वर्षों बाद मोदी सरकार ने NPA से निपटने के लिए एक Bad Bank के विचार को स्वीकार कर लिया है। सरकार ने स्वीकार किया है कि NPA की समस्या को केवल Insolvency and Bankruptcy Code के माध्यम से हल नहीं किया जा सकता है – जो कुछ वर्षों के लिए निलंबित है। यही कारण है कि देश को एक Bad Bank की आवश्यकता है जो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के उन सभी मुश्किल में पड़े एसेट को ले लेगा और उन्हें ‘नए सिरे से’ निकालने में मदद करेगा।
Indian Bank के एमडी और सीईओ पद्मजा चुंडुरु का कहना है कि, “ARC यानी Asset Reconstruction Company द्वारा बैंकों की तनावग्रस्त एसेट के प्रस्तावित अधिग्रहण से बैंकों को अपने Bad Loans से मुक्ति मिलेगी और इससे ऋण के लिए अधिक धनराशि उपलब्ध होगी। इसके अलावा, यह ऋण एकत्र करके एसेट्स के लिए बेहतर मूल्य प्राप्त करने में मदद करेगा।” बता दें कि Asset Management company या Asset Reconstruction Company को आम भाषा में Bad Bank भी कहा जाता है।
“Bad Bank” का उद्देश्य वाणिज्यिक बैंकों के तनावग्रस्त एसेट्स को देखने में मदद करना है और बाद में उन परिसंपत्तियों को बाजार में रियायती मूल्य पर बेचना है। इससे वाणिज्यिक बैंकों की बैलेंस शीट को साफ रखने में मदद मिलती है।
मोदी सरकार देश की credit to GDP ratio को आगे बढ़ाना चाहती है, जो कि अधिकांश विकसित और उभरती अर्थव्यवस्थाओं के 160 प्रतिशत से ऊपर और उनकी तुलना में यह लगभग 50 प्रतिशत की दर से कम है। यही कारण है कि बैंकों के एक नई शुरुआत के लिए, जहां उनके पास यूपीए काल के बैड लोन (या फोन कॉल लोन) का बोझ नहीं होगा, एक Bad Bankकी जरूरत थी।
इसके अलावा, सरकार दीर्घकालिक इन्फ्रास्ट्क्चर फाइनेंसिंग के लिए Development Finance Institution (DFI) की भी स्थापना करेगी। 20,000 करोड़ रुपये की प्रारंभिक पूंजी के साथ स्थापित डीएफआई भी बाजार से उधार लेगी और अगले तीन, चार या पांच साल में 5 लाख करोड़ रुपये तक यह अपनी क्षमता बढ़ाएगी। देश की अधिकांश बुनियादी ढांचा परियोजनाएं धन की कमी के कारण प्रभावित होती है, खासकर IL&FS के पतन के बाद।
बजट प्रस्तुति के बाद संवाददाता सम्मेलन में, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने कहा कि निजी क्षेत्र बुनियादी ढांचे के वित्तपोषण के लिए DFI की स्थापना भी कर सकते है क्योंकि इस क्षेत्र को बड़ी मात्रा में धन की आवश्यकता है, और निजी तथा सार्वजनिक DFI खुले बाजार में प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं।
बैंकिंग और वित्तीय इन्फ्रास्ट्रक्चर पर ध्यान केंद्रित करने से शेयर बाजारों, विशेष रूप से बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र के शेयरों में भारी उछाल आया। Dalton Capital के प्रबंध निदेशक यू.आर. भट्ट ने कहा कि,
“वित्त मंत्री द्वारा घोषित प्रस्तावों में कोई बड़ा नकारात्मक प्रस्ताव नहीं था। इसके विपरीत, वित्तीय प्रणाली में तनावग्रस्त एसेट्स से निपटने के लिए एक तो ‘बैड बैंक’ स्थापित करने का प्रस्ताव है जो इस बार के थोड़ा अपेक्षित नहीं था, दूसरा बीमा क्षेत्र में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) की लिमिट में वृद्धि, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पुनर्पूंजीकरण योजना के साथ PSUs के निजीकरण अच्छे प्रस्ताव हैं। हालांकि, fiscal deficit काफी बड़ा है, पर फिर भी पैसा अच्छी तरह से खर्च किया जा रहा है।”
आर्थिक सर्वेक्षण ने पिछले साल बताया था कि बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र देश के विकास को पीछे खींच रहे हैं, इस तथ्य को देखते हुए कि भारत के पास केवल एक बैंक- SBI- वैश्विक शीर्ष 100 में है, जबकि कम से कम 6 होने चाहिए थे। पिछले वर्ष के आर्थिक सर्वेक्षण में बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों के राष्ट्रीयकरण का भी जायजा लिया गया था, जो देश के वित्तीय बुनियादी ढांचे के अविकसित होने के कारणों में से हैं।
सरकार ने दो पीएसबी का निजीकरण करने का फैसला किया है और एलआईसी के आईपीओ की घोषणा की है। यह बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र में निजी क्षेत्र की ऊर्जा और विशेषज्ञता को बढ़ावा देने वाले पहले कदमों में से एक है, जिसमें PSUs की बहुत मजबूत उपस्थिति है। सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में कई सुधार किए हैं, और यह इस बजट से स्पष्ट था कि अब अगला एजेंडा बैंकिंग क्षेत्र पर ही केंद्रित होगा।