हाल ही में म्यांमार में एक बार फिर म्यांमार की सेना ने तख्तापलट करते हुए देश में आपातकाल घोषित कर दिया, और औंग सान सू की जैसे नेताओं को हिरासत में ले लिया गया। इससे एक बार फिर म्यांमार में सैन्य शासन का राज आ चुका है, जिससे अब वैश्विक राजनीति में उथल पुथल मची हुई है।
किसी लोकतान्त्रिक शासन का तख्तापलट शुभ संकेत तो कतई नहीं होता, और इसीलिए भारत म्यांमार की गतिविधियों पर निश्चित ही पैनी नजर रखेगा। लेकिन इस सैन्य आपातकाल के पश्चात जो म्यांमार उभर के आ सकता है, वो आश्चर्यजनक रूप से चीन के लिए किसी दुस्वप्न से कम न होगा।
ऐसा इसलिए है क्योंकि म्यांमार आर्मी की भले ही लोकतान्त्रिक शासन से अनबन हो, परंतु पिछले कई वर्षों से उसे चीन से कोई मित्रता करने में रुचि नहीं है। म्यांमार की सेना को रोहिंग्या घुसपैठियों और अराकान आर्मी जैसे उग्रवादियों से भी जूझना पड़ता है, जिनका चीन खुलेआम समर्थन करता है। इसके अलावा औंग सान सू की कुछ हद तक चीन से प्रभावित भी थी, जो उनके और सेना के बीच की तनातनी का एक अन्य कारण भी कहा जा सकता है।
ऐसे में यदि Myanmar की सेना देश की रणनीतियों पर प्रभाव डालती है, तो उसका प्रयास यही रहेगा कि उसके दुश्मनों का ज्यादा से ज्यादा नुकसान हो, जिसके लिए कहीं न कहीं उसे भारत की आवश्यकता अवश्य होगी। हालांकि उसे यह भी सुनिश्चित करना होगा कि म्यांमार में एक वर्ष के बाद लोकतान्त्रिक व्यवस्था बहाल होगी, अन्यथा आगे की राह मुश्किल हो सकती है।
हालांकि म्यांमार के सैन्य प्रमुख के बयान अधिक उत्साहवर्धक नहीं हैं, परंतु पिछले कुछ वर्षों में Myanmar और चीन के रिश्ते अब पहले जैसे नहीं रहे। जिस प्रकार से चीन Myanmar से फसलों के नाम पर उगाही करता है, और जिस तरह से वह अराकान आर्मी जैसे उग्रवादियों को बढ़ावा दे रहा है, उससे कहीं न कहीं म्यांमार सेना के अंदर रोष उमड़ रहा है। इसके अलावा जापान जैसे देश भी हैं, जो म्यांमार को चीन के प्रभाव से दूर रखना चाहते हैं। ऐसे में यदि म्यांमार की सेना संयम से काम लेती है, तो यहाँ पर चीन को उसी के जाल में फँसाया भी जा सकता है, जिसमें भारत निस्संदेह अपना पूरा सहयोग देगा
भले ही अभी म्यांमार में दोबारा सैन्य शासन आया हो, लेकिन सेना भी भली-भांति जानती है कि यदि संयम से काम नहीं लिया गया, तो जो चीन आज म्यांमार को गले लगाने के लिए तैयार है, वह कल उसके नागरिकों के जीवन को भी नरक से भी बदतर बना सकता है। ऐसे मे तख्तापलट के पश्चात का Myanmar ऐसा होगा जहां पर चीन का प्रभाव कम होगा, और भारत का प्रभाव अधिक होगा।