भारत और पाकिस्तान की सेना ने बृहस्पतिवार को एक घोषणा के तहत यह जानकारी दी कि वे अब LOC पर सीज़ फायर का उल्लंघन नहीं करेंगे और यह घोषणा 24-25 फरवरी से लागू होगी । संयुक्त बयान में कहा गया है कि दोनों पक्ष हॉटलाइन और फ्लैग मीटिंग के जरिये सीमा पर होने वाले तनावों का समाधान करेंगे। लेकिन इस बार पाकिस्तान स्वयं बातचीत की टेबल पर आया है तो इसके पीछे भारत की ओर से अजीत डोभाल द्वारा की गई कूटनीतिक घेराबंदी का बहुत बड़ा हाथ है । जब से जम्मू कश्मीर में धारा 370 हटाई गई है, पाकिस्तान और भारत के रिश्ते और अधिक बिगड़ गए हैं । पाकिस्तान ने भारत को कश्मीर मुद्दे पर घेरने की कोशिश की, किंतु वह स्वयं वैश्विक स्तर पर अलग-थलग पड़ गया।
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट बताती है कि यह जॉइंट स्टेटमेंट एक लंबी कूटनीतिक वार्ता का नतीजा है । भारत की ओर से अजीत डोभाल ने बातचीत का नेतृत्व किया था । रिपोर्ट के अनुसार संयुक्त बयान तब आया है जब दोनों देशों के वरिष्ठ अधिकारी किसी तीसरे देश में गुप्त बैठक में मिले थे । इस पूरी प्रक्रिया की जानकारी सीमित लोगों को ही थी । सरकार में भी प्रधानमंत्री के अतिरिक्त केवल गृहमंत्री अमित शाह, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री एस० जयशंकर को इसकी जानकारी थी ।
अजीत डोभाल की उपस्थिति यह समझने के लिए काफी है कि भारत बातचीत के दौरान ड्राइविंग सीट पर था । डोभाल का भय पाकिस्तान की सुरक्षा एजेंसियों में बैठा हुआ है । वह पहले स्पष्ट कर चुके हैं कि पाकिस्तान अगर मुम्बई हमले जैसा एक और हमला करने की कोशिश करेगा, तो वह बलूचिस्तान से हाथ धो बैठेगा । इतना ही नहीं, उन्होंने कश्मीर मामले को सुलझाने के लिए आतंकियों के साथ, उनकी फंडिग पर भी कार्रवाई की नीति अपनाई, इसने कश्मीर में पाकिस्तान समर्थित तंत्र की कमर तोड़ दी ।
पाकिस्तान का सीज़ फायर को वास्तव में लागू करना दक्षिण एशिया के बदलते समीकरणों को भी दिखाता है । सर्वविदित है कि पाकिस्तान की विदेश नीति का निर्धारण करने में बीजिंग की बड़ी भूमिका होती है और हालिया घटनाक्रम भी यही दिखाते हैं ।
पहले भारत और चीन पैंगोंग झील पर डिसइंगेजमेंट के लिए तैयार हुए और अब पाकिस्तान के साथ, सीमा पर शांति बहाल हुई है । ऐसा इसलिए क्योंकि ड्रैगन और पाकिस्तान दोनों को समझ आ चुका है कि भारत ‘टू फ्रंट वॉर’ जैसी परिस्थिति के लिए मनोवैज्ञानिक रूप से तैयार है । सैन्य दबाव भारत को डराने वाला नहीं।
दूसरा कारण यह है कि भारत ने चीन के विरुद्ध भी सफलतापूर्वक लॉबिंग करके यह दिखाया कि वह कूटनीतिक स्तर पर कितना मजबूत है । अमेरिका सहित क्वाड देश तो भारत के पक्ष में हैं ही, फ्रांस ने भी चीन भारत स्टैंडऑफ़ में भारत का पक्ष लिया । वहीं रूस ने भी अधिकांशतः भारत समर्थक रवैया अपनाए रखा । वैक्सीन डिप्लोमेसी में भी चीन की बुरी तरह पराजय हुई है और अधिकांश देश भारतीय वैक्सीन पर भरोसा कर रहे हैं। भारत ने अपने इन सभी कदमों से चीन को यह दिखा दिया कि भारत पर दबाव बनाने से वह और आक्रामक विदेश नीति अपनाएगा।
अब जब कोरोना का प्रकोप कम हो रहा है और चीन अपनी छवि सुधारने में लगा है, तो वह नहीं चाहता कि भारत के साथ उसका टकराव किसी भी मुद्दे पर हो, यही कारण है कि पाकिस्तान को भी अब सीधी लाइन पकड़ने का आदेश हुआ है।
वहीं पाकिस्तान के हिसाब से देखें तो कोरोना वैक्सीन को लेकर उसकी छटपटाहट भी इस समझौते के पीछे बड़ा कारण है। कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान ने यह मान लिया है कि अब 370 इतिहास का भाग हो गया है, वैसे भी इस मुद्दे को उठाना पाकिस्तान के लिए ही नुकसानदेह रहा । ऐसे में शांति समझौता ही उसके लिए एकमात्र रास्ता बचा था।
भारत के लिहाज से भी यह अच्छा फैसला है। भारत आर्थिक विकास की जिस अवस्था में है, वहाँ सैन्य टकराव हमारे लिए भी बुरा ही है। हम वैश्विक सप्लाई चेन के केंद्र में आने की कोशिश कर रहे हैं, ऐसे में सीमा पर तनाव इंफ्रास्ट्रक्चर और शहरी विकास जैसे मुद्दों से ध्यान हटाएगा। यदि भारत को चीन का आर्थिक विकल्प बनना है तो यही बेहतर होगा कि अगले कुछ साल सीमा पर शांति बनी रहे।