अपनी पूरी आबादी की सोशल इंजीनियरिंग करना कम्युनिस्ट चीन का एक साहसिक कदम था। इतनी बड़ी जनसंख्या पर One Child Policy लागू करना, सामाजिक ढांचे को कम्युनिस्ट पार्टी की विचारधारा के अनुरूप बदलना, यह चीन जैसे अमानवीय और तानाशाह प्रशासन के लिए ही सम्भव था। सामाजिक परिवर्तन द्वारा चीन ने बीसवीं सदी में आर्थिक विकास का कीर्तिमान स्थापित किया किंतु अब यही नीतियां 21वीं सदी में उसके लिए नई समस्याएं खड़ी कर रही हैं।
हमने एक लेख में पहले बताया है कि कैसे वन चाइल्ड पॉलिसी चीन की समस्याओं का कारण रही है। अब China’s National Bureau के आंकड़े बताते हैं कि चीन में महिलाओं पर थोपी गई मान्यताओं के कारण वहाँ विवाह करने के दर में कमी आई है। रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले 6 वर्षों में चीन में विवाह करने वालों की संख्या में 41 प्रतिशत की भारी गिरावट हुई है।
विवाह न करना युवाओं में एक अभियान बनता जा रहा है और इस अभियान का नेतृत्व चीन की महिलाओं द्वारा किया जा रहा है। चीन में पितृवादी विचार का प्रभाव है जिसके तहत महिलाओं को केवल परिवार के देखभाल के योग्य समझा जाता है। चीन के दकियानूसी समाज के खिलाफ वहाँ की नवयुवतियों ने यह आंदोलन छेड़ रखा है।
चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का सबसे मजबूत संगठन, पोलित ब्यूरो मानता है कि महिलाएं केवल विवाह करने, बच्चे पैदा करने, उनकी देखभाल करने और परिवार का भरण पोषण करने योग्य होती हैं। पोलित ब्यूरो के दृष्टिकोण में महिलाओं की जिम्मेदारी है कि वह सामाजिक सोपान में कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा, उनकी तय भूमिका का निर्वहन करें।
किंतु जैसे जैसे चीन में महिलाधिकारों के लिए आंदोलन जोर पकड़ रहा है, वहाँ की महिलाओं द्वारा, कम्युनिस्ट पार्टी की विचारधारा को चुनौती देने के लिए, विवाह न करने जैसा कठोर कदम उठाया जा रहा है। यहाँ तक कि यह आंदोलन सोशल मीडिया पर और आक्रामक अभियान का रूप ले चुका है। विवाहित महिलाओं को अतिवादी नारीवादियों द्वारा, “married donkey” जैसे अपमानजनक शब्द से बुलाया जा रहा है। यह टकराव बताता है कि चीन में नवयुवतियों के एक वर्ग में चीनी सामाजिक मान्यताओं को लेकर कितना व्यापक असंतोष है।
हालांकि, चीनी अधिकारियों और समाजशास्त्रियों का तर्क है कि चीन में विवाह की दर में कमी का कारण वन चाइल्ड पॉलिसी है, जिसके कारण अब युवक-युवतियों की संख्या में कमी आई है, कारणवश विवाह की दर भी कम हुई है। 1980 के दशक में चीन में इस नीति को इतनी आक्रामकता के साथ लागू किया गया था कि उस समय दूसरा बच्चा होने पर उसे कम्युनिस्ट प्रशासन द्वारा, माँ बाप से छीनकर अलग कर दिया जाता था।
वन चाइल्ड पॉलिसी को बिना सोचे समझे थोपने का नतीजा यह है कि अब चीनी समाज बिखर रहा है। चीन का समाज वैसे भी स्त्री पुरुष भेद से ग्रस्त था, उसमें भी एक बच्चे की नीति के कारण माँ बाप ने लड़कियों कर ऊपर लड़कों को तरजीह दी। नतीजा यह हुआ है कि आज लड़कों की संख्या लड़कियों से 30 मिलियन अधिक हो चुकी है, और उन्हें अपने विवाह के लिए महिलाएं ही नहीं मिल रहीं।
विवाह न करने का कदम निश्चित ही एक साहसिक कदम है, और यह भी संभव है कि इसके जरिये कम्युनिस्ट शासन की नीतियों में बदलाव ले आया जा सके। किंतु यह आंदोलन चीन को बहुत नुकसान पहुंचाएगा। विवाह में कमी, जन्मदर को कम करेगी, जो अंततः मानव संसाधन में कमी लाएगी, जिसका असर सामाजिक-आर्थिक पहलुओं पर भी होगा।
एक बच्चे की नीति ने पहले ही चीन में स्किल्ड श्रम, मानव संसाधन आदि की समस्याएं पैदा करनी शुरू कर दी हैं। चीन में युवाओं की संख्या कम हो रही है। ऐसे में विवाह न करने का आंदोलन उसके लिए और अधिक मुसीबतें लाएगा।
हम पहले ही बता चुके हैं कि वन चाइल्ड पॉलिसी के कारण चीन, पाकिस्तान से महिलाओं को खरीदने के लिए विवश है। इस्लामिक देश पाकिस्तान अपने यहाँ की हिन्दू और ईसाई लड़कियों को कम्युनिस्ट चीन को बेच रहा है, जिससे चीन अपने यहाँ, पुरुषों के 30 मिलियन सरप्लस को खत्म कर सके।
लेकिन ऐसे विदेशों से आयातित लड़कियों के बल पर चीन अपनी सामाजिक समस्याओं को कब तक सुलझाएगा। चीन वैसे भी डेब ट्रैप के कारण बदनाम है, ऐसे में लड़कियों की तस्करी, कम्युनिस्ट देश को अछूत बना देगी, उसे केवल पाकिस्तान जैसे देशों का ही साथ मिलेगा।
यहाँ एक गंभीर प्रश्न अंतरराष्ट्रीय नारीवादी आंदोलन पर भी उठता है, जिसे न चीन की महिलाओं के अधिकारों की चिंता है, न इस्लामिक देशों में, अल्पसंख्यक वर्ग की लड़कियों के जीवन की चिंता है। Metoo जैसे पब्लिसिटी आंदोलनों में बढ़ चढ़ कर बोलने वाली नारीवादियों द्वारा, पाकिस्तान जैसे देशों से चीन को हो रही, हिन्दू लड़कियों की तस्करी या कम्युनिस्ट शासन द्वारा चीनी लड़कियों पर मान्यताओं को थोपने को लेकर कभी प्रश्न नहीं किया जाता।