बाइडन ओबामा के अहंकार की तृप्ति करने और ट्रम्प को नीचा दिखाने के लिए ईरान के सामने झुक गये हैं

बाइडन की घटिया राजनीति!

बाइडन

यदि बाइडन के राष्ट्रपति बनने के बाद पहले महीने में कुछ स्पष्ट हुआ है, तो यह है कि वह Joint Comprehensive Plan of Action (JCPOA) यानी ईरान परमाणु समझौते को पुनर्जीवित करने के लिए बेताब है। बाइडन इस सौदे को फिर से लागू करने के लिए इतने बेताब है कि ट्रम्प द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों को हटा रहे हैं, ​​इस सब को देखते हुए तेहरान भी अब यह समझ चुका है कि बाइडन के लिए यह सौदा कितना महत्वपूर्ण है। इसलिए, ईरान अमेरिकी राष्ट्रपति से अधिक से अधिक राहत की मांग कर रहा है, भले ही उसका परमाणु कार्यक्रम लगातार क्यों न चल रहा हो।

वास्तव में तेहरान फ्रंटफुट पर खेल रहा है और अब उसे अमेरिका से किसी प्रकार का डर नहीं है।  ईरान ने International Atomic Energy Agency (IAEA) से अपनी परमाणु सुविधाओं पर नजर रखने का अधिकार छीन लिया है लेकिन फिर भी, बाइडन इस सौदे के लिए जोर दे रहे है। यह स्पष्ट है कि अमेरिकी राष्ट्रपति के लिए, (JCPOA) एक राजनीतिक मजबूरी है और इस प्रक्रिया में, उन्होंने शिया राष्ट्र को एक रणनीति जीत थाली में परोस कर दे दी है।

किसी भी अमेरिकी राष्ट्रपति के लिए, ईरान को फ्रंटफुट पर खेलने देना किसी दुःस्वप्न से कम नहीं है। वही अब तेहरान ने भी अमेरिकी प्रशासन को ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया तो यह एक बहुत बड़ी रणनीतिक हार है।

ऐसे में यह सवाल उठता है कि बाइडन ईरान को इस तरह फायदा क्यों दे रहे हैं? वह (JCPOA) के लिए इतने बेताब क्यों हो रहे हैं? तथ्य यह है कि बाइडन के लिए यह एक रणनीतिक योजना की तुलना में राजनीतिक मुद्दा है अधिक है। यह बाइडन के पास अपने आप को और डेमोक्रेट्स को साबित करने के लिए एक मुद्दा है। उन्हें ओबामा की गलती को ठीक करना तथा डोनाल्ड ट्रंप को नीचा दिखाना है।

बता दें कि JCPOA बाइडन के पूर्व बॉस, बराक ओबामा के दिमाग की उपज थी। तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा JCPOA  को अमेरिका-ईरान संबंधों में एक सफलता का कारण मानते थे।  वास्तव में, वह विश्व को यह दिखाना चाहते थे कि उनके द्वारा किया गया 2015 का परमाणु समझौता ईरान ‘परमाणु मुक्त’ की दिशा में एक ठोस कदम था।

जनवरी 2016 में, ओबामा ने कहा था कि, “16 जनवरी, 2016 को अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी ने सत्यापित किया कि ईरान ने परमाणु समझौते के तहत आवश्यक कदम पूरे कर लिए हैं, जो ईरान के परमाणु कार्यक्रम को सुनिश्चित करेगा और विशेष रूप से शांतिपूर्ण रहेगा।” इसलिए, यदि ईरान का परमाणु कार्यक्रम “विशेष रूप से शांतिपूर्ण” की तुलना में अगर कुछ भी अलग हुआ, तो यह ओबामा के लिए काफी शर्मनाक होगा।

