जब गुजरात के निकाय चुनावों की तारीख स्पष्ट हुई, तो कई लोगों की नजरें उन छह शहरों की ओर मुड़ गई, जहां 576 नगरपालिका सीटों पर चुनाव होने थे। यह इसलिए भी अहम थे क्योंकि लोग ये भी जानना चाहते थे कि कहीं कृषि कानून के विरोध के असर यहाँ भी तो नहीं आया। लेकिन इसके ठीक उलट भाजपा ने न सिर्फ अपना जलवा कायम रखा, बल्कि 576 सीटों में से 450 से भी अधिक सीटों पर कब्जा जमाते हुए 6 की 6 नगरपालिका पर जीत पुनः प्राप्त की, जिसका श्रेय हर बार की भांति इस बार भी राहुल गांधी को ही जाता है।
लेकिन बात यहीं तक सीमित नहीं है। इस चुनाव में काँग्रेस की वो हालत हुई, जिसके बारे में जितना बोलो, कम ही होगा। 2016 में 150 से अधिक सीटें प्राप्त करने वाली काँग्रेस को इस बार महज 45 सीट प्राप्त हुई। कृषि कानून के विरोध के नाम पर जो मायाजाल राहुल गांधी ने रचने का प्रयास किया, उसमें कोई भी नहीं फंसा, उलटे पार्टी को नुकसान हुआ वो अलग। इसके अलावा अहमद पटेल की मृत्यु के बाद गुजरात में जो आखिरी राज्य सभा सीट बची थी, वो भी उपचुनाव में काँग्रेस के हाथ से फिसल गई।
तो इसका राहुल गांधी से क्या संबंध है? राहुल गांधी को यूं ही भाजपा का ‘स्टार प्रचारक’ नहीं बुलाया जाता। उनके श्रीमुख से जब भी कुछ निकलता है, यकीन मानिए भाजपा के लिए 1000 – 2000 वोट और बढ़ जाते हैं। गुजरात में भी जिस प्रकार से उन्होंने कृषि कानून के प्रति काँग्रेस के विरोध को भुनाने का प्रयास किया, उससे स्पष्ट पता चलता है कि किस प्रकार से उनके कारण इस निकाय चुनाव में भी भाजपा को जबरदस्त फायदा पहुंचा है।
जरा आंकड़ों पर नजर डालिए। काँग्रेस को 2016 के निकाय चुनावों में 150 से अधिक सीटें मिली थी, जब पाटीदार आंदोलन कथित तौर पर अपने चरम पर था, और भाजपा के विरुद्ध वर्षों में पहली बार सत्ता विरोधी माहौल बन रहा था। लेकिन तब से अब में बहुत अंतर आ चुका है। अब पंजाब, राजस्थान और छत्तीसगढ़ को छोड़कर काँग्रेस का कहीं पर भी कोई प्रभाव नहीं है, क्योंकि महाराष्ट्र और झारखंड जैसे राज्यों में भी काँग्रेस सरकार का हिस्सा होने के बावजूद काफी कमजोर है। रही सही कसर राहुल गांधी ने कृषि कानून के विरोध के नाम पर अपनी ड्रामेबाज़ी से कर दी।
काँग्रेस की हालत कितनी खराब है, ये आप सूरत और राजकोट के चुनावों से ही स्पष्ट समझ सकते हैं। राजकोट में 72 की 72 सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की , तो वहीं सूरत में 120 सीटों में से एक भी सीट काँग्रेस जीत नहीं पाई है । घाव पर नमक रगड़ने वाली बात तो यह है कि सूरत में काँग्रेस के मुकाबले आम आदमी पार्टी को अधिक सीटें मिली, 27 सीटों के साथ वह प्रमुख विपक्षी पार्टी के रूप में नजर आई है।
अब यहीं राहुल गांधी कुछ ही दिनों पहले पुडुचेरी गए थे, जहां सरकार अल्पमत में जाती हुई दिखाई दे रही थी। राहुल गांधी का उद्देश्य था कि पार्टी का जनाधार मजबूत हो, लेकिन उलटे उनके जाने के दो ही दिन में पुडुचेरी की सरकार भरभरा के गिर गई। अब गुजरात के निकाय चुनावों में जिस प्रकार से काँग्रेस का प्रदर्शन रहा है, उससे स्पष्ट होता है कि इस राज्य में अब इस पार्टी का कोई भविष्य नहीं है।
एक समय होता था, जब काँग्रेस का देशभर पर एकछत्र राज्य हुआ करता था, और उन्हे हराना तो छोड़िए, उन्हे चुनौती देने वाला तक कोई नहीं होता था। लेकिन राहुल गांधी की कृपा से आजकल काँग्रेस का नगरपालिका चुनाव में भी सम्मान बचाना संदेह का विषय बन चुका है, जिसके लिए केवल और केवल राहुल गांधी ही जिम्मेदार हैं।