म्यांमार में हाल ही में हुए तख़्तापलट के पीछे घरेलू राजनीति के साथ-साथ भू-राजनीतिक कारण भी हो सकते हैं। Asia Nikkei की एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले एक दशक में जिस प्रकार चीन ने इस देश पर अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश की, उसके बाद म्यांमार सेना ने बड़ी ही तेजी से भारत और रूस के साथ अपने संबंध मजबूत किए हैं।
पिछले एक दशक के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार म्यांमार सेना ने रूस से करीब 807 मिलियन डॉलर के हथियार खरीदे हैं। 1 फरवरी की सुबह जब म्यांमार में तख़्तापलट हुआ, तो सड़कों पर रूस में बनी सैन्य गाड़ियां ही देखने को मिली थी, जिन्हें पिछले 2 से 3 वर्षों के दौरान ही खरीदा गया होगा। हैरानी की बात तो यह है कि इन गाड़ियों का आधिकारिक रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है।
पिछले कुछ सालों में म्यांमार सेना के रूसी सेना के साथ संबंध बेहद मजबूत हुए हैं। ऐसे में इस तख़्तापलट के पीछे रूसी संबंध के दृष्टिकोण को नकारा नहीं जा सकता है। यहाँ तक कि तख़्तापलट के कुछ दिन पहले ही रूसी रक्षा मंत्री Gen. Sergei Shoigu ने म्यांमार का दौरा कर कुछ नए रक्षा समझौतों को पक्का किया था। इस समझौते में Pantsir-S1 surface-to-air missile system, Orlan-10E surveillance drones और रेडार उपकरण शामिल थे।
रूसी रक्षा मंत्री के दौरे के दौरान म्यांमार सेना प्रमुख जनरल Ming Aung ने कहा था “एक अच्छे दोस्त की तरह रूस ने हमेशा मुश्किल समय में हमारा साथ दिया है, खासकर कि पिछले चार सालों के दौरान।”
यहाँ तक कि म्यांमार में हुए तख़्तापलट की पिछली शाम को ही म्यांमार सेना इस बात को प्रकाशित कर रही थी कि कैसे रूसी सेना और म्यांमार सेना के बीच संबंध प्रगाढ़ हुए हैं। Myanmar की सेना ने रूस से कई प्रकार के ट्रेनिंग क्राफ्ट्स के अलावा Mig-29, SDu30Mk और JF-17 जैसे फाइटर जेट्स खरीदे हैं, जो दर्शाता है कि म्यांमार सेना ने चीन पर से अपनी निर्भरता को कम करने की कोशिश की है।
इसके लिए म्यांमार सेना ने भारत का भी रुख किया है। पिछले वर्ष ही भारत ने अपनी एक 3000 डीज़ल इलैक्ट्रिक सबमरीन INS सिंधूवीर को म्यांमार सेना को सौंपा था। भारत से सबमरीन लेने के पीछे Myanmar सेना की मंशा यही थी कि कैसे भी करके क्षेत्र में चीनी प्रभुत्व को चुनौती दी जाये। इसके साथ ही म्यांमार सेना चीन के उपकरणों की घटिया क्वालिटी से भी परेशान है, जिसके कारण वह भारत और रूस जैसे देशों का रुख कर रही है।
म्यांमार सेना और चीन के बीच पहले भी विवाद देखने को मिल चुका है। म्यांमार की सेना को देश में चीनी समर्थक उग्रवादियों से कड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। पिछले वर्ष म्यांमार सेना के कमांडर-इन-चीफ़ जनरल Mig Aung ने रूस के एक टीवी चैनल को इंटरव्यू देते हुए कहा था “कोई भी देश आसानी से अपने यहाँ आतंकियों का सफाया कर सकता है, लेकिन अगर उनके पीछे किसी बड़ी ताकत का हाथ हो, तो फिर दुनिया को हमारी मदद के लिए आगे आना चाहिए।” जनरल Mig Aung का इशारा यहाँ चीन की ओर था, क्योंकि अलगाववादी अराकन आर्मी के पास से बड़ी संख्या में चीनी हथियार ज़ब्त किए जा रहे थे। Wion की रिपोर्ट के मुताबिक, अराकन आर्मी को मिलने वाले 95% फंडस चीन से ही आते हैं।
Myanmar में चीन समर्थित उग्रवादी संगठनों जैसे United Wa State Army, the Kokang Army और the Kachin Independence Army ने म्यांमार सेना के सरदर्द को बढ़ाया है, जिसके कारण उसने सहायता के लिए भारत का रुख किया है। म्यांमार की सेना तेजी से अब ट्रेनिंग और हथियारों के लिए भारत का रुख कर रही है।
म्यांमार के सेना प्रमुख कैसे भी करके देश में अपने प्रभुत्व को बढ़ाना चाहते हैं, जिसके लिए उन्हें अंतर्राष्ट्रीय ताकतों का समर्थन चाहिए। रूस यूएन सुरक्षा परिषद का एक स्थायी सदस्य है, जिसका म्यांमार को फायदा मिल सकता है। तख़्तापलट के बाद भी जब म्यांमार पर UN के प्रतिबंधों का मुद्दा उठा तो चीन के अलावा रूस ने भी उसे Veto कर दिया।
उधर भारत Myanmar में बड़े पैमाने पर निवेश करने की बात कर रहा है, जिसमें एक रिफाइनरी प्रोजेक्ट में 6 बिलियन डॉलर के निवेश का प्रोजेक्ट भी शामिल है। ऐसे में म्यांमार सेना को देश पर अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए भारत और रूस का साथ चाहिए, ताकि वह चीनी प्रभाव को चुनौती दे सके। म्यांमार सेना उसी दिशा में काम करती दिखाई दे रही है।