मैक्रोन ने फ्रांस में Islamo-Leftism फैलाने वाले Liberal विश्वविद्यालयों की जांच शुरू कर दी है

भारत को भी ऐसा करना चाहिए....

इन दिनों फ्रांस वामपंथियों और कट्टरपंथी मुसलमानों के लिए नया सरदर्द बना हुआ है। सैमुएल पैटी की जघन्य हत्या के बाद से फ्रांस ने कट्टरपंथी मुसलमानों के आतंक को ध्वस्त करने के लिए जो लड़ाई प्रारंभ की है, वो अब नहीं रुकने वाली। अभी हाल ही में फ्रांस ने तय किया है कि शैक्षणिक संस्थानों में जो वामपंथ और कट्टरपंथी इस्लाम का विष घोला जा रहा है, उसे मुंहतोड़ जवाब देने के लिए फ्रांसीसी सरकार आवश्यक कदम उठाने को तैयार है, जिससे भारत भी बहुत कुछ सीख सकता है।

हाल ही में फ्रांस की उच्च शिक्षा मंत्री फ़्रेडरीके विडाल ने बताया कि अब समय आ चुका है जब फ्रांस के शैक्षणिक संस्थानों में वामपंथ और इस्लाम के खतरनाक मिश्रण यानि Islamo Leftism की भावना को जड़ से उखाड़कर फेंका जाए। उनके अनुसार,
“मुझे लगता है कि वामपंथ और कट्टरपंथी इस्लाम हमारे समाज को खा जाएगा, यदि हमने सही समय पे आवश्यक कदम नहीं उठाए। हमारे शैक्षणिक संस्थान, विशेषकर हमारे विश्वविद्यालय भी इस खतरे से सुरक्षित नहीं है। मैंने हाल ही में शोधकर्ताओं द्वारा हर वस्तु को तोड़ मरोड़कर देखने की प्रवृत्ति और उनके वामपंथी विचारधारा की ओर ध्यान देते एक गहन जांच की व्यवस्था भी की है

पिछले वर्ष अक्टूबर में शिक्षा मंत्री जॉन मिशेल ब्लैंकर ने इसी खतरे से फ्रांस को सतर्क रहने की सलाह भी दी थी। लेकिन इसका भारत से क्या संबंध है? दरअसल वामपंथ और कट्टरपंथी इस्लाम को बढ़ावा देने में हमारे भी कई शैक्षणिक संस्थान पीछे नहीं है। जहां दिल्ली विश्वविद्यालय एवं आईआईटी, आईआईएम जैसे संस्थानों में स्वच्छ प्रतिस्पर्धा मौजूद है, तो वहीं जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय और जादवपुर विश्वविद्यालय जैसे स्थान भी हैं, जहां वामपंथ और कट्टरपंथी इस्लाम के अलावा किसी और विचारधारा को पनपने ही नहीं दिया जाता।

लेकिन फ्रांस की बात करें तो वह यही तक सीमित नहीं है। हाल ही में फ्रेंच संसद में पारित विधेयक में  मस्जिदों और मदरसों पर सरकारी निगरानी बढ़ाने और बहु विवाह (polygamy) और जबरन विवाह (forced marriage) पर सख्ती का प्रावधान है। यह विधेयक फ्रांस की धर्मनिरपेक्ष परंपराओं को कमजोर करने वालों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की अनुमति देता है। इस बिल के समर्थन में 347 वोट पड़े जबकि 151 सांसदों ने इसका विरोध किया।

यह विधेयक फ्रांस ने पिछले वर्ष शिक्षक सैम्युएल पैटी की हत्या के परिप्रेक्ष्य में पारित किया है। राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने कहा है कि जेंडर इक्वेलिटी और सेक्युलरिज्म जैसे फ्रांसीसी मूल्यों की रक्षा किया जाना आवश्यक है, इसलिए ऐसे कानून देश हित में हैं। इस विधेयक के प्रति भारत ने भी अपनी रुचि दिखाई है, क्योंकि विधि मंत्री रविशंकर प्रसाद ने हाल ही में कहा था कि वे इस विधेयक का गहन विश्लेषण करेंगे।
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इसके अलावा टुकड़े टुकड़े गैंग से लेकर टूलकिट गिरोह में मुख्य आरोपी ऐसे लोग हैं, जिन्होंने शायद अपने कॉलेज की पढ़ाई भी पूरी नहीं की हो। ऐसे में जो फ्रांस में पनप रहा है, वही स्थिति भारत में भी है। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि फ्रांस के वर्तमान कदमों से भारत बहुत कुछ सीख सकता है, और उसे अपनी सुरक्षा और शिक्षा नीति में आत्मसात कर सकता है, ताकि वामपंथ और कट्टरपंथी इस्लाम का मिश्रण हमारे शैक्षणिक संस्थानों के लिए विनाशकारी न साबित हो।

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