आदिवासियों के नाम पर झारखंड में राजनीति का गंदा खेल किसी से भी छिपा नहीं है। यहां आदिवासियों द्वारा हिंदुओ के खिलाफ आए दिन बेतुके बयान आते रहते हैं। आश्चर्यजनक बात ये भी है कि राज्य सरकार की तरफ से भी ऐसी ही बातें सामने आती हैं। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी अब ‘फूट डालो राज करो’ की नीति पर चल रहे हैं। उन्होंने अपनी इसी नीति पर चलते हुए अब ये तक कह दिया है कि आदिवासी हिन्दू होते ही नहीं है। सोरेन इसके जरिए अपने वोट बैंक को मजबूत करने की नीति के तहत तुष्टीकरण कर रहे हैं, जो कि एक बेहद आपत्तिजनक बात है।
हेमंत सोरेन आदिवासियों का तुष्टीकरण करने के लिए किसी भी हद तक हिन्दुओं में फूट डालने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। सोरेन सरकार पिछली सरकार के कई कानूनों को भी रद्द कर चुकी है क्योंकि तुष्टीकरण ही इस सरकार की मुख्य नीति है। एक तरफ जब बीजेपी समेत RSS जैसे संगठन आदिवासियों को मुख्य धारा में लाकर उन्हें एकता के सूत्र में बांधने की कोशिशों में रहते हैं। वहीं JMM और कांग्रेस जैसी पार्टियों की सरकारें राज्य में आदिवासियों के लिए हमेशा ही ऐसे काम करती हैं जो कि उन्हें हमेशा ही मुख्य धारा से काट कर रखें, जिसका सबूत एक बार फिर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने फिर दे दिया है।
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दरअसल, हेमंत सोरेन का कहना है कि आदिवासी कभी हिन्दू थे ही नहीं। उन्होंने इस मुद्दे पर कहा, “इस पर कोई भ्रम नहीं है, आदिवासी कभी भी हिंदू नहीं थे, न ही अब वे हिंदू हैं। आदिवासी प्रकृति के उपासक हैं। इनके रीति–रिवाज भी अलग हैं। सदियों से आदिवासी समाज को दबाया जाता रहा है। कभी इंडिजिनस, कभी ट्राइबल तो कभी अन्य तरह से पहचान होती रही।” साफ है कि वो आदिवासियों को कभी मुख्य धारा में लाना ही नहीं चाहते हैं।
हेमंत सोरेन आदिवासियों को अलग करने की नीति पर इतना ज्यादा आगे बढ़ गए हैं, कि अब वो ये तक कहने लगे हैं कि आदिवासियों के लिए जनगणना में भी विशेष प्रावधान होने चाहिए। उन्होंने कहा, “जनगणना में आदिवासियों के अलग कालम होना चाहिए। झारखंड विधानसभा ने पिछले साल नवंबर में सर्वसम्मति से आदिवासियों के लिए एक सरना आदिवासी धार्मिक कोड का प्रस्ताव पास किया था। जनगणना में इसे शामिल करने के लिए केंद्र सरकार को भेजा गया है।”
इस मुद्दे पर बीजेपी ने उनकी कड़ी आलोचना की है, और उन्हें वेटिकन सिटी का सपोर्ट करने वाला तक बता दिया है। बीजेपी नेता प्रतुल शाहदेव ने कहा, “अंतर्राष्ट्रीय मंच पर इस तरह की बातें बताती हैं कि सीएम वेटिकन के हाथों में खेल रहे हैं। हमारे पास संवैधानिक निकाय हैं। सरना कोड जैसे मुद्दे पर निर्णय लेने के लिए विधायिका और न्यायपालिका हैं।”
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ऐसा पहली बार नहीं है कि झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने कोई अजीबोगरीब बयान दिया हो। इससे पहले उनकी सरकार के कामकाजों पर नजर डाली जाए तो देखा जा सकता है कि वो कैसे आदिवासियों को अलग कर उनके नाम पर वोटों की राजनीति करते रहे हैं। इसका एक बड़ा उदाहरण धर्मांतरण विरोधी कानून का रद्द होना है। आदिवासियों के बीच क्रिश्चियन मिशनरीज़ लालच देखर उन्हें ईसाई बनाने की प्लानिंग करती रही हैं, जिसके चलते बीजेपी की पूरवर्ती सरकार में सीएम रघुवर दास ने धर्मांतरण विरोधी कानून पारित किया था लेकिन हेमंत सोरेन ने सरकार बदलते ही इस कानून को पलट दिया।
साफ है कि सोरेन राज्य में आदिवासियों को मुख्य धारा में लाने से ज्यादा उन्हें ईसाई बनाने और हिंदू की पहचान को खत्म करने पर ज्यादा उत्साहित हैं। वो ये सारे काम केवल अपनी राजनीतिक मंशाओं के तहत कर रहे हैं, लेकिन इसका राज्य के सामाजिक ताने बाने पर बहुत ही बुरा असर पड़ने वाला है जिसके सीधे जिम्मेदार हेमंत सोरेन और उनकी सरकार होगी।