PM मोदी सत्ता संभालने के बाद से ही जाति आधारित आरक्षण हर साल कमजोर कर रहे हैं

ये हम नहीं आंकड़ें कह रहे!

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भारत की अनेक समस्याएँ है – आतंकवाद, गरीबी, अकर्मण्यता और आरक्षण। जी हाँ, वही आरक्षण, जो स्वतंत्र भारत में पिछड़ों के लिए एक वरदान के तौर पर ईजाद किया गया था, परंतु आज वह पूरे देश के लिए किसी अभिशाप से कम नहीं है। लेकिन पीएम मोदी उन लोगों में से नहीं है जो हाथ पर हाथ धरे देश की दुर्गति को देखते रहेंगे, और वे अपनी शैली में इस समस्या से निपट रहे हैं।

आज आरक्षण पिछड़ों को न्याय दिलाने के बजाए अकर्मण्य लोगों के लिए एक ढाल समान बन गया है, जिसके पीछे छुपकर वे कुछ भी कर सकते हैं। अब ऐसे में आपके सामने दो विकल्प आएंगे – या तो आप सीधा आरक्षण खत्म करें, या फिर कोई और रास्ता चुने। सीधा आरक्षण खत्म करने में न सिर्फ देश में उमड़ने वाले उपद्रव का खतरा था, अपितु इसे भारत विरोधी तत्व अपने अनुसार तोड़ मरोड़कर पेश कर सकते थे, जो 2015 में ही दिख गया था, जब आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत द्वारा आरक्षण के पुन: निरीक्षण के सुझाव को ‘दलित विरोधी’ करार देते हुए असहिष्णुता का मायाजाल रचा गया, और इसका फायदा महागठबंधन को बिहार के चुनाव में भी मिला।
जब सीधी उंगली से घी न निकले, तो उंगली टेढ़ी करनी पड़ती है। यही बात मोदी सरकार को जल्द समझ में आ गई, और उन्होंने कुछ समय तक आरक्षण के मुद्दे पर चुप्पी साधे रखी। लेकिन परदे के पीछे आरक्षण के प्रभाव को कम करने का काम ठीक वैसे ही चलता रहा, जैसे चुपचाप सारा खाका बुनकर अगस्त 2019 में एकाएक अनुच्छेद 370 के विशेषाधिकार संबंधी प्रावधानों को वैधानिक तरह से निरस्त कर दिया गया।

वो कैसे? अगर आप पिछले 3 वर्षों में केंद्र सरकार के निर्णयों का निरीक्षण करें, तो आपको पता चलेगा कि कैसे आरक्षण के नाम पर जो गंदगी सार्वजनिक क्षेत्र में फैली हुई थी, और जहां अकर्मण्यता को खुलेआम बढ़ावा दिया जा रहा था, वहीं धीरे धीरे कई पब्लिक सेक्टर कंपनियों और उद्योगों के निजीकरण को धीरे धीरे स्वीकृति मिलती गई।

इसके अलावा एक और कारण था जिससे मोदी सरकार ने धीरे धीरे निजीकरण को बढ़ावा दिया, ताकि आरक्षण का प्रभाव कम हो सके। ऐसा इसलिए क्योंकि जिनको आरक्षण वास्तव में मिलना चाहिए, उन्हें तो लाभ पहुंचता ही नहीं था। उदाहरण के लिए 2017 में गठित एक सरकारी पैनल के शोध के अनुसार ओबीसी में केवल 1 प्रतिशत वर्ग पूरे आरक्षण प्रणाली के 50 प्रतिशत सुविधाओं का लाभ उठाता था, और बाकी लोगों में 20 प्रतिशत आरक्षण के योग्य होते हुए भी उस लाभ से वंचित हो जाते थे।

इसीलिए मोदी सरकार ने फिर अगला लक्ष्य चुना ब्यूरोक्रेसी। इस क्षेत्र में आरक्षण का प्रभाव सर्वाधिक है, चूंकि इस क्षेत्र के लोग भारत के नीति निर्माण पर एक गहरा प्रभाव डालते हैं, इसलिए यहां अकर्मण्यता बिल्कुल स्वीकार नहीं की जा सकती। इसीलिए लेटरल एंट्री का प्रावधान किया गया, जहां योग्य लोगों को एक निश्चित प्रक्रिया से गुजरने के बाद जॉइन्ट सेक्रेटेरी जैसे पदों से सीधा भारतीय सरकार के विभिन्न विभागों में तैनात किया जाएगा।

लेकिन भारत सरकार के इरादे जगजाहिर हुए 2019 में, जब उन्होंने दो ताबड़तोड़ निर्णय लिए। न केवल आर्थिक रूप से पिछड़े उच्च जातियों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया, अपितु भारतीय रेलवे में पीपीपी मॉडल के आधार पर निजी ट्रेन, जैसे तेजस एक्सप्रेस का भी उद्घाटन हुआ। अब आप सोचेंगे कि इससे क्या लाभ मिलेगा? जब किसी क्षेत्र में निजी निवेश होता है, तब प्रतिस्पर्धा भी बढ़ती है, और अकर्मण्यता पर भी करारा प्रहार होता है, जिसे जातिगत आरक्षण के कारण खुली छूट मिली हुई थी।

कुल मिलाकर मोदी सरकार ने आरक्षण पर सीधा प्रहार नहीं किया है, बल्कि धीरे-धीरे, छोटे छोटे फैसलों के जरिए उसे उस स्तर तक पहुंचा रही है, जहां उसे खत्म करने के लिए अधिक परिश्रम की आवश्यकता न पड़े, और न ही उसके नाम पर कोई विरोध कर पाए। जिस प्रकार से विपक्ष वर्तमान में व्यवहार कर रहा है, उसे देखकर यह कहना गलत नहीं होगा कि जब तक उन्हें खेल समझ आएगा, तब तक भाजपा आरक्षण खत्म खत्म कर चुकी होगी, और देश प्रगति के आकाश में नई उड़ान भर रहा होगा।

 

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