जो बाइडन के सत्ता संभालने के बाद से अमेरिका लगातार कोशिश में है कि वह किसी तरह ईरान के साथ न्यूक्लियर डील कर सके। बाइडन की कोशिशों ने न्यूक्लियर डील के लिए अनुकूल माहौल बनाने के बजाए IRAN का दिमाग सातवें आसमान पर पहुंचा दिया है, जिससे अमेरिका कि ही मुश्किलें बढ़ रही है। अब ईरान ने साफ़ किया है कि जब तक अमेरिका पूरी तरह से प्रतिबन्ध नहीं हटाएगा तब तक वह न्यूक्लियर डील के लिए नहीं मानेगा।रविवार को तेहरान ने स्पष्ट किया है अमेरिका को पहले प्रतिबन्ध हटाने होंगे यदि वे चाहते हैं कि ईरान के साथ 2015 का न्यूक्लियर समझौता पुनः किया जाए।
ईरान के विदेश मंत्री जावेद जरीफ ने कहा है कि “अमेरिका तब तक न्यूक्लियर पैक्ट करने में सफल नहीं होगा जब तक वह प्रतिबन्ध नहीं हटाता”। इतना ही नहीं ईरान ने यह भी साफ़ किया है कि वह अंतर्राष्ट्रीय निगरानी संगठन IAEA, को भी अपने न्यूक्लियर साइट्स की औचक जांच की अनुमति नहीं देगा। ईरान ने IAEA के साथ हुए समझौते में उन्हें अपने न्यूक्लियर साइट की जांच ने सिमित अधिकार दिए हैं लेकिन औचक जांच का अधिकार नहीं दिया है, क्योंकि अमेरिका ने ईरान पर लगे प्रतिबन्ध नहीं हटाए हैं ।
साफ़ है की बाइडन की नीतियों ने ईरान का मनोबल बढ़ा दिया है। हाल ही में यह भी खबर आई थी की ईरान अपने यूरेनियम संचय को भी बढ़ा रहा है. दरअसल सारी गड़बड़ इस कारण हुई है क्योंकि बाइडन ट्रम्प की मध्य पूर्व की नीति को पलटना चाहते हैं।
ट्रम्प ने IRAN की न्यूक्लियर डील के प्रति प्रतिबद्धता में कमी के कारण ही उसपर भरी प्रतिबन्ध लगा दिए थे। ईरान हिजबुल्लाह जैसे आतंकी संगठनों को समर्थन दे रहा था और पुरे क्षेत्र में ‘प्रॉक्सी वॉर’ की नीति अपनाए हुए था। ईरान के समर्थन से ही हूती विद्रोही यमन में अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त सरकार के विरुद्ध सशत्र संघर्ष कर रहे हैं। ईरान द्वारा यमन की सरकार को अस्थिर करने का कारण उसका अमेरिका और सऊदी अरब से अच्छे सम्बन्ध होना है। ट्रम्प ने ईरान की इन चालबाजियों को रोकने के लिए ही सुलेमानी को मार गिराया था। लेकिन ट्रम्प से राजनीतिक प्रतिद्वंदिता को बाइडन की डेमोक्रेटिक पार्टी ने इतनी अधिक तवज्जो दी की सुलेमानी की हत्या पर भी ट्रम्प की ही आलोचना हुई।
अपने पुरे चुनाव अभियान में बाइडन ने ट्रम्प की निति की आलोचना करते हुए बार-बार यह बात दोहराई की वे राष्ट्रपति बनते ही ईरान के साथ न्यूक्लियर डील के लिए बातचीत करेंगे। सरकार में आते ही उन्होनें इजराइल के प्रति कठोर रवैया अपनाया। उन्होंने ठन्डे बास्ते में जा चुके फिलिस्तन के मुद्दे को अनावश्यक हवा दी। यहाँ तक की मीडिया में यह खबरें भी आईं की बाइडन चाहते हैं की, वर्तमान इजराइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू अगले चुनाव में हार जाएं क्योंकि उनके रहते ईरान के साथ न्यूक्लियर समझौता संभव नहीं है।
बाइडन ने सत्ता सँभालते ही सऊदी अरब के साथ अपना सहयोग कम कर लिया। उन्होंने UAE के साथ होने वाली हथियारों की डील को रोका और सऊदी को बड़ा झटका देते हुए यमन युद्ध से अमेरिका को बाहर कर लिया। बाइडन द्वारा लगातार ऐसे कार्य किये गए जिससे ईरान खुश हो सके।
किन्तु इन सब ने केवल ईरान का मनोबल बढ़ाया और किसी बदमाश बच्चे की तरह ईरान अब जिद्द पर उत्तर गया है। समस्या यह है की बाइडन एकाएक प्रतिबन्ध नहीं हटा सकते। कोई नया अमेरिकी राष्ट्रपति पूर्व राष्ट्रपति की नीतियों को एकाएक नहीं बदल सकता। इतना ही नहीं फ्रांस जैसे मुख्य अमेरिकी सहयोगी, अमेरिका को ऐसा नहीं करने देंगे। बाइडन की तीसरी और सबसे बड़ी समस्या ट्रम्प हैं जो इस मौके की तलाश में हैं की वह यह सिद्ध कर दें की बाइडन एक कमजोर राष्ट्रपति हैं। अपने ईरान प्रेम में बाइडन ऐसी स्थिति में पहुँच गए हैं जहाँ से वह न पीछे हट सकते हैं और न आगे बढ़ सकते हैं।
बाइडन ईरान की समस्या में उलझ गए हैं और ऐसा लगता है की वह मजबूरी में ट्रम्प की निति पर ही चलेंगे अन्यथा ईरान उन्हें ऐसे ही ब्लैकमेल करता रहेगा।