एक चौंकाने वाली खबर में पता चला है कि बॉलीवुड अभिनेता संदीप नाहर ने आत्महत्या कर ली। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, वे कथित तौर पर अवसाद से जूझ रहे थे। संदीप नाहर ने ‘एम एस धोनी – द अनटोल्ड स्टोरी’ और ‘केसरी’ में अपने छोटे पर प्रभावी रोल में दर्शकों पर एक अलग छाप छोड़ी थी। लेकिन जिन परिस्थितियों में उनका देहांत हुआ, उससे स्पष्ट सिद्ध होता है कि क्यों इस देश में पुरुषों के लिए भी निश्चित अधिकार होने चाहिए।
संदीप नाहर का मृत शरीर ओशीवारा में स्थित उनके निवास पर पाया गया। मरने से पहले फ़ेसबुक पर अपनी पूरी व्यथा बताई कि आखिर क्यों वे ऐसा घातक कदम उठाने पर विवश हुए। उन्होंने कहा, “अब जीने की इच्छा नहीं हो रही है। जीवन में काफी सुख दुख देखे, हर समस्या का सामना किया, पर आज जिस कठिनाई से मैं गुजर रहा हूँ, वो सहनशीलता के बाहर है। मैं जानता हूँ कि आत्महत्या कायरता है और मुझे भी जीना था, पर ऐसे जीने का भी क्या फायदा, जहां सुकून और आत्मसम्मान न हो?”
लेकिन संदीप वहीं पे नहीं रुके। उन्होंने अपनी अवस्था के लिए दोषी लोगों का नाम उजागर करते हुए कहा, “मेरी पत्नी कंचन शर्मा और उसकी माँ वीनू शर्मा इसके लिए जिम्मेदार हैं, जिन्होंने मुझे न समझ न समझने की कोशिश की। मेरी पत्नी उग्र स्वभाव की है, उसका व्यक्तित्व अलग है, मेरा अलग, जो बिल्कुल भी मैच नहीं करता। रोज रोज के कलेश, सुबह शाम क्लेश, मेरी अब यह सहने की शक्ति नहीं है। इसमें कंचन की कोई गलती नहीं, क्योंकि उसका नेचर ऐसा है कि उसे सब नॉर्मल लगता है, पर मेरे लिए यह अब नॉर्मल नहीं है। मैं मुंबई में कई सालों से हूँ, बहुत बुरा टाइम भी देखा लेकिन कभी टूटा नहीं।”
इसके अलावा संदीप ने अपनी अवस्था के लिए बॉलीवुड में चल रही गुटबाजी को भी दोषी ठहराया। लेकिन जिस प्रकार से उन्होंने अपनी पारिवारिक समस्या के बारे में बात की, उससे स्पष्ट होता है कि आधुनिकता की होड़ में कहीं न कहीं हम नैतिकता की बलि भी चढ़ा रहे हैं। महिलाओं के अधिकारों के बारे में बात करना या उसका समर्थन करना कोई अपराध नहीं है, परंतु यदि पुरुषों का किसी संबंध में उत्पीड़न होता है, तो उसके अधिकारों के लिए भी आवाज उठनी चाहिए।
हमारे देश क्या, दुनिया के अधिकांश देशों के कानून जेन्डर न्यूट्रल नहीं लिंग के अनुसार निष्पक्ष नहीं है, और अधिकतर यह कानून महिलाओं को ही प्राथमिकता देते हैं। चाहे तलाक के बाद मेहनताना की बात हो, या फिर फर्जी मामलों के लिए जवाबदेही की बात हो, पुरुषों को अधिकतर मामलों में न्याय नहीं मिलता। आईपीसी की धारा 498 ए [दहेज रोधी] और धारा 375 एवं 376 [दुष्कर्म रोधी] का जितना दुरूपयोग हुआ, उससे न सिर्फ पुरुषों का नुकसान होता है, बल्कि उन महिलाओं का भी नुकसान होता है, जिनके लिए ये कानून वास्तव में बनाया गया था।
इससे पहले 2015 में सड़क पर एक मामूली झड़प ने सर्वजीत सिंह के जीवन को नरक बना दिया, क्योंकि जिस प्रकार से जसलीन कौर ने उनपर छेड़खानी का झूठा आरोप लगाया, और जिस प्रकार से बिना सोचे समझे मीडिया ने उन्हे दोषी ठहराया, उससे सर्वजीत का मान सम्मान सब मिट्टी में मिल चुका था। सर्वजीत और संदीप जैसे न जाने कितने पुरुष हैं, जिन्हे मानसिक प्रताड़ना का दिन रात सामना करना पड़ता है, परंतु उन्हे न्याय मिलना तो दूर की बात, उनकी तकलीफों को हंसी में उड़ा दिया जाता है।
ऐसे में अब समय आ चुका है कि पुरुषों के अधिकारों पर भी ध्यान दिया जाए, और उनके न्याय के लिए भी एक निश्चित प्रणाली तैयार हो, ताकि फिर ऐसे सर्वजीत सिंह और संदीप नाहर ना उभरें।