अब भारत के मान सम्मान से किसी भी स्तर पर खिलवाड़ करने वालों को नहीं बख्शा जाएगा। इसी दिशा में एक अहम कदम बढ़ाते हुए स्टरलाइट गिरोह के विरुद्ध सीबीआई ने कार्रवाई करने का निर्णय किया है, साथ ही 2018 में हुई हिंसा के पीछे 71 प्रदर्शनकारियों को दंगे भड़काने के लिए नामजद किया है।
न्यूज 18 की रिपोर्ट के अनुसार, “सीबीआई ने स्टरलाइट विरोधी प्रदर्शनों के नाम पर दंगा भड़काने और उपद्रव मचाने के पीछे 71 लोगों को 17 आरोपों के अंतर्गत नामजद किया है। यदि ये आरोप सिद्ध होते हैं, तो इन दंगाइयों और उपद्रवियों को सात वर्ष तक का कारावास हो सकता है। अपनी चार्जशीट में सीबीआई ने स्पष्ट किया है कि प्रदर्शनकारी घातक हथियारों से सुसज्जित थे, और साथ में उनके पास उपद्रव फैलाने के लिए विस्फोटक पदार्थ भी उपलब्ध थे” ।
लेकिन यह स्टरलाइट हिंसा का मामला है क्या, और इसमें अब सीबीआई क्यों रुचि ले रही है? दरअसल, स्टरलाइट वेदांता कंपनी का कॉपर स्मेल्टिंग प्लांट है, जो तमिलनाडु के थूथुकुड़ी जिले में स्थित है। इस फैक्ट्री की क्षमता ऐसी थी कि यह अकेले दम भारत को कॉपर का प्रमुख एक्स्पोर्टर बना चुका था।
इसी दिशा में एक अहम कदम उठाते हुए वेदांता ने इस प्लांट के उत्पादन क्षमता को डबल करने की घोषणा की थी। लेकिन भारत को हमेशा पिछड़ा बनाए रखने के लिए प्रयासरत वामपंथियों ने पर्यावरण की दुहाई देते हुए हिंसक विरोध प्रदर्शन किये, जिसमें 12 प्रदर्शनकारी मारे गए। फलस्वरूप मद्रास हाईकोर्ट ने स्टरलाइट प्लांट पर ताला लगा दिया, और भारत कॉपर के नेट एक्स्पोर्टर से कॉपर इंपोर्टर बन गया।
लेकिन वामपंथी यहीं पर नहीं रुके, बल्कि पर्यावरण के नाम पर विकासशील परियोजनाओं पर ताला लगवाने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी, जैसा उन्होंने 2019 में आरे क्षेत्र में मेट्रो कार शेड का निर्माण रुकवा कर सिद्ध किया। इसीलिए केंद्र सरकार ने स्पष्ट कदम उठाते हुए यह तय किया कि अब पर्यावरण के नाम पर डराने धमकाने वालों की और नहीं चलेगी।
फरवरी में नीति आयोग ने स्पष्ट किया था कि ऐसे लोगों पर आने वाले समय में कार्रवाई संभव है। नीति आयोग के बयान के अनुसार, “पिछले कुछ समय से ऐसे कई केस सामने आए हैं, जिससे अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान पंहुचा है”। यहाँ इनका इशारा स्टरलाइट और आरे जैसे मामलों से हैं, जिन्हें कथित एनजीओ के दबाव में बंद कर दिया गया और जिसके लिए पर्यावरण को होने वाले संभावित नुकसान का हवाला दिया गया था। परंतु इसके कारण जो देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान हुआ, उसके बारे में बात करने से भी कई लोग कतराते हैं। हालांकि, नीति आयोग ने इन मामलों का विश्लेषण करने की बात कही है। नीति आयोग ने कहा था सरकार ऐसे मामलों का अध्ययन करेगी।
नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार का मानना है, “इसका उद्देश्य है कुछ न्यायिक निर्णयों की लागत और लाभ का निष्पक्ष विश्लेषण करना है। ये न्यायिक हस्तक्षेप का विरोध नहीं करता है”। ऐसे में यह स्पष्ट हो जाता है कि नीति आयोग उन Ecofascists को निशाना बना सकