मेट्रो मैन ने दिशा रवि के activism पर बोला हमला, प्रदर्शन के नाम पर विकास से खिलवाड़ अब और नहीं

Nature के रक्षक या Development के भक्षक?

भारत में पर्यावरण के नाम पर हो रहे एक्टिविज़्म पर हमला करने वालों में अब मेट्रो मैन ई श्रीधरन भी शामिल हो चुके है। बीजेपी की केरल यूनिट में शामिल हुए ई श्रीधरन जिन्होंने देश की दो सबसे सफल बुनियादी ढांचा परियोजनाओं – दिल्ली मेट्रो और कोकण रेलवे दी है, उनका कहना है कि “mischievous activism” और दिशा रवि जैसे एक्टिविस्ट देश की छवि को खराब करते हैं।

उन्होंने The Print को दिए एक साक्षात्कार में कहा कि “मैं यह कहूँगा कि इससे देश की छवि खराब होती है।  इससे तुरंत निपटना चाहिए।  मैं यह नहीं कह रहा हूं कि उन्हें सलाख़ों के पीछे रखा जाए, लेकिन जो लोग (पहले) देश की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाते हैं, उन्हें निश्चित रूप से सबक मिलना चाहिए।”

जो भी बुनियादी ढांचे के निर्माण में शामिल रहा है उसे यह अनुभव है कि कैसे पर्यावरण एक्टिविस्ट विभिन्न महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को रोकने के लिए कई मुद्दों का तिल का ताड़ बनाते हैं। उदाहरण के लिए, किसान आंदोलन में एक्सपोज होने से पहले दिशा रवि आरे मेट्रो शेड परियोजना में भी सक्रिय थी जो अभी तक पूरा हो चुका होता। मुंबई मेट्रो के कामकाज में लाभ ही होगा, लेकिन रवि जैसे लोगों ने सुनिश्चित किया कि यह परियोजना सफल न हो।

Environmental activism के कारण पहले से ही सरकार और देश को अरबों डॉलर का नुकसान हो चुका है।  इंटेलिजेंस ब्यूरो ने 2014 में अपनी रिपोर्ट में दावा किया था कि विदेशी वित्त पोषित NGO भारत के विकास को रोक रहे हैं। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि देश भर में परमाणु और कोयला आधारित बिजली संयंत्रों के खिलाफ आंदोलन को प्रायोजित करके ये NGO “पश्चिमी सरकारों के विदेश नीति हितों के लिए उपकरण के रूप में काम कर रहे हैं।

रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि गैर-सरकारी संगठन नर्मदा बचाओ आंदोलन जैसे स्थानीय संगठनों के नेटवर्क के माध्यम से काम करते हैं। हैरानी की बात यह है कि ये एक्टिविज़्म भारत के GDP को 2-3% तक प्रभावित करते हैं।

रिपोर्ट में आईबी ने ग्रीनपीस पर विदेश से पिछले सात वर्षों में 45 करोड़ रुपये प्राप्त करने का आरोप लगाया था। एनजीओ के प्रमुख लक्ष्य कोल इंडिया लिमिटेड, हिंडाल्को, और आदित्य बिड़ला समूह जैसी कंपनियों के साथ भारत में कोयले से संचालित संयंत्रों के निर्माण का विरोध करना था।

हाल के स्टरलाइट प्लांट का मामला और उसके बाद हुए नुकसान एक प्रमुख उदाहरण है। सरकार द्वारा कार्रवाई के बावजूद, इको-फासीवादियों ने आरे मेट्रो शेड सहित कई परियोजनाओं को रोकने में कामयाबी हासिल की है।

Environmental activism के कारण आरे मेट्रो शेड की शिफ्टिंग के कारण करदाताओं को हजारों करोड़ रुपये का खर्च आया है। ठाकरे सरकार द्वारा गठित सरकारी समिति ने तर्क दिया था कि आरे कॉलोनी से कार शेड को स्थानांतरित करने से 4,000 करोड़ रुपये की लागत बढ़ेगी।

इस परियोजना में 400 करोड़ रुपये का पैसा पहले ही परियोजना पर खर्च किया गया था और अब इस परियोजना के स्थानांतरण के कारण लागत वृद्धि के 4,000 करोड़ रुपये का अनुमान लगाया जा रहा है।

इसलिए दिशा रवि जैसे Environmental activist की मनोकामना पूरा करने के लिए  लगभग 5,700 करोड़ रुपये बर्बाद किया गया है। और Bandra-SEEPZ मेट्रो लाइन के पूरा होने में कम से कम एक से दो साल की देरी है।

ई श्रीधरन को दिशा रवि जैसे एक्टिविस्ट के कारण होने वाले नुकसान के बारे में पता है। उन्होंने स्पष्ट कहा कि, “ये ऐसे लोग हैं जो मोदी सरकार से नाखुश हैं।  मोदी सरकार जो कुछ भी करती है, उसका विरोध किया जा रहा है। आखिर उन्हें समस्या क्यों पैदा करनी चाहिए, जब वे सरकार के साथ हाथ मिला सकते हैं और विरोध के बजाय रचनात्मक आलोचना कर सकते हैं?”

इसमें कोई संदेह नहीं है कि देश को ऐसे Environmental activists को एक्सपोज कर उन्हें किनारे करना होगा।

 

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