कुछ लोग अपनी औकात पर आने में तनिक भी समय नहीं गंवाते, और यही काम डेमोक्रेट पार्टी ने भी किया है। जो बाइडन को अमेरिका का राष्ट्रपति बने 2 हफ्ते नहीं हुए और डेमोक्रेट्स ने अपने असली रंग दिखाने शुरू कर दिए। न्यू यार्क राज्य के सदन ने एक विवादित प्रस्ताव पारित करते हुए 5 फरवरी को कश्मीर-अमेरिका दिवस के रूप में मनाने का निर्णय किया है।
जी हां, आपने ठीक सुना। न्यू यॉर्क प्रांत के राजनीतिज्ञों ने अपने विधानसभा में ये प्रस्ताव पारित किया है कि वे 5 फरवरी को कश्मीर अमेरिका डे के रूप में मनाएंगे। आउटलुक की रिपोर्ट के अनुसार,
“विधानसभा सदस्य नादेर सईघ और 12 अन्य सांसदों द्वारा प्रयोजित प्रस्ताव में कहा गया कि ‘कश्मीरी समुदाय ने कई मुसीबत को दूर किया और दृढ़ता दिखाई। इसके अलावा न्यूयॉर्क अप्रवासी समुदायों के स्तंभों में से एक के रूप में खुद को स्थापित किया।
एक ट्वीट में, न्यूयॉर्क में पाकिस्तान के महावाणिज्य दूतावास ने संकल्प को अपनाने के लिए सईघ और द अमेरिकन पाकिस्तानी एडवोकेसी ग्रुप की भूमिका को भी स्वीकार किया। बता दें कि 5 अगस्त, 2019 को जम्मू और कश्मीर में धारा 370 के समाप्त होने के बाद पाकिस्तान भारत के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय समर्थन हासिल करने की कोशिश कर रहा है”।
यानि जिसका कई भारतीयों को अंदेशा था, वह सच होता दिखाई दे रहा है। बाइडन प्रशासन ना केवल भारत विरोधी तत्वों को खुलेआम बढ़ावा दे रहा है, बल्कि भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप भी करने की और अपने कदम बढ़ा रहा है। ये ठीक उनके चुनावी रैली में रवैए की पुष्टि करता है, जहां जो बाइडन और कमला हैरिस ने जमकर भारत के विरुद्ध विष उगला था।
इस विषय पर भारतीय दूतावास ने अपनी चिंता जताते हुए कहा, “भारतीय दूतावास को न्यूयॉर्क स्टेट असेंबली में कश्मीर अमेरिकी दिवस के बारे में पता चला। अमेरिका की तरह भारत में भी एक जीवंत लोकतंत्र है और 135 करोड़ लोगों की अलग-अलग विचारधारा और सोच के साथ रहना गर्व की बात है। भारत जम्मू-कश्मीर सहित अपनी विविधता और समृद्ध सांस्कृतिक विचार और विचारधारा का जश्न मनाता है. जम्मू-कश्मीर भारत का एक अभिन्न और अविभाज्य अंग है। जम्मू-कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश है, और भारत का अभिन्न अंग बना रहेगा। भारत ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को यह भी स्पष्ट रूप से कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 370 को समाप्त करना उसका आंतरिक मामला था।”
इस घटना के साथ ही बाइडन प्रशासन का मुखौटा भी पूरी तरह से उतर चुका है और उनका भारत विरोधी पक्ष सामने आ चुका है। अगर इसी दर से यह ऐसे निर्णय लेते रहे, तो एक समय बाद रिचर्ड निक्सन और बिल क्लिंटन जैसे भारत विरोधी राष्ट्रपति भी देवता दिखने लगे। ऐसे में यह कहना ग़लत नहीं होगा कि बाइडन प्रशासन अल्पसंख्यक तुष्टिकरण के चक्कर में अपने है पैरों पर गाजे बाजे सहित कुल्हाड़ी चलाने जा रहे हैं।