‘अगर हमारा विरोध किए तो सरकारी नौकरी भूल जाओ’, नीतीश कुमार का तुगलकी फरमान

नीतीश के अनुसार - बिहार में रहना है तो जंगल राज का समर्थन करना ही होगा!

नीतीश

(PC-ichowk)

यदि आप बिहार में हैं और सोच रहे हैं कि बिहार में बहार है तो थोड़ा रुकिए और सोचिए कि आप किस हद तक गलत हैं। बिहार सरकार ने अभी- अभी एक नया तुगलकी फरमान जारी किया है, जिसके अनुसार यदि आप सरकार के विरुद्ध कोई भी प्रदर्शन करते हैं तो आपके लिए सरकारी नौकरी पाना असंभव हो जाएगा। नीतीश कुमार के राज में बिहार फिर से एक जंगल राज के मुहाने पर खड़ा है परंतु जंगल राज से भी खतरनाक नियम और कानून बनाए जाने लगे हैं। नीतीश कुमार कुमार के पास अपने राज्य को ठीक से चलाने के लिए दो विकल्प थे, पहला तो यह था कि वो राज्य में कानून व्यवस्था और रोजगार के मुद्दे पर जमकर काम करें और दूसरा यह था कि जो लोग जंगल राज के खिलाफ विरोध करें उनको ही बंद कर दिया जाए। नीतीश कुमार ने दूसरा विकल्प चुना। परंतु यह विकल्प बिहार के लोगों को पसंद नहीं आया और इसके खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।

पहले वास्तविक स्थिति को समझते हैं कि आखिर मामला क्या है – एक फरवरी को बिहार पुलिस के DGP एस के सिंघल ने एक चिट्ठी सभी जिलों के एसपी को जारी की। 1 फरवरी 2021 को जारी इस चिट्ठी में लिखा है कि ”यदि कोई व्यक्ति किसी विधि-व्यवस्था की स्थिति, विरोध प्रदर्शन, सड़क जाम इत्यादि मामलों में संलिप्त होकर किसी आपराधिक कृत्य में शामिल होता है और उसे इस कार्य के लिए पुलिस द्वारा आरोप पात्रित किया जाता है तो उनके संबंध में चरित्र सत्यापन प्रतिवेदन में विशिष्ट एवं स्पष्ट रूप से प्रविष्टि की जाए। ऐसे व्यक्तियों को गंभीर परिणामों के लिए तैयार रहना होगा क्योंकि उनमें सरकारी नौकरी/सरकारी ठेके आदि नहीं मिल पाएंगे।’

नीतीश बाबू जो खुद जेपी आंदोलन की उपज रहे हैं इन्हें समझना होगा कि सरकार के कुशासन का विरोध करना जनता का अधिकार है और इसे कुचलकर मुख्यमंत्री जी अपनी कुर्सी तो क्या विधायिकी भी नहीं बचा सकते हैं। यहाँ नीतीश कुमार के फैसले से सीधा असर बिहार के उन हजारों, लाखों बेरोजगार युवाओं पर पड़ना तय है जो नीतीश के जंगल राज के विरोध में उठ खड़े हुए हैं। एक स्वाभाविक सी बात ये है कि नीतीश कुमार केवल रहमो करम के मुख्यमंत्री हैं , बिहार की जनता ने 43 सीट देकर उन्हें सिरे से खारिज कर दिया था परंतु लालू के जंगलराज से डरी हुई जनता ने भाजपा समर्थित नीतीश को एक बार फिर से मौका दिया परंतु नीतीश बाबू तो अपने साथ- साथ भाजपा की मिट्टी भी पलीद करने में लगे हुए हैं।

इस तरह के कानून बिहार को प्रभावित करेंगे ही साथ में भाजपा पर भी प्रश्नचिन्ह खड़े करेंगे जो सुशासन का दावा करते हुए जनमत पाई है। अगर यही सुशासन का मॉडल है तो बिहार की जनता इसे खारिज करने में दो पल भी नहीं लगाएगी। आज नीतीश कुमार को यह भी सोचना चाहिए कि सत्ता के नशे में वे खुद को बिहार न समझने लगें क्योंकि बिहार ही वह भूमि है जो नकारात्मक और निरंकुश सत्ता का विध्वंस करने के लिए जेपी आंदोलन खड़ा करने से भी पीछे नहीं हटती है।

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