हालांकि, ट्रम्प JCPOA और ओबामा की विदेश नीति दोनो को डंप करने में कामयाब रहे। 2018 में JCPOA से हटाने के दौरान, उन्होंने यह संदेश दिया कि ओबामा की JCPOA पहल कितनी बड़ी विफलता थी। वहीं दूसरी ओर, ओबामा अपने नैरेटिव को नियंत्रित करने में विफल रहे।

वास्तव में, ट्रम्प ने ईरान को परमाणु समझौते से बाहर कर ओबामा को एक गहरी चोट दी थी। उन्होंने तब कहा था, “मेरा मानना ​​है कि समझौते में किसी भी ईरानी उल्लंघन के बिना JCPOA को जोखिम में डालने का निर्णय एक गंभीर गलती है।”

JCPOA को लेकर ओबामा बहुत भावुक हैं। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति ने यहां तक ​​दावा किया था कि, ” JCPOA काम कर रहा है – जो कि हमारे यूरोपीय सहयोगियों, स्वतंत्र विशेषज्ञों और वर्तमान अमेरिकी रक्षा सचिव द्वारा साझा किया गया दृष्टिकोण है। JCPOA अमेरिका के हित में है – इसने ईरान के परमाणु कार्यक्रम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ”

फिर भी, ट्रम्प ने तेहरान पर दोबारा प्रतिबंधों को लगा दिया जिस पर ओबामा प्रशासन ने JCPOA के तहत राहत दिया था।  ट्रंप ने पिछले साल जनवरी में कहा, “2013 में मूर्खतापूर्ण ईरान परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने के बाद ईरान की शत्रुता काफी बढ़ गई थी।”  उन्होंने कहा था, ” अमेरिका को धन्यवाद कहने के बजाय, उन्होंने ‘Death to America’ का नारा लगाया था।”

वास्तव में, जब पिछले साल जनवरी में ईरान और अमेरिका के बीच तनाव बढ़ गया था, तो ट्रम्प ने घोषणा की, ” जिन मिसाइलों ने हमें और हमारे सहयोगियों को निशाना बनाया था उसे अंतिम प्रशासन द्वारा फंड दिया गया था।” ईरान की आक्रामकता ने यह साबित कर दिया था जो ट्रंप अपने बातों में बार-बार कह रहे थे।

अब, हर अमेरिकी राष्ट्रपति के लिए ईरान एक महत्वपूर्ण विदेश नीति का मुद्दा रहा है क्योंकि इस शिया राष्ट्र ने अपनी परमाणु महत्वाकांक्षाओं को और आक्रामकता से पूरा करना शुरू कर दिया है। स्वाभाविक रूप से, ओबामा और उनके करीबी समर्थक आज भी उनकी ईरान नीति के बारे में चिंतित रहते हैं।

इसलिए, बाइडन यहां ट्रम्प की “अधिकतम दबाव” वाले नीति को हटा देना चाहते है और ओबामा के परमाणु समझौते को फिर से बहाल करना चाहते हैं। वो चाहते हैं कि, एक बार फिर से अमेरिका ओबामा की ईरान नीति लागू करे। यही नहीं बाइडन यह भी प्रोजेक्ट करना चाहते हैं कि ओबामा की परमाणु डील अमेरिका की एक रणनीतिक जीत है जिससे ओबामा हीरो बने रहे।

JCPOA को पुनर्जीवित करना सामरिक दृष्टिकोण से अमेरिका के लिए विनाशकारी है। यह पहले की तरह ईरान को और सशक्त करने जा रहा है।  फिर भी, बाइडन अपने पूर्व बॉस के लिए यह करना है।

अंततः, बाइडन अमेरिका के इतिहास में एक कमजोर राष्ट्रपति के रूप में जाने जाएंगे। बाइडन की ईरान नीति अमेरिका को नुकसान पहुंचा रही है और अमेरिकी राष्ट्रपति ईरान को विशुद्ध रूप से राजनीतिक कारणों के चलते जीत को थाली में परोस कर दे रहे हैं।

 

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