इतिहासकार या एजेंडावादी? राम मंदिर विरोधी DN झा ने जीवनभर कम्युनिस्ट पार्टी से अपने जुड़ाव को छुपाकर रखा

खुद को इतिहासकर बताने वाले, झा तो commie निकले....

इतिहासकार

THE SUNDAY POST

जाने माने इतिहासकार द्विजेंद्र नारायण झा, जिन्हें अकादमिक क्षेत्र में डी.एन. झा के नाम से जाना जाता है, वह कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य थे। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) की दिल्ली शाखा ने एक फेसबुक पोस्ट में बताया कि डी.एन.झा की मृत्यु पार्टी के लिए एक बहुत बड़ी क्षति है। बता दें कि डी एन झा की मृत्यु 5 फरवरी को हो गई थी

सीपीआई दिल्ली ने पोस्ट में स्पष्ट लिखा था “उनका निधन सीपीआई के लिए एक बड़ा नुकसान भी है। रिटायरमेंट से ठीक पहले तक वह CPI सदस्य थे। सीपीआई दुख के इन दिनों में उनके परिवार के साथ खड़ा है।“

 

पोस्ट में आगे लिखा था, “सीपीआई दिल्ली के राज्य परिषद सचिव, प्रो दिनेश वार्ष्णेय के नेतृत्व में राज्य परिषद का एक प्रतिनिधिमंडल जिसमें केहर सिंह और बबन कुमार सिंह ने प्रोफेसर डी.एन. झा के घर का दौरा किया और पार्टी के झंडे के साथ अंतिम विदाई दी।”

बता दें कि डी.एन. झा, कॉमरेड रोमिला थापर, इरफान हबीब, आर एस शर्मा जैसे इतिहासकार साथियों के साथ, बाबरी मस्जिद के नीचे भगवान राम मंदिर के अस्तित्व को नकारने में सबसे आगे थे।

डॉ के.के. मुहम्मद जो कि ASI भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पूर्व क्षेत्रीय निदेशक थे, उन्होंने अपनी आत्मकथा Njan Enna Bharatiyan (“I am Indian”) में इन सभी कथित इतिहासकारों द्वारा राम मंदिर के अस्तित्व को व्यवस्थित रूप से नकारने के लिए किए गए कुकर्मों को विस्तार से बताया है।

उन्होंने लिखा है कि, “जेएनयू में वामपंथी इतिहासकारों की एक टीम जैसे रोमिला थापर, बिपिन चंद्र, और एस गोपाल ने तर्क दिया कि उन्नीसवीं शताब्दी से पहले मंदिर के टूटने का कोई उल्लेख नहीं था और अयोध्या बौद्ध-जैन धर्म का केंद्र था। इरफान हबीब, आर.एस. शर्मा, अतहर अली, डी एन झा, सूरज भान जैसे इतिहासकार भी इसमें शामिल हुए और यह एक बड़ा समूह बन गया।”

के के मुहम्मद ने आगे लिखा है कि, “इससे Babri Masjid Action Committee में साहस पैदा हुआ और उन्हें झूठी उम्मीदें मिली। इसके परिणामस्वरूप मुस्लिमों के विचार में उलटफेर हुआ, जो तब तक मस्जिद को वापस देने और मामले को सौहार्दपूर्ण ढंग से निपटाने के लिए पूरे मन से विचार कर रहे थे। लेकिन इसके बाद उन्होंने फैसला किया कि मस्जिद नहीं दी जाएगी”

अब कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्यता वाले डी एन झा जैसे इतिहासकारों ने अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए गैर-विशेषज्ञों की गवाही ली और अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए केके मुहम्मद जैसे एक्सपर्ट को बाहर कर दिया। यही कारण है कि अयोध्या में राम मंदिर के फैसले में इतने वर्षों का समय लग गया।

इस बात में कोई संदेह नहीं है कि अगर विवादास्पद वामपंथी इतिहासकारों ने अपने नापाक एजेंडे को फैलाने के लिए गैर-विशेषज्ञों का सहारा नहीं लिया होता तो अयोध्या विवाद को बहुत पहले ही सुलझा लिया जाता।

अनुभववादी इतिहास लिखने का दावा करने वाले झा जैसे लोग वास्तव में एक ऐसी विचारधारा से जुड़े थे, जिसने न तो भारत की विशिष्टता को कभी महसूस किया और न ही भारत की संस्कृति को। ऐसे ही लोगों ने भारत में पश्चिमी अवधारणा को लागू करने की कोशिश की, जिसकी सामाजिक-आर्थिक गतिशीलता पूरी तरह से भिन्न है। अब, इन लोगों का कम्युनिस्ट पार्टी के आजीवन सदस्य होने का पता चला है। इससे अब एक बात और स्पष्ट हो गयी ये Historian नहीं बल्कि Distorian थे।

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