ट्रम्प और पुतिन की जोड़ी अब भी जिनपिंग को झटके दे रही है, पूर्वी यूरोप में ठीक यही हुआ है!

ट्रम्प के बाहर निकलने के बाद भी ट्रम्प और पुतिन चीन को सता रहे हैं

(COMBO) This combination of pictures created on February 21, 2020 shows US President Donald Trump delivers remarks at a Keep America Great rally in Phoenix, Arizona, on February 19, 2020. Russian President Vladimir Putin delivers a speech during a ceremony in Jerusalem on January 23, 2020 commemorating the people of Leningrad during the Second World War Nazi siege on the city. - President Donald Trump on february 21, 2020 dismissed reported warnings by US intelligence that Russia is meddling in this year's elections as a "hoax" planted by his Democratic rivals. "Another misinformation campaign is being launched by Democrats in Congress saying that Russia prefers me to any of the Do Nothing Democrat candidates who still have been unable to, after two weeks, count their votes in Iowa," Trump wrote on Twitter. (Photos by JIM WATSON and EMMANUEL DUNAND / AFP) (Photo by JIM WATSON,EMMANUEL DUNAND/AFP via Getty Images)

ट्रम्प को बेशक वर्ष 2020 के चुनावों में हार का मुंह देखना पड़ा हो, लेकिन उनकी नीतियाँ आज भी चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के लिए सरदर्द साबित हो रही हैं। ट्रम्प ऑफिस में ना रहने के बावजूद भी चीन को एक के बाद झटके दिये जा रहे हैं। ठीक ऐसा ही हुआ है पूर्वी यूरोप में जहां अब जिनपिंग को एक बड़ी शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा है। रोचक बात यह है कि दुनिया के इस इलाके में रूस भी अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिशों में जुटा है। अब रूस और ट्रम्प की नीतियों की बदौलत अमेरिका को भी पूर्वी यूरोप में अपना प्रभुत्व बढ़ाने का अवसर मिल गया है।

दरअसल, मंगलवार को चीन के नेतृत्व में चीन के महत्वकांक्षी 17+1 इनिशिएटिव के तहत पूर्वी और मध्य यूरोप के 17 सदस्य देशों की एक बैठक बुलाई गयी थी। हालांकि, यहाँ चीन के लिए झटके की बात यह थी कि इस बैठक में 6 देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने शिरकत की ही नहीं की! इन 6 देशों में बुल्गेरिया, एस्टोनिया, लात्विया, लिथुआनिया, रोमानिया और स्लोवेनी जैसे देश शामिल थे।

चीन ने वर्ष 2012 में इस प्लेटफॉर्म की स्थापना की थी, जिसके माध्यम से चीन ने अपने Belt and Road Initiative को आगे बढ़ाने की रणनीति को अपनाया था। चीन ने इन देशों को बड़े-बड़े आर्थिक लाभ देने की एवज में इन देशों को चीनी प्रोजेक्ट्स में शामिल होने के लिए राज़ी किया। हालांकि, आज करीब 8 वर्षों बाद भी इन देशों को चीनी परियोजनाओं से किसी प्रकार के आर्थिक लाभ का इंतज़ार है। दूसरी ओर इन देशों पर चीनी प्रभाव को खत्म करने के लिए रूस और अमेरिका जैसे देशों ने कड़ी मेहनत की है, जिसका नतीजा यह निकला है कि अब ये देश चीनी प्रभाव से मुक्त होते जा रहे हैं।

जब ट्रम्प सत्ता में थे, तो अमेरिका ने इन देशों में चीनी प्रभाव का मुक़ाबला करने के लिए जमकर मेहनत की। यह ट्रम्प प्रशासन की मेहनत का ही फल था कि रोमानिया ने पिछले वर्ष चीनी 5G दिग्गज हुवावे को अपने यहाँ अनुमति देने से साफ़ मना कर दिया था। ट्रम्प की कूटनीति के बाद ही रोमानिया ने अपने यहाँ न्यूक्लियर प्लांट के एक्सटैन्शन के लिए चीनी फण्ड्स को स्वीकार करने से मना कर दिया था। साथ ही ट्रम्प ने अपने Three Seas Initiative के माध्यम से भी मध्य और पूर्वी यूरोप में अपने प्रभाव को बढ़ाने की कोशिश की थी। इसके माध्यम से अमेरिका ने इन देशों में इनफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने की बात की है।

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दूसरी ओर रूस ने भी इस इलाके को अपने प्रभाव में करने की कोशिश की है। बेलारूस और सर्बिया जैसे देशों में पुतिन बेहद लोकप्रिय हैं। एस्टोनिया, लात्विया और लिथुआनिया जैसे बाल्टिक देशों में बेशक मॉस्को के खिलाफ सख्त रुख देखने को मिलता हो, लेकिन अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए वे भी रूस पर ही निर्भर हैं। दूसरी ओर ये सभी देश सोवियत संघ के समय से पारंपरिक रूप से रूस के साथी रहे हैं।

रूस पूर्वी यूरोप में एक बड़ी शक्ति है और ऐसे में रूस भी इस क्षेत्र में चीनी प्रभुत्व को कम करने के लिए जी-तोड़ मेहनत कर रहा है। रूस और अमेरिका, दोनों देशों में भी यहाँ एक प्रतिस्पर्धा देखने को मिलती है, लेकिन इन दोनों देशों के कंपीटीशन के कारण चीन का प्रभाव यहाँ लगातार कम होता जा रहा है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि ट्रम्प के जाने के बाद भी ट्रम्प-पुतिन की जोड़ी जिनपिंग के लिए बड़ा सरदर्द बनकर उभर रही हैं।

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