अभी हाल ही में पूर्व टेस्ट क्रिकेटर वसीम जाफर को उत्तराखंड की क्रिकेट टीम के कोच पद से हटाया गया है। घरेलू सत्र, विशेषकर रणजी ट्रॉफी के लिए उत्तराखंड की टीम को तैयार करने हेतु वसीम जाफर को नियुक्त किया गया था, जो बतौर टेस्ट क्रिकेटर एक उत्कृष्ट बल्लेबाज रह चुके हैं। लेकिन जैसे-जैसे तथ्य सामने आए, वसीम जाफर का धर्मांध पक्ष भी सबके सामने उजागर हो गया।
बता दें कि वसीम जाफर को एक सत्र के लिए उत्तराखंड क्रिकेट टीम का कोच नियुक्त किया गया था, जिसके लिए उन्हें 45 लाख रुपये की धनराशि भी मीली थी। वसीम जाफर घरेलू क्रिकेट में जाने माने नाम हैं, जिन्होंने मुंबई की क्रिकेट टीम को वर्षों तक अपनी सेवाएँ दी और कई रणजी ट्रॉफी भी जितवाई। लेकिन उत्तराखंड क्रिकेट संघ के सचिव महिम वर्मा और मुख्य चयनकर्ता एवं पूर्व रणजी क्रिकेटर रिजवान शमशाद से विवाद के बाद वसीम को यह पद छोड़ना पड़ा।
वसीम के अनुसार, यह निर्णय इसलिए लिया गया क्योंकि महिम वर्मा टीम के चयन और कार्यप्रणाली में काफी दखलंदाज़ी करते थे, जिससे टीम का संचालन सुचारु रूप से नहीं हो पाता था। इसके अलावा उन्हें उनका भुगतान समय पर नहीं दिया गया था, जिसके कारण उन्हें पद छोड़ना पड़ा।
लेकिन जल्द ही वसीम की पोल खुल गई, जब महिम वर्मा और रिजवान शमशाद दोनों ने वसीम के आरोपों पर उन्हें आड़े हाथ लिया। रिजवान शमशाद ने जहां वसीम के आरोपों को निराधार बताया, वहीं महिम ने वसीम पर धर्मांधता फैलाने का आरोप लगाया।
बीसीसीआई के पूर्व उपाध्यक्ष महिम के अनुसार, “हमने जाफर का पूरा समर्थन किया था। वह गेस्ट प्लेयर के तौर पर इकबाल अब्दुल्ला, समद सल्ला, जय बिस्टा को लाए थे। वह भारत के घरेलू क्रिकेट में सबसे ज्यादा रन बनाने वाले बल्लेबाज हैं, इसलिए शुरुआत में हमने उनके सारे फैसलों को सही माना। परंतु मुश्ताक अली ट्रॉफी में पांच में से चार मैचों में हमें हार का सामना करना पड़ा। विजय हज़ारे ट्रॉफी के लिए हमने टीम की घोषणा की तो अगले ही दिन उन्होंने इस्तीफा भेज दिया”।
लेकिन ये तो बस शुरुआत है, क्योंकि आगे महिम वर्मा ने वो बातें बताई, जिसके बाद वसीम जाफर के व्यक्तित्व पर ही प्रश्न चिन्ह खड़ा कर दिया है। महिम के अनुसार, “टीम के सहयोगी स्टाफ बताते हैं कि वसीम ट्रेनिंग कैंप में अपने साथ जुमे की नमाज़ अदा कराने मौलवी लाया करते थे। यही नहीं, पिछले वर्ष से उत्तराखंड की टीम ‘रामभक्त हनुमान की जय’ का जयकारा लगाकर मैदान में उतरती थी। इसे यह कहकर जाफर ने बदलवा दिया कि उत्तराखंड की टीम से सभी लोग खेलते हैं। तो हमने विकल्प के तौर पर उत्तराखंड की जय का नारा दिया, परंतु जाफ़र को उससे भी तकलीफ थी”।
यदि ये बातें शत प्रतिशत सत्य हैं, तो प्रश्न ये उठता है कि क्या वसीम जाफर भारत की ओर से खेल रहे थे कि पाकिस्तान की ओर से? इस प्रकार की प्रवृत्ति पाकिस्तान में अधिक देखी जाती है, जिसकी ओर दानिश कनेरिया और कुछ हद तक शोएब अख्तर ने प्रकाश भी डाला था। लेकिन यदि एक घरेलू टीम को जबरदस्ती मजहबी बनाने का प्रयास किया जा रहा है, तो यह अच्छी बात तो बिल्कुल नहीं है।
ऐसे में वसीम जाफर के निष्कासित होने से न सिर्फ उत्तराखंड क्रिकेट प्रशासन ने एक उचित कदम उठाया, बल्कि यह भी सिद्ध किया कि धर्मांधता जब किसी व्यक्ति के जीवन का हिस्सा बन जाता है, तो उसके लिए देश की संस्कृति, आत्मसम्मान कुछ मायने नहीं रखता.. मायने रखता है तो सिर्फ अपना मजहब।