240000000000 रुपये: इतने पैसे स्टालिन ने महिलाओं को देने का वादा किया है

पैसे क्या नारियल पेड़ पर उगेंगे?

डीएमके

PC: TV9 Bharatvarsh

तमिलनाडु समेत देश के 4 राज्यों में प्रस्तावित विधानसभा चुनाव शुरू होने में बस कुछ ही महीने बाकी हैं, और कोई भी पार्टी जनता को लुभाने का एक भी अवसर अपने हाथ से नहीं जाने देना चाहती। इसी पसोपेश में डीएमके ने एक ऐसा वादा किया है, जो लोकलुभावन तो है ही, पर साथ में राज्य की अर्थव्यवस्था और उसके भविष्य के लिए बेहद हानिकारक सिद्ध हो सकता है।

दरअसल, द्रविड़ मुन्नेत्र कजागम यानी डीएमके पार्टी ने वादा किया है कि सत्ता में आने पर वह हर परिवार की महिला प्रमुख को 1000 रुपये प्रतिमाह के हिसाब से भत्ता प्रदान करेंगे। लाइवमिन्ट की रिपोर्ट के अनुसार, “तमिलनाडु की हर महिला प्रमुख को उनका उचित सम्मान देने के लिए डीएमके प्रतिबद्ध है। तमिलनाडु की हर महिला प्रमुख के लिए हम प्रतिमाह 1000 रुपये की सहायता देंगे, जिससे सरकारी वितरण आउट्लेट से उन्हें हर प्रकार की सुविधा भी प्राप्त होगी”।

डीएमके प्रमुख एमके स्टालिन ने ये भी वादा किया कि अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों को मिलने वाली छात्रवृत्ति दोगुनी की जाएगी। हालांकि, ऐसा वादा करने वाले वे पहले व्यक्ति नहीं है, क्योंकि लगभग तीन महीने पहले अभिनेता एवं मक्कल नीधी मैयम प्रमुख कमल हासन ने भी सत्ता में आने पर घरेलू महिलाओं के लिए निश्चित भुगतान की व्यवस्था करने का वादा किया था।

वैसे यह योजना कुछ सुनी सुनी सी नहीं लगती? ऐसे लोकलुभावन वादों के बल पर ही 2012 में अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश में सत्ता पर काबिज हुए थे, और इसी प्रकार की एक योजना के साथ कांग्रेस 2019 के लोकसभा चुनाव में इस आस के साथ उतरी थी कि उसे सत्ता पर काबिज होने का मौका मिलेगा। अब ऐसी ही योजना डीएमके पार्टी लेकर आई है।

अब यह योजना तमिलनाडु के लिए हानिकारक क्यों है? इसके लिए हमें कुछ आंकड़ों पर नजर डालनी होगी। तमिलनाडु में एक परिवार में सदस्यों की संख्या देश के अन्य राज्यों की तुलना में काफी कम है, जहां प्रति परिवार लगभग 4 सदस्य हैं। तमिलनाडु में लगभग 2 करोड़ परिवार हैं, और यदि हर परिवार को लगभग प्रतिमाह 1000 रुपये मिलते हैं, तो राज्य सरकार को कुल 24000 करोड़ रुपये का वार्षिक खर्च आयेगा।

वो परिवार जो राज्य सरकार से आवश्यक खाद्य सुरक्षा के तहत राशन नहीं लेते यदि उन्हें निकाल दिया जाये तो भी इस स्कीम को लागू करने से सरकार को लगभग 20 हजार करोड़ रुपये का खर्चा प्रतिवर्ष करना ही पड़ेगा। तमिलनाडु के राज्य का बजट लगभग 3 लाख करोड़ रुपये है, और यदि डीएमके सत्ता में आई, और ये स्कीम वाकई में अमल में लाई गई, तो प्रतिवर्ष राज्य के बजट का लगभग 7.5 प्रतिशत इस स्कीम को लागू करने में खर्च होगा। इससे राज्य पर कर्ज का बोझ बढ़ेगा और भारी राजकोषीय घाटे का सामना भी तनिलनाडु को करना पड़ेगा।

अब कल्पना कीजिए, एक राज्य के लिए यदि ये स्कीम इतनी हानिकारक है, तो यदि कांग्रेस 2019 में सत्ता में आई होती, और अपना लोकलुभावन न्याय स्कीम को लागू किया होता, जिसके अंतर्गत प्रति व्यक्ति 6000 रुपये प्रतिमाह मिलते, तो देश की अर्थव्यवस्था का क्या हाल होता? ऐसे में डीएमके की वर्तमान स्कीम दिखने में चाहे जितनी आकर्षक हो, पर तमिलनाडु की अर्थव्यवस्था और उसके भविष्य दोनों के लिए हानिकारक है। मुफ्तखोरी के चक्कर में केरल पहले ही नरक बना हुआ है, दिल्ली राज्य उस ओर अग्रसर है, लेकिन तमिलनाडु को मुफ्तखोरी का गढ़ नहीं बनने दिया जा सकता।

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