White House में जब से जो बाइडन ने प्रवेश किया है, तभी से वे मानो अमेरिका के इज़रायल और अरब देशों के साथ सम्बन्धों को खराब करने की दिशा में एक के बाद एक कदम उठा रहे हैं। एक तरफ जहां बाइडन वापस ईरान न्यूक्लियर समझौते को पुनर्जीवित कर ईरान को राहत देने की कोशिशों में जुटे हैं, तो वहीं वे लगातार सऊदी अरब और इज़रायल को चिंतित करने वाले कदम उठा रहे हैं। हालांकि, अब लगता है कि पश्चिम एशिया में बाइडन के इस इज़रायल और अरब विरोधी रथ को रोकने के लिए इज़रायल और भारत मिलकर एक योजना तैयार कर चुके हैं।
हाल ही में पश्चिम एशिया में भारत को एक बड़ी कूटनीतिक जीत मिली। OPEC देशों ने भारत की धमकी के बाद एशिया में तेल के दाम को नहीं बढ़ाने का फैसला लिया है। अब मार्च महीने में भी भारत को पहले के कम दाम पर ही तेल मिलता रहेगा जबकि उत्तर अमेरिका और यूरोप के लिए OPEC ने तेल के दाम बढ़ा दिये हैं। OPEC के इस फैसले से स्पष्ट होता है कि अपनी विदेश नीति में अरब के ये देश भारत को कितना महत्वपूर्ण स्थान देते हैं। इसी के साथ अरब देशों ने यह भी संकेत दिया है कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के जाने के बाद अब पश्चिम एशिया में शांति बनाए रखने के लिए उन्हें मोदी प्रशासन से ही सबसे ज़्यादा उम्मीद हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि अरब देशों, इज़रायल के साथ-साथ भारत के ईरान के साथ भी मजबूत संबंध हैं।
ट्रम्प प्रशासन के समय अरब देशों और इज़रायल के बीच साइन किए गए Abraham Accords के खिलाफ पहले ही बाइडन प्रशासन का रुख देखने को मिल चुका है। हालांकि, अरब देश भी इस बात को भलि-भांति समझते हैं कि अगर पश्चिम एशिया में शांति बनाए रखनी है तो उन्हें ट्रम्प की “Israel First” की नीति को ही आगे बढ़ानी होगी। इसी का नमूना हमें तब देखने को मिला जब इसी हफ्ते UAE और बहरीन ने एक बड़ा फैसला लेते हुए फिलिस्तीन को प्रदान की जाने वाली आर्थिक सहायता में कटौती करने का ऐलान किया। इन दोनों देशों ने यह फैसला तब लिया जब पहले ही बाइडन दोबारा फिलिस्तीन को आर्थिक प्रदान करने का फैसला ले चुके हैं। UAE और बहरीन ने साफ कर दिया है कि वे बाइडन की फिलिस्तीन और इज़रायल नीति को समर्थन नहीं देते हैं।
कुल मिलाकर बात यह है कि UAE और बहरीन जैसे देश जहां खुलकर इज़रायल का समर्थन कर रहे हैं तो वहीं सऊदी अरब और बाकी अरब देश भारत का भी खुलकर साथ दे रहे हैं। ये सभी अरब देश मिलकर पाकिस्तान के खिलाफ एक से बढ़कर एक कदम उठा चुके हैं, फिर चाहे वे राजनीतिक हों और या फिर आर्थिक! साथ ही भारत के कहने के बाद OPEC द्वारा एशिया में तेल के दाम कर रखना भी दर्शाता है कि अब सऊदी अरब भारत को नाराज़ नहीं करना चाहता।
भारत पश्चिम एशिया को अपने पड़ोस के रूप में ही देखता है और पिछले छः महीनों के दौरान भारत ने पश्चिम एशिया के देशों के साथ बातचीत को बेहद तीव्र कर दिया है। उदाहरण के लिए 28 जनवरी को पीएम मोदी ने जहां आबु धाबी के क्राउन प्रिंस शेख मोहम्मद बिन जायद से फोन पर बात की थी तो वहीं ठीक एक दिन बाद ही पीएम मोदी ने बहरीन के क्राउन प्रिंस और प्रधानमंत्री सलमान बिन हमाद से रणनीतिक मुद्दों पर चर्चा की थी।
इतना ही नहीं, पिछले वर्ष नवंबर महीने में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पश्चिम एशिया की अपनी 6 दिवसीय यात्रा के दौरान UAE और बहरीन का दौरा किया था। साथ ही दिसंबर 2020 में भारत के सेना प्रमुख ने पहली बार UAE और सऊदी अरब की यात्रा भी की थी। इससे स्पष्ट होता है कि भारत आज से नहीं, बल्कि पिछले कुछ महीनों से लगातार अरब देशों के साथ रणनीतिक और कूटनीतिक तौर पर नजदीकी बढ़ाने के प्रयास कर रहा है, और अब जब बाइडन प्रशासन अमेरिका की सत्ता संभाल रहा है तो भारत अपनी इसी कूटनीतिक शक्ति का इस्तेमाल करते हुए इन देशों में शांति कायम रखने के मुख्य भूमिका में आ चुका है। भारत और इज़रायल मिलकर यह सुनिश्चित करेंगे कि बाइडन आगामी चार वर्षों के दौरान अपनी विनाशकारी नीतियों के बल पर पश्चिम एशिया में शांति को बिगाड़ न पाएँ।