पुडुचेरी में कांग्रेस की सरकार गिरने के बाद दक्षिण भारत में कांग्रेस का पत्ता साफ हो गया है

दक्षिण भारत

**EDS: FILE** New Delhi: In this file photo dated Saturday, Aug 10, 2019, Congress President Rahul Gandhi with senior party leader Sonia Gandhi during Congress Working Committee (CWC) meeting, at AICC HQ in New Delhi. Ahead of the Congress Working Committee meeting on Monday, Aug. 24, 2020, different voices have emerged within the party with one section comprising sitting MPs and former ministers demanding collective leadership, while another group has sought the return of Rahul Gandhi to the helm. (PTI Photo/Atul Yadav)(PTI23-08-2020_000092B)

देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस की स्थिति अब दयनीय हो गई है, राष्ट्रीय स्तर पर अपना रसूख रखने वाली राजनीतिक पार्टी की की हालत आज किसी क्षत्रप से कम नहीं रह गई है। इसी कड़ी में विधानसभा चुनाव के ठीक पहले पुडुचेरी में भी कांग्रेस नेतृत्व वाली गठबंधन की सरकार गिर गई है। ये तब हुआ जब हाल ही में पांच साल में पहली बार कांग्रेस नेता राहुल गांधी राज्य के दौरे पर गए थे। पुडुचेरी की सरकार गिरने के साथ ही अब देश का दक्षिणी भाग पूर्णतः कांग्रेस मुक्त हो गया है जो कि कांग्रेस के लिए एक ऐतिहासिक क्षति का संदेश है और उत्तर भारत में तो कांग्रेस विरोधी आंधी चल ही रही है।

कांग्रेस अपने राजनीतिक इतिहास के सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। 52 सीटों के साथ लोकसभा के सदन में भले ही पार्टी की हालत अभी सबसे बड़े विपक्षी दल की है, लेकिन पार्टी का असल खस्ताहाल राज्य सभा में उसकी घटती संख्या के कारण निकल कर आता है, जहां क्षत्रप के सदस्यों से भी कम कांग्रेस के सदस्य हैं। इसकी बड़ी वजह केवल ये है कि राज्यों की जनता ने पूरी तरह से कांग्रेस को हाशिए पर ला दिया है, जिसके बाद शायद केवल सम्मान के लिए ही कांग्रेस को राष्ट्रीय स्तर की पार्टी कहा जाता है क्योंकि स्थिति तो क्षत्रपों से भी बुरी आ गई है। खास बात ये है कि कांग्रेस दक्षिण भारत से पूरी तरह साफ हो गई है।

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देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के 1975 में आपातकाल लगाने के बाद जब 1977 में आम चुनाव हुए तो इंदिरा विरोधी लहर का असर साफ दिखा था, इंदिरा खुद उत्तर भारत की लोकसभा सीट इलाहाबाद से हार गईं थी, लेकिन उन्होंने एक सीट दक्षिण भारत की भी चुनी थी, जहां से वो काफी आसानी से जीत गईं थी। जो इस बात का संकेत था कि कांग्रेस विरोधी लहर चलने के बावजूद उस वक्त भी दक्षिण भारत में उसका जलवा कायम था। इसी का नतीजा था, कि दक्षिण भारत की बदौलत कांग्रेस को 150 के करीब सीटें मिली थीं, पर वो दौर इंदिरा का था, ये दौर राहुल का है जो लगातार पार्टी की लुटिया डुबोते जा रहे हैं।

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केन्द्रशासित प्रदेश पुडुचेरी में कांग्रेस के नेतृत्व वाली वी नारायणसामी की सरकार गिरने के साथ ही कांग्रेस दक्षिण भारत में पूरी तरह से साफ हो गई है। हाल ही में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने की तैयारी कर रहे राहुल गांधी पुडुचेरी के दौरे पर 5 सालों में पहली बार गए थे, उससे पहले एक मंत्री  समेत तीन विधायकों ने अपना इस्तीफा दिया था, लेकिन राहुल का व्यक्तित्व ऐसा निकला कि उनके आने के बाद बहुमत परीक्षण के पहले दो और विधायकों ने हाथ खड़े करते हुए अपना इस्तीफा दे दिया, और बहुमत परीक्षण की जरूरत ही न पड़ी, और बेचारे सीएम नारायणसामी अपनी इस्तीफा राजभवन को सौंप आए।

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इस पूरे प्रकरण के बाद देश के केवल तीन राज्यों में कांग्रेसी सीएम की सरकारें चल रही हैं, वहीं दो राज्यों में वो गठबंधन में केवल छोटे भाई की भूमिका में है।  वहीं दक्षिण भारत की बात करें तो केरल में बीजेपी का बढ़ता जनाधार और लेफ्ट के एजेंडे के बीच कांग्रेस मुश्किलों में है। तमिलनाडु में डीएमके के साथ भी कांग्रेस की खास बन नहीं रही है। आंध्र और उड़ीसा में पार्टी का जनधार बीजेपी और बीजेडी के कारण हाशिए पर है, और कर्नाटक में एचडी कुमारस्वामी के साथ हुआ नाटक तो  पछले वर्ष सभी ने टीवी चैनलों पर ही देखा हैं जहां कांग्रेस के साथ गठबंधन करने पर जेडीएस नेता और सीएम कुमारस्वामी पछताते हुए रो रहे थे।

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साफ है कि दक्षिण भारत में कांग्रेस अब पूरी तरह से साफ हो चुकी है। वहीं उत्तर भारत तो बीजेपी का गढ़ बन गया है। कांग्रेस के पास ले दे के केवल पंजाब की ही स्थिर सरकार है, जहां केन्द्रीय नेतृत्व की ज्यादा सुन नहीं जाती है क्योंकि वहां जीत कांग्रेस की नहीं बल्कि कैप्टन अमरिंदर सिंह की हुई थी। इन सभी वर्तमान परिस्थितियों के आधार पर विश्लेषण करते हुए आसानी से कहा जा सकता है कि गुजराज के मुख्यमंत्री रहते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जो कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दिया था वो 95 फीसदी सफल हो चुका है, और कांग्रेस की जिस प्रकार की ढुल-मुल नीति रही है वो इस बात का साफ संकेत देती है कि इस नारे के शत-प्रतिशत सफल होने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा।

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