महाराष्ट्र सरकार ने मुंबई दिघी पोर्ट अडानी को बेच दिया! आपको व्यंग समझ आया?

अडानी को गाली देने वाले, अब खुद उन्हें बंदरगाह बेच रहे हैं!

अडानी पोर्ट और स्पेशल इकनोमिक ज़ोन (APSEZ’s) ने देश में 12 बंदरगाहों को अधिग्रहित करने के क्रम में मुम्बई स्थित दिघी पोर्ट को भी अधिग्रहित किया है। 705 करोड़ रुपये की डील के तहत इस बंदरगाह का अधिकार महाराष्ट्र सरकार की ओर से अडानी ग्रुप को दे दिया गया है। यह वही महाराष्ट्र सरकार है जिसमें एक सहयोगी दल कांग्रेस है, जिसके सबसे बड़े नेता और राजकुमार राहुल गांधी मोदी सरकार पर अम्बानी-अडानी को लाभ पहुँचाने का आरोप लगाते रहे हैं।

वैसे यह अच्छा है कि महाराष्ट्र सरकार के मुखिया के पास इतनी बुद्धि है कि उन्होंने अपनी पार्टी शिवसेना और उसके सहयोगियों NCP और कांग्रेस की ओछी राजनीति के लिए महाराष्ट्र के विकास को दांव पर नहीं लगाया। दरसल इस समय भारत को आवश्यकता है विश्व स्तरीय मल्टीलॉजिस्टिक पोर्ट की, जो बिना निजी निवेश और सहयोग के सम्भव नहीं है।

भारत में निवेश की संभावनाएं असीमित हैं यह एक सर्वविदित तथ्य है। लेकिन निवेश आकर्षित करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण होता है मजबूत इंफ्रास्ट्रक्चर। इसके तहत केंद्र सरकार एक्सप्रेस वे की श्रृंखला बना रही है, कॉरपोरेट टैक्स में छूट दे रही है आदि कई महत्वपूर्ण बदलाव कर रही है। लेकिन अगर भारत को चीन की तरह वैश्विक सप्लाई चेन में सबसे बड़ा निर्यातक देश बनना है तो उसके लिए आवश्यक है कि भारत बेहतरीन सुविधा वाले बंदरगाहों का निर्माण करे।

बंदरगाहों को रेल रोड प्रोजेक्ट से जोड़ना, निर्यात के लिए आई वस्तुओं को बड़े पैमाने पर स्टॉक करना आदि कई जरूरतें पूरी किये बिना भारत का विश्व का बड़ा निर्यातक देश बनना सम्भव नहीं। भारत का विदेशी व्यापार वस्तु के हिसाब से 95% और वैल्यू के हिसाब से 70% बंदरगाहों से होता है। सागरमाला प्रोजेक्ट के तहत केंद्र 6 बड़े पोर्ट बना रही है, किंतु भारत को विकास की जो रफ्तार पकड़नी है, उसके लिए निजी क्षेत्र का सहयोग आवश्यक है।

राहुल गांधी लिखी हुई स्क्रिप्ट बोलने वाले नेता हैं। वह या तो मूर्ख हैं या धोखेबाज। यदि उनकी ही पार्टी की राज्य सरकारेंअडानी को समर्थन दे रही है तो राहुल गांधी संसद में खड़े होकर, देश के बड़े उद्योगपति और केंद्र सरकार, दोनों को बदनाम क्यों कर रहे हैं। यह एक उदाहरण नहीं है, राजस्थान की कांग्रेस सरकार ने भी अडानी ग्रुप को 5 सोलरप्रोजेक्ट बनाने की अनुमति दी है।

वास्तविकता यह है कि भारत का आर्थिक विकास बिना निजी क्षेत्र के सहयोग के सम्भव नहीं है। कांग्रेस पार्टी में भी लोग इस बात को समझते हैं लेकिन राहुल गांधी के डर से कोई खुलकर इस बात को स्वीकार नहीं करता। राहुल गांधी और उनके कुछ चुने हुए सहयोगी भारत में अप्रासंगिक हो चुके समाजवादी आर्थिक चिंतन से चिपके हुए हैं।

अडानी ग्रुप भारत के पूर्वी और पश्चिमी घाट पर कुल 12 पोर्ट अधिग्रहित कर रहा है। अकेले दिघी पोर्ट के विकास पर दस हजार करोड़ रुपये लगेंगे। जो लोग निजी क्षेत्र की प्रतिभागिता को गलत समझते हैं और समाजवाद के दकियानूसी आर्थिक चिंतन में फंसे हैं, उन्हें यह समझना चाहिए कि सरकार के लिए एक साथ इतने बड़े पैमाने पर इंफ्रास्ट्रक्चरप्रोजेक्ट चलाना सम्भव नहीं है। विशेष रूप से तब जब भारत के दो पड़ोसी सदैव युद्ध का माहौल बनाए रखते हैं और इस कारण भारत सरकार को अपनी आर्थिक प्राथमिकताओं को तय करने में सावधान रहना होता है। साथ ही इतने बड़े पैमाने पर सरकार द्वारा वेलफेयर योजनाओं का संचालन किया जा रहा है, यह सभी बातें सरकार के धन के आवंटन में इंफ्रास्ट्रक्चर विकास का भाग कम करते हैं। यहीं पर निजी क्षेत्र की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है।

भारत विकास के उस दौर में है जहाँ हमें अपने उद्योगपतियों पर विश्वास जताना होगा। प्रधानमंत्री मोदी ने संसद में दिए अपने भाषण में भी यह बात दोहराई। सरकार का इस वर्ष का बजट भी यही इशारा करता है कि सरकार निजी क्षेत्र के साथ चलने को तैयार है। स्टार्टअप से लेकर बड़े उद्योग तक सबका अपना महत्व है। राहुल गांधी जैसे लोगों को अपनी ओछी राजनीति से ऊपर उठना चाहिए, और निजी क्षेत्र को बदनाम करने से बचना चाहिए।

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