नसीरुद्दीन शाह जी! आपके पास खोने के लिए कुछ नहीं है, आप पहले ही सब कुछ खो चुके हैं, इसलिए चुप रहो

आप अपना मुंह बंद रखें तो बेहतर है!

नसीरुद्दीन शाह

PC: BBC

सही ही कहा है किसी ने, बुढ़ापे में किसी वस्तु पर जोर नहीं रहता, जुबान पर भी नहीं। ये बात अभिनेता नसीरुद्दीन शाह पर बिल्कुल सटीक बैठती है, जिनका काम इन दिनों सिर्फ मुंह से विष उगलना ही है, विशेषकर भारत और भारतीय संस्कृति के विरुद्ध। अभी अपने वर्तमान बयान में जनाब ने फिल्म उद्योग के सितारों को खरी खोटी सुनाई है, जिन्होंने भारत की अखंडता के विरुद्ध बयानबाजी करने वालों को आड़े हाथों लिया था।

कृषि कानून पर विदेशी बयानबाजी का विरोध करने वाले अभिनेताओं के विरुद्ध अनर्गल बातें करते हुए नसीरुद्दीन ने कहा, हमारी फिल्म इंडस्ट्री के जो बड़े-बड़े धुरंधर हैं, वो खामोश बैठे हैं। इसलिए कि उन्हें लगता है कि बहुत कुछ खो सकते हैं। अरे भाई जब आपने इतना धन कमा लिया कि आपकी 7 पुश्तें बैठकर खा सकती हैं तो कितना खो दोगे आप?”

लेकिन ये तो बस शुरुआत थी, क्योंकि नसीरुद्दीन शाह का मानना है कि जब तक देश में किसान आंदोलन विशाल और आक्रामक नहीं होता, तब तक यह सरकार किसी की नहीं सुनेगी। नसीरुद्दीन आगे कहते हैं, सब कुछ अगर तबाह हुआ तो आपको अपने दुश्मनों का शोर नहीं सुनाई देगा। आपको अपने दोस्तों की खामोशी ज्यादा चुभेगी। हम यह नहीं कह सकते कि अगर किसान कड़कड़ाती सर्दी में वहां बैठे हुए हैं तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। मुझे उम्मीद है कि किसानों का ये प्रदर्शन फैलेगा और आम जनता इसमें शामिल होगी। वो होना ही है। मैं ऐसा मानता हूं कि खामोश रहना जुल्म करने वाले की तरफदारी करना है”

इसके बाद तो मानो नसीरुद्दीन शाह का अपने उपर बस नहीं रहा और वे दावा करने लगे, “कोविड के दौरान दो-चार घंटे का वक्त देकर लॉकडाउन घोषित किया गया। नहीं मालूम कि वो जायज था या नहीं। सबकी अपनी-अपनी राय है। लेकिन शाहीन बाग के आंदोलन को तितर-बितर करने के लिए वो जरूरी था। बहुत बढ़िया चाल थी और जो कि हो गया। अब ये बर्ड फ्लू फैला है तो मेरे खयाल से किसानों के आंदोलन को तितर-बितर करने के लिए इसका बहाना सरकार के बहुत काम आएगा”।

लेकिन ये कोई नई बात नहीं है। पिछले दो वर्षों से नसीरुद्दीन शाह जमकर केंद्र सरकार का विरोध करने के नाम पर भारत के विरुद्ध और विशेषकर सनातन संस्कृति के विरुद्ध विष उगल रहे हैं। नसीरुद्दीन शाह ने लव जिहाद के विरुद्ध यूपी सरकार द्वारा हो रही कार्रवाई का विरोध करते हुए कहा, “UP में लव जिहाद का तमाशा चल रहा है। एक तो जिन लोगों ने यह जुमला ईजाद किया है, उन्हें इसका मतलब ही मालूम नहीं। दूसरी बात यह कि मैं नहीं मानता कि कोई इतना बेवकूफ होगा कि उसे वाकई लगे कि एक दिन इस मुल्क में मुसलमानों की तादाद हिंदुओं से ज्यादा हो जाएगी। इसके लिए मुसलमानों को किस रफ्तार से बच्चे पैदा करने पड़ेंगे? मेरे ख्याल से यह बात बिल्कुल ढकोसला है। इसपर कोई यकीन नहीं करेगा। ये लव जिहाद का जो तमाशा किया गया है, वह सिर्फ हिंदुओं और मुसलमानों के सोशल इंटरेक्शन को बंद करने के लिए है कि आप शादी की बात तो सोचें ही नहीं”।

अपने आप को अभिव्यक्ति की आजादी के रक्षक बताने वाले नसीरुद्दीन शाह ने जिस प्रकार से भारत की एकता के लिए आवाज उठाने वाले सितारों के लिए ओछी बयानबाजी की है, उससे स्पष्ट होता है कि उनकी निष्ठा आखिर किस चीज के लिए हैं। अपनी प्रतिष्ठा, समाज में अपना स्थान और अपनी मानसिक शांति खोने के बाद भी नसीरुद्दीन शाह का अनर्गल प्रलाप जारी है, उसपर एक ही कहावत चरितार्थ होती है। जब नाश मनुज पर छाता है, विवेक पहले मर जाता है।

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