बाइडन के सत्ता सम्भालने से पूर्व यह लग रहा था कि भारत और अमेरिका के रिश्तों में आने वाले 4 साल कठिनाईपूर्ण होने वाले हैं। किंतु अब तो यह लग रहा है कि बाइडन ट्रम्प प्रशासन की सारी उपलब्धियों को खत्म करने और भारत अमेरिका संबंधों की नींव खोदने में लगे हैं।
न्यूयॉर्क स्टेट असेम्बली ने प्रस्ताव पारित करके 5 फरवरी को कश्मीर-अमेरिका दिवस के रूप में मनाने का निर्णय किया है। यह खुले तौर पर भारत के आंतरिक मामले में अमेरिकी विधायिका का हस्तक्षेप है। यह ऐसा है जैसे भारत के किसी राज्य विधानसभा द्वारा, अमेरिका के किसी राज्य को लेकर कोई प्रस्ताव पारित कर दिया जाए।
न्यूयॉर्क राज्य की असेम्बली के इस प्रस्ताव पर भारतीय दूतावास ने प्रतिक्रिया भी दी और बताया कि “जम्मू-कश्मीर भारत का एक अभिन्न और अविभाज्य अंग है। जम्मू-कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश है, और भारत का अभिन्न अंग बना रहेगा। भारत ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को यह भी स्पष्ट रूप से कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 370 को हटाना उसका आंतरिक मामला था।”
यह कोई नया मामला नहीं, हाल ही में अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस की भतीजी मीना हैरिस ने भी भारत के खिलाफ जहर उगला था। उन्होंने किसान आंदोलन पर टिप्पणी की थी। किसानों का आंदोलन भारत का अंदरूनी मामला है, किसान भारतीय संसद द्वारा लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत पारित एक कानून के विरोध में बैठे हैं। विरोध उनका लोकतांत्रिक अधिकार है और भारत सरकार उनसे लगातार चर्चा कर रही है। किसी अन्य व्यक्ति को इस पर टिप्पणी की आवश्यकता नहीं थी, किंतु मीना हैरसी ने टिप्पणी तो की ही, भारत में लोकतांत्रिक तरीके से चुने हुए नेता को फासीवादी भी करार दिया।
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देखा जाए तो टूलकिट प्रकरण द्वारा बहुत कुछ सामने आया है। यह साफ हो गया है कि कुछ निहित स्वार्थी लोगों ने भारत सरकार कि, ‘चाय और योग’ वाली छवि को बर्बाद करने और उसे दुनिया के सामने फासीवादी घोषित करने के लिए एक बड़ी साजिश रची। अभी यह साफ नहीं कि मीना हैरिस भी उन लोगों में शामिल हैं कि नहीं, किंतु यह जरूर पता चल गया है कि मीना हैरिस का वैचारिक झुकाव ऐसे ही स्वार्थी और भारत विरोधी तत्वों की ओर है।
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मीना हैरिस की टिप्पणियों की बात ही नहीं है, देखा जाए तो कमला हैरिस भी भारत सरकार को लेकर कोई सकारात्मक विचार नहीं रखती। उन्होंने भी पूर्व में जम्मू कश्मीर को लेकर भारत विरोधी बयानबाजी की है। हालांकि बाद में जब उन्हें यह समझ आ गया कि डेमोक्रेट्स को चुनाव जीतने के लिए, भारतीय-अमेरिकी वोटों की आवश्यकता है तो उन्हें अपने भारतीय मूल का होने की बात याद आ गई।
मीना हैरिस की टिप्पणियों के बाद अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने अवश्य ही ‘Damage Control’ की कोशिश की तथा कृषि कानूनों की तारीफ की। लेकिन मूल बात जस की तस ही है कि जम्मू कश्मीर हो या कृषि कानून, सभी बातें भारत की अंदरूनी मामले हैं तो कोई अमेरिकी इसपर टिप्पणी ही क्यों करेगा।
बाइडन प्रशासन में कुछ तत्वों द्वारा मोदी सरकार की आलोचना मात्र ही टकराव का कारण नहीं है। बाइडन की नीतियां भी भारत विरोधी होती जा रही हैं। अमेरिका और भारत के सहयोग का मुख्य आधार ‘चीन को रोकना’ है। किंतु बाइडन ने यह साफ कर दिया है कि वह चीन से सहयोग के लिए तैयार हैं। वह ताइवान को लेकर चीन की आक्रामकता पर भी मौन हैं और इंडो पैसिफिक को लेकर ट्रम्प की नीति भी बदलने वाले हैं।
Secure and Prosperous Indo Pacific की नीति अपनाकर बाइडन अमेरिका के हितों को बहुत नुकसान पहुंचा रहे हैं। बाइडन यह भूल रहे हैं कि जितनी आवश्यकता भारत को अमेरिका की है उससे अधिक आवश्यकता अमेरिका को भारत की है। भारत स्वयं चीन का मुकाबला करने में सक्षम है, किंतु चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए अमेरिका को भारत की अत्यधिक आवश्यकता है।
चीन कई बार भारत को यह कह चुका है कि भारत अमेरिका और पश्चिमी देशों के बजाए चीन का साथ दे। चीन यह जानता है कि उसके वैश्विक महाशक्ति बनने के मार्ग में एकमात्र भारत से सम्बंध खराब करना अमेरिका के लिए ही हानिकारक होगा।