अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने अपने हालिया बयान में कहा है कि उन्हें नहीं लगता कि पूर्व राष्ट्रपति ट्रम्प इस योग्य हैं कि उच्चस्तरीय खुफिया जानकारी उनके साथ साझा की जाए। दरअसल, अमेरिका में यह परंपरा रही है कि पूर्व राष्ट्रपति को देश की आंतरिक और बाहरी सुरक्षा से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारीयां उसी प्रकार उपलब्ध करवाई जाती हैं जैसे उनके राष्ट्रपति रहते होता है।
CNN को दिए गए इंटरव्यू में वर्तमान राष्ट्रपति बाइडन ने कहा कि उन्हें ऐसा नहीं लगता कि ट्रम्प को सूचनाएं दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा “मैं अधिक अटकलें नहीं लगाऊंगा…केवल इतनी बात है कि मुझे नहीं लगता कि उन्हें इंटेलिजेंस ब्रीफिंग देने की आवश्यकता है। उन्हें इंटेलिजेंस ब्रीफिंग देने का लाभ ही क्या है? वो कौन सा प्रभाव पैदा कर ही पाएंगे, सिवाए इसके कि उनके मुँह से कुछ निकल जाए या वो (इंटेलिजेंस से सम्बंधित) कोई बात बता दें”
बाइडन ट्रम्प पर पहले भी ऐसे आरोप लगाते रहे हैं कि वे इस योग्य नहीं कि राष्ट्रपति के रूप में कार्य करें जबकि दूसरी ओर बाइडन की अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में योग्यता को लेकर उन्हीं की पार्टी में संदेह की स्थिति रही है। पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा बाइडन के चुनाव के वक्त पार्टी के सामने यह बात स्पष्ट भी कर चुके थे कि बाइडन अपना चुनाव गड़बड़ कर देंगे।
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लेकिन जैसे तैसे बाइडन चुनाव जीत गए। संभवतः कोरोना ने अमेरिका की अर्थव्यवस्था को ध्वस्त न किया होता और लाखों लोगों की जान न गई होती तो यह चुनाव ट्रम्प के पक्ष में जाता।
वैसे भी बाइडन और ट्रम्प का आपसी सहयोग असम्भव है। बाइडन अमेरिका की घरेलू और विदेशी नीति में व्यापक बदलाव कर रहे हैं एवं ट्रम्प की सभी नीतियों को बदल रहे हैं। बाइडन ने इमिग्रेशन, विशेष रूप से मुस्लिम इमिग्रेशन, को लेकर भी ट्रम्प की नीति बदलने का फैसला किया है। इसके बाद यह संभावना बढ़ गई है कि अमेरिका को भी वैसे ही इस्लामिक कट्टरपंथ का सामना करना पड़ेगा, जैसे आज यूरोप कर रहा है।
वहीं, विदेश नीति की बात करें तो बाइडन, वहां भी ट्रम्प की योजनाओं को धराशायी करने का काम कर रहे हैं। ट्रम्प के कारण ही चीन घुटनों पर आ गया था। उसका टेक सेक्टर बर्बाद हो रहा था, 5G को लेकर उसे संघर्ष करना पड़ रहा था। पूर्वी एशिया के देश चीन के खिलाफ लामबंद होने लगे थे। मालदीव, श्रीलंका जैसे छोटे देश जिन्हें चीन ने डेब ट्रैप में फंसा लिया था, वे भी चीन के विरुद्ध खड़े होते, ऐसी संभावना बनने लगी थी किंतु बाइडन इन सभी समीकरणों को पलट रहे हैं।
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ताइवान की बात करें तो जहां ट्रम्प ताइवान से सैन्य डील करके उसे मजबूत बना रहे थे, वहीं बाइडन का रवैया इस ओर भी ढुलमुल ही है। चीन ने हाल ही में अपने फाइटर प्लेन भेजकर ताइवान को डराने की कोशिश की थी। उसने ताइवान को हमले की धमकी भी दी। लेकिन बाइडन इन सबको नजरअंदाज कर रहे हैं। उल्टे बाइडन तो चीन से क्षेत्रीय शांति के लिए सहयोग करने की बाते कर रहे हैं। हाल में खबर आई थी कि चीन और अमेरिका के बीच एक गुप्त बैठक भी हुई है।
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पश्चिम एशिया की बात करें तो ट्रम्प वहाँ भी शांति स्थापित करने में सफल हो रहे थे। ईरान बर्बाद होने के कगार पर था जबकि अरब इजराइल संबंध तेजी से सुधर रहे थे। ट्रम्प की सफलता का सबसे बड़ा उदाहरण अब्राहम एकॉर्ड है, जो पश्चिम एशिया में अमेरिकी विदेश नीति की सबसे बड़ी जीत है। लेकिन बाइडन ईरान समर्थक रुख अपनाएंगे यह साफ हो गया है। उन्होंने हूती विद्रोहियों के खिलाफ सऊदी का सहयोग करने से मना कर दिया है, वे फिलिस्तीनी मुद्दे पर इजराइल विरोधी रवैया अपनाने वाले हैं।
अमेरिकी नीतियों में जो बदलाव हो रहा है, उसे देखकर यह लगता है कि बाइडन कभी नहीं चाहेंगे कि ट्रम्प को उनकी जानकारी पहले ही हो। ट्रम्प एक कट्टर राष्ट्रवादी हैं, वे बड़े से बड़े लाभ के लिए भी अमेरिकी सुरक्षा को दांव पर नहीं लगने देंगे। ऐसे में अगर ट्रम्प को नीतियों में बदलाव की खबर पहले ही मिलने लगेगी तो वे खुलकर विरोध में भी उतर सकते हैं। जैसे ट्रम्प चीन से आर्थिक लाभ लेने के बदले ताइवान की स्वतंत्रता को कभी दाव पर नहीं लगने देंगे।
ट्रम्प को खुफिया जानकारी साझा करने पर बाइडन अपनी इच्छानुसार कार्य नहीं कर सकेंगे। यही कारण है की बाइडन ने यह फैसला लिया है कि पूर्व राष्ट्रपति को इंटेलिजेंस ब्रीफिंग की परंपरा अब बन्द कर दी जाएगी।
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