कम्युनिस्ट केरल में हिंदुओं को ड़राने के लिए कट्टर इस्लामिस्टों ने मोपला नरसंहार का किया रूपान्तरण

1921 में हुए खिलाफत आंदोलन की यादों को ताज़ा करने की हुई कोशिश

मोपला

PC: REPORT WIRE

1921 में खिलाफत आंदोलन के नाम पर जो मालाबार में मोपला नरसंहार हुआ, जिसमें कई निर्दोष हिंदुओं की हत्या हुई और लाखों हिंदुओं को अपना घर बार छोड़ कर जाना पड़ा, उसका न सिर्फ महिमामंडन किया गया, बल्कि आरएसएस के ‘स्वयंसेवकों’ को ज़ंजीरें भी पहनाई गई। लेकिन यदि आप सोच रहे हैं कि ये पाकिस्तान या बांग्लादेश में हुआ, तो ये नहीं, ये भारत के ही एक नगर मलप्पुरम का दृश्य था, जिसे आतंकी गुट् PFI ने अंजाम दिया।

हाल ही में मोपला दंगे अथवा मालाबार नरसंहार के 100 वें वर्षगांठ को केरल में विशेष तौर पर धूमधाम से मनाया गया। इसी भड़काऊ प्रदर्शन का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जहां पर इस्लामिक टोपी पहने कुछ लोग कई लोगों को जंजीरों में बांधकर ले जाते हुए दिखाई दिए हैं। कुछ इनमें अंग्रेज़ी पोशाक पहने थे, जबकि कुछ आरएसएस के स्वयंसेवक के कपड़े पहने थे। ये दृश्य मलप्पुरम जिले के टेनहीपालम कस्बे में हुआ था, जहां अल्लाह हू अकबर जैसे नारे भी लगे थे

https://twitter.com/Shehzad_Ind/status/1362778399421341699?s=20

 

लेकिन यह मोपला का नरसंहार था क्या? दरअसल 1921 में खिलाफत आंदोलन के नाम पर केरल के मोपला क्षेत्र में कत्लेआम हुआ, जिसमें 10000 से अधिक लोग मारे गए, और 1 लाख से अधिक हिन्दू केरल छोड़ने को विवश हुए थे। अपने पुस्तक में इसका विवरण करते हुए एनी बेसंट ने लिखा, “जहां गए, वहाँ [कट्टरपंथियों] उन्होंने कत्लेआम मचाया। जिस भी हिन्दू ने धर्मांतरण से मना किया, उसे वहीं काट दिया गया। लगभग एक लाख लोगों को अपना घर बार छोड़ने को विवश होना पड़ा। मालाबार ने हमें सिखाया कि इस्लामिक राज्य कैसा होता है, और यदि यही स्थिति रही तो हमें खिलाफत राज की कोई जरूरत नहीं”

लेकिन बात यहीं पे नहीं रुकती। आज भी इस नरसंहार को लोग एक उत्सव की तरह मानते हैं, और कथित सेक्युलर नेता इसे केरल के गौरवशाली इतिहास का भाग भी बताते हैं। मजे की बात यह है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना इस दंगे के पूरे 3 वर्ष बाद 1924 के अंत में हुई, लेकिन जिस प्रकार से स्वयंसेवकों को जंजीरों में बंधा दिखाया गया, उससे PFI के कार्यकर्ता यही दिखाना चाहते हैं कि कैसे वे जब चाहे, जिसे चाहे, हिंदुओं को अपना बंधक बना सकते हैं, और आरएसएस को भी जो हिन्दू धर्म का  प्रतीक है।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि PFI इस देश के लिए किसी कलंक से कम नहीं है, और यही बात उन लोगों ने इस भड़काऊ रैली से सिद्ध भी की। लेकिन यदि केंद्र सरकार अब भी नहीं चेती, तो PFI के नापाक करतूतों को बल मिलता रहेगा, और कहीं ऐसा न हो कि एक दिन PFI ऐसा घाव दे, जिसे भरने में बहुत समय लगे।

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