‘हिंदू-मुसलमान करने वाला सेक्युलर नही होता’, अमित शाह ने ओवैसी के सेक्युलर छवि की धज्जियां उड़ा दी

भारतीय राजनीति में इन दिनों एक अघोषित नियम लागू है – किसी को भी चुनौती दीजिए पर अमित शाह को नहीं और अगर चुनौती देनी है तो होमवर्क करके आयें। ऐसा लगता है कि असदुद्दीन ओवैसी ने अपनी पुरानी गलतियों से कोई सीख नहीं ली और फलस्वरूप अपने संबोधन में भारत के गृहमंत्री ने उनकी सेक्युलर छवि को धज्जियां उड़ा दी।

लोकसभा में जब अमित शाह कश्मीर की स्थिति पर सदन को संबोधित कर रहे थे, तो ओवैसी द्वारा इस बात को उठाया गया कि क्या नए कश्मीर में अल्पसंख्यक हिन्दू अफसरों की देखरेख में सुरक्षित रह पाएंगे? क्योंकि अब जम्मू कश्मीर की प्रशासनिक सेवा भारतीय प्रशासनिक सेवा के अंतर्गत आएगी, इसलिए क्या अब हिन्दुओं का वर्चस्व प्रशासन पर नहीं होगा?

इस पर अमित शाह ने अपनी आक्रामक शैली में कहा, “औवेसी अफसरों का भी हिंदू-मुस्लिम में विभाजन करते हैं। एक मुस्लिम अफसर हिंदू जनता की सेवा नहीं कर सकता या हिंदू अफसर मुस्लिम जनता की सेवा नहीं कर सकता क्या? उन्होंने कहा कि अफसरों को हिंदू-मुस्लिम में बांटते हैं और खुद को धर्मनिरपेक्ष कहते हैं यह कौन सा सेक्युलरिज्म है भाई? बता दें कि ओवैसी हर मंच से खुद को ‘सेक्युलर’ नेता बताते हैं पर जिस राज्य में जाते हैं, जिस मंच से बोलते हैं वहां हिन्दू-मुस्लिम का राग अलापते हैं। ऐसे में अमित शाह ने उन्हें आईना दिखाने का काम किया है।

अमित शाह ने असदुद्दीन ओवैसी की पोल खोलने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने आगे कहा, ओवैसी साहब यह कहते हैं कि 2जी और 4जी इंटरनेट सेवा विदेशियों के दबाव में आकर बहाल की गई है। उनको नहीं पता है कि ये यूपीए सरकार नहीं, नरेंद्र मोदी की सरकार है, को देशहित में निर्णय लेती है, उसके विरुद्ध नहीं”

उन्होंने कहा कि ” यहां कहा गया कि आर्टिकल 370 हटाने के वक्त जो वादे किए गए थे, उनका क्या हुआ? मैं उसका जवाब जरूर दूंगा लेकिन पूछना चाहता हूं कि अभी तो आर्टिकल 370 को हटे हुए केवल 17 महीने हुए हैं, आपने 70 साल क्या किया उसका हिसाब लेकर आए हो क्या? उन्होंने कहा कि किसके दबाव में धारा 370 को इतने समय तक चालू रखा? आप 17 महीने में हिसाब मांगते हो, 70 साल तक जब अस्थायी धारा 370 चली उस वक्त हिसाब क्यों नहीं मांगते थे? अस्थायी प्रावधान को नहीं उखाड़ा, क्योंकि वोट बैंक की राजनीति करनी थी

यहां पर अमित शाह का निशाना स्पष्ट तौर पर उन लोगों पर था जो वर्षों तक धर्म के नाम पर कश्मीर और उसके आसपास के क्षेत्रों में वैमनस्य फैला रहे थे। जिस प्रकार से ओवैसी ने प्रशासनिक कैडर में कम मुसलमान अफसरों की बात उठाई, उससे स्पष्ट था कि उनका मूल उद्देश्य क्या था, और उन्हें क्यों तर्क और व्यावहारिक ज्ञान से कोई मतलब नहीं।

लेकिन शायद ओवैसी यह भूल गए हैं कि ये वही अमित शाह हैं, जिन्होंने 2019 में भी उनके खोखले दावों की धज्जियां उड़ाकर रख दी थी। जब तीन तलाक को रद्द करने के मुद्दे पर ओवैसी हो हल्ला मचा रहे थे, तो अमित शाह ने उन्हें मानो हड़काते हुए कहा, सुनने की क्षमता रखें ओवैसी साहब,  इस तरह से नहीं चलेगा,  आपको सुनना पड़ेगा!”

जिस प्रकार से असदुद्दीन ओवैसी ने धर्म के नाम पर सदन के अंदर और बाहर सेक्युलरता का राग अलापते हैं उसकी अमित शाह ने ऐसी-तैसी कर दी है। जिस प्रकार से अमित शाह ने सदन में उनके खोखले दावों की धज्जियां उड़ाई है, उससे स्पष्ट होता है कि ओवैसी को अमित शाह से किसी भी तरह की बहस करने से पहले अपने तर्कों और तथ्यों पर विशेष काम करके आना चाहिए अन्यथा बोलती बंद करने में अमित शाह अधिक समय नहीं लगाएंगे।

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