वैश्विक महाशक्ति बनने की इच्छा रखने वाले भारत देश में आज भी कई ऐसे शहर हैं जो ट्रैफिक, पीने योग्य पानी की कमी, प्रदूषण जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं। मोदी सरकार के कार्यकाल के पहले तो स्थिति और दयनीय थी जब देश की बड़ी आबादी बिना गैस कनेक्शन, बिना बैंक खाते, बिना शौचालय की सुविधा आदि मुसीबतों में जीवनयापन करने को मजबूर थी। लेकिन अब व्यक्तिगत स्तर की समस्याओं को सुलझाने के बाद आवश्यक है कि लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाया जाए।
इसके लिए सबसे आवश्यक है 21वीं शताब्दी के अनुसार शहरों का विकास हो। भारत में नेशनल हाईवे की योजना के तहत बड़ी तेजी से हाइवे और एक्सप्रेस वे बन रहे हैं। सरकार मल्टी लॉजिस्टिक पार्क पर कार्य कर रही है जिससे निर्यात में सुविधाओं का विकास हो। किंतु बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर के तहत बेतरतीब हो रहे शहरीकरण को रोकना बहुत जरूरी है। बेंगलुरु, सूरत, हैदराबाद जैसे शहरों में जिस तेजी से नौकरीयां सृजित हो रही हैं, उसके कारण जनसंख्या का दबाव तेजी से बढ़ रहा है।
यही कारण है कि इस बार बजट का एक मुख्य अवयव शहरी विकास भी था। दिल्ली पर दबाव कम करने के लिए फरीदाबाद, नोएडा, गुरुग्राम, गाजियाबाद जैसे शहरों को बसाया गया है, उसी प्रकार आवश्यक है कि मुंबई, पटना, सूरत, हैदराबाद आदि बड़े शहरों का भी विस्तार किया जाए। पीने योग्य पानी की सुविधा, जल निकासी, गैस पाइपलाइन आदि की सुविधा को सुनिश्चित करके इन शहरों का विकास किया जाना आवश्यक है, अन्यथा तेजी से बढ़ते यह शहर, अपनी जनसंख्या के दबाव में, जीने योग्य नहीं रहेंगे।
ऐसी समस्या बेंगलुरु में खुलकर सामने आई है, जहां पीने योग्य पानी की भारी कमी हो चुकी है। यही कारण है कि बजट में भी ‘Sustainable Development’ के लिए धन मुहैया करवाया गया है। इसके तहत पहले से चल रही प्रधानमंत्री आवास योजना के लिए करीब 27 हजार करोड़, Atal Mission for Rejuvenation and Urban Transformation (AMRUT) या कहें स्मार्ट सिटी योजना के लिए 13,750 करोड़ दिया गया है। स्वच्छ भारत मिशन 2.0 शुरू किया गया है और जल शक्ति मंत्रालय को पांच वर्षों के लिए 2,87,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जिसमें 50 हजार करोड़ जल जीवन मिशन के लिए होंगे।
हम शहरों के विकास के मामले में चीन को उदाहरण मान सकते हैं। चीन ने शहरों के विकास के दम पर ही लंबे समय तक लगातार दहाई की विकास दर बनाई रखी। चीन में कई ऐसे शहर हैं जो खाली पड़े हैं, जिनमें कोई रहता ही नहीं। चीन की ‘घोस्ट सिटी’ का निर्माण ही चीन में व्यापार के विकास के लिए सहायक रहा। भारत की PLI जैसी योजनाओं की तरह चीन भी उद्यमियों को मदद करता है कि वह ऐसे शहरों में अपने उद्यम लगाए, जिससे पहले से बने शहरों में आबादी को बसाया जाए। अर्थात चीन शहर तैयार रखता है और आदमी और उद्योग बाद में आते हैं।
भारत को घोस्ट सिटी बनाने की जरूरत नहीं है क्योंकि हमारे यहाँ वैसे ही शहरों पर जनसंख्या का दबाव बहुत अधिक है। आवश्यकता है इस जनसंख्या के पुनर्विन्यास की। बड़े शहरों के डिब्बे जैसे मकानों में जी रहे लोगों को आस पास के नए बने शहरों में स्थानांतरित करना समय की मांग है।