लंबी राजनीतिक उठापटक के बाद म्यांमार की सेना ने आखिरकार तख्तापलट करते हुए देश की शीर्ष नेता आंग सान सू ची को हिरासत में ले लिया। इस तख़्तापलट के Myanmar की घरेलू राजनीति पर तो प्रभाव पड़ेंगे ही पड़ेंगे, साथ ही क्षेत्र की भू-राजनीति पर भी इसका गहरा असर पड़ेगा। अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद Myanmar पर तेजी से चीन का प्रभाव बढ़ता गया। हालांकि, पिछले कुछ समय में भारत और जापान जैसे देशों ने इस दक्षिण एशियाई देश में चीनी प्रभाव के लिए बड़ी चुनौती पेश की है।
भारत और जापान ने लगातार म्यांमार की सरकार के साथ-साथ म्यांमार की सेना के साथ भी अपने संबंध मजबूत किए हैं, जबकि दूसरी ओर चीनी सरकार और म्यांमार की ताकतवर सेना के रिश्तों में तनाव देखने को मिला है। ऐसे में बीते सोमवार को म्यांमार में हुए तख़्तापलट में चीनी फ़ैक्टर भी शामिल हो सकता है, जिसका सीधा फायदा भारत और जापान जैसे देशों को होगा!
बता दें कि नवंबर 2020 में म्यांमार में चुनावों के नतीजों में आंग सान सू ची की National League for Democracy पार्टी को एकतरफ़ा बहुमत हासिल हुई थी, जिसके बाद चीनी मीडिया ने इसको लेकर जश्न मनाया था। चीनी मीडिया ने दावा किया था कि सू ची की जीत के बाद चीन और म्यांमार के रिश्तों में बेहतरी देखने को मिलेगी।
चीन ने सू ची के माध्यम से Myanmar में अपने BRI प्रोजेट्स को आगे बढ़ाने के लिए पूरा ज़ोर भी लगाया है। सिर्फ पिछले महीने ही चीनी विदेश मंत्री Wang Yi ने म्यांमार का दौरा कर देश में चीनी परियोजनाओं पर रुके काम को दोबारा शुरू करने के लिए सू ची सरकार पर दबाव बनाया था।
बता दें कि म्यांमार में चीन अपनी BRI परियोजना के तहत China-Myanmar Economic Corridor भी बना रहा है, जो चीन के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। चीन Myanmar में कई तरह के प्रोजेक्ट BRI के तहत चला रहा है जैसे The New Yangon City; Kyaukphyu Deep-Sea Port and Industrial Zone और China-Myanmar Cross-Border Economic Cooperation Zone प्रोजेक्ट आदि। शी जिनपिंग इन सभी प्रोजेक्ट्स को “priority among priorities” भी कह चुके हैं।
चीनी सरकार म्यांमार की सेना पर अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर इन सभी प्रोजेक्ट्स को तेजी प्रदान करना चाहती थी। China-Myanmar Economic Corridor तो चीन के लिए रणनीतिक तौर पर भी बेहद अहम है, क्योंकि इसके माध्यम से चीन अपनी मलक्का स्ट्रेट वाली समस्या को सुलझा सकता है। हालांकि, म्यांमार की सेना चीनी उम्मीदों की राह में अभी सबसे बड़ी दीवार बनकर खड़ी हो गयी है।
म्यांमार की सरकार पर चीन का बेहद ज़्यादा प्रभाव था, जो म्यांमार की सेना के लिए भी मुश्किलें खड़ी कर रहा था। म्यांमार की सेना को देश में चीनी समर्थक उग्रवादियों से कड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा था। पिछले वर्ष म्यांमार सेना के कमांडर-इन-चीफ़ जनरल “मिन ओंग” ने रूस के एक टीवी चैनल को इंटरव्यू देते हुए कहा था “कोई देश आसानी से अपने यहाँ आतंकियों का सफाया कर सकता है, लेकिन अगर उनके पीछे किसी बड़ी ताकत का हाथ हो, तो फिर दुनिया को हमारी मदद के लिए आगे आना चाहिए।”
जनरल मिन ओंग का इशारा यहाँ चीन की ओर था, क्योंकि अराकन आर्मी के पास से बड़ी संख्या में चीनी हथियार ज़ब्त किए जा रहे थे। Wion की रिपोर्ट के मुताबिक, अराकन आर्मी को मिलने वाले 95% फंडस चीन से ही आते हैं।
दूसरी ओर पिछले दो सालों में म्यांमार की सेना ने तेजी से भारत से अपने संबंध मजबूत किए हैं। Myanmar में चीन समर्थित उग्रवादी संगठनों जैसे United Wa State Army, the Kokang Army और the Kachin Independence Army ने म्यांमार सेना के सरदर्द को बढ़ाया है, जिसके कारण उसने सहायता के लिए भारत का रुख किया है। म्यांमार की सेना तेजी से अब ट्रेनिंग और हथियारों के लिए भारत का रुख कर रही है।
भारत म्यांमार की सेना के साथ मिलकर अपने प्रोजेक्ट्स को भी तेजी प्रदान कर रहा है। अब जब म्यांमार सरकार पर चीन का प्रभाव बहुत तेजी से बढ़ा है, तो ऐसे वक्त में देश में तख़्तापलट होना चीनी सरकार के लिए बेहद नुकसानदायक हो सकता है। इससे चीन का China-Myanmar Economic Corridor भी खतरे में पड़ सकता है। Myanmar में हो रही घटनाओं से नई दिल्ली और टोक्यो में ज़रूर उत्साह देखने को मिल सकता है।