“हमें बाइडन की नीति से कोई फर्क नहीं पड़ता”, बाइडन के खिलाफ इज़रायल-सऊदी अरब का ऐलान

बाइडन

White House में जो बाइडन की एंट्री के बाद से ही अमेरिका अपने सबसे विश्वसनीय साथियों के खिलाफ अभियान छेड़ता दिखाई दे रहा है। बाइडन प्रशासन आते ही इज़रायल और सऊदी अरब जैसे अमेरिकी साझेदारों के खिलाफ इतने कदम उठा चुका है कि अब इन देशों ने भी अमेरिका को किनारे करना शुरू कर दिया है। इज़रायल और सऊदी अरब ने अब एक ही सुर में बाइडन प्रशासन को कड़ा संदेश देते हुए कहा है कि उनपर बाइडन की middle east पॉलिसी का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, और वे अब भी ट्रम्प प्रशासन के समय अपनाई गयी नीतियों को लेकर ही आगे बढ़ेंगे।
सऊदी अरब ने हाल ही में तब बाइडन प्रशासन को बड़ा झटका दिया जब UN में मौजूद सऊदी अरब के स्थायी राजदूत ने स्पष्ट किया कि सऊदी अरब अब भी यमन के हाऊथी लड़ाकों को आतंकवादी का दर्जा देना जारी रखेगा। बता दें कि अमेरिका ने बाइडन के आने के बाद हाऊथी आतंकियों को ट्रम्प प्रशासन द्वारा दिये गए आतंकी संगठन के दर्जे को वापस लेने का ऐलान किया था। बाइडन प्रशासन के मुताबिक हाऊथी लड़ाकों को आतंकवादी का दर्जा देने के कारण यमन में मानवीय संकट पैदा हो सकता है, जिसके कारण उसने ट्रम्प के फैसले को पलटने का फैसला लिया। अमेरिका के इस फैसले के बाद अब सऊदी अरब ने UN में कहा है “अब हम भी हाऊथी लड़ाकों को आतंकवादी का दर्जा देना जारी रखेंगे, ताकि हम हाऊथी के खतरे से निपट सकें।”

इसी प्रकार बाइडन ने सत्ता में आने के बाद जिस प्रकार फिलिस्तीन के समर्थन में अपनी आवाज़ उठाई है, उसके बाद इज़रायल-अमेरिका के बीच तनाव बढ़ना शुरू हो गया है। हाल ही में बाइडन ने इजरायल के विरुद्ध फैसला करते हुए फिलिस्तीनी शरणार्थियों को दी जाने वाली आर्थिक मदद पुनः बहाल कर दी, यह जानते हुए की इन शरणार्थियों में से कई, इजरायल विरोधी आतंकी घटनाओं में संलिप्त रहते हैं। उन्होंने वेस्ट बैंक पर इजराइली आधिपत्य को मान्यता देने से इनकार किया और द्विराष्ट्र सिद्धांत का समर्थन किया। इसके बाद इज़रायल ने भी अमेरिका के खिलाफ अपनी आवाज़ को बुलंद कर दिया है।

बीते शनिवार को ही अमेरिका में मौजूद इजरायली राजदूत ने एक बड़ा बयान देते हुए कहा “बेंजामिन नेतनयाहू को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि बाइडन ने अब तक उन्हें फोन कॉल नहीं किया है।” बता दें कि बाइडन अब तक दुनियाभर के कई राष्ट्राध्यक्षों से फोन पर बात कर चुके हैं, लेकिन अब तक उन्होंने नेतनयाहू को कॉल नहीं किया है। कुछ एक्सपर्ट्स का मानना है कि नेतनयाहू और ट्रम्प की दोस्ती की वजह से बाइडन नेतनयाहू से खफ़ा हैं। हालांकि, इज़रायल को उससे कोई फर्क नहीं पड़ता है।

बाइडन प्रशासन इस बात को स्वीकारने से भी कतरा रहा है कि इज़रायल और सऊदी अरब अमेरिका के “महत्वपूर्ण साथी” हैं भी या नहीं! इसका नमूना तब देखने को मिला जब हाल ही में White House की प्रैस सचिव जेन साकी से यह पूछा गया कि क्या बाइडन प्रशासन इज़रायल और सऊदी अरब को महत्वपूर्ण साथी के तौर पर देखता है? इसका उत्तर देते हुए साकी ने कहा था “अभी अमेरिका की संबन्धित एजेंसियां इस मुद्दे पर गहनता से विचार कर रही हैं और वे middle east से जुड़े कई मुद्दों पर निष्कर्ष निकालने वाली है”।

यह सब तब हो रहा है जब बाइडन प्रशासन एक के बाद एक फैसलों में सऊदी अरब को निशाने पर ले रहा है। उदाहरण के तौर पर सऊदी अरब और UAE को अमेरिकी हथियार बेचने के समझौते पर रोक लगाना हो, या फिर ईरान को वापस न्यूक्लियर डील में शामिल करने को लेकर दोबारा अमेरिका की ओर से सक्रिय भूमिका निभाया जाना हो! ऐसे में अब सऊदी अरब और इज़रायल दोनों मिलकर अमेरिका को कम से कम महत्व दे रहे हैं, जो दर्शाता है कि ट्रम्प के समय अमेरिका के सबसे करीबी रहे दो देश अब अमेरिका को डंप करते दिखाई दे रहे हैं।

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