्टी नेतृत्व पूरे मामले पर निगाह रखे हुए हैं और जल्दबाजी में किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचना चाहती है।
सच कहें तो कांग्रेस के बागी नेताओं का शक्ति प्रदर्शन इस बात का परिचायक है कि अब पानी सर से ऊपर जा रहा है। यदि पार्टी हाईकमान अपनी निद्रा से नहीं जागा, तो जल्द ही कांग्रेस पार्टी महज गांधी-पार्टी ही बनकर रह जायेगी, जिसमें गांधी-वाड्रा परिवार के सदस्यों को छोड़कर कोई नहीं होगा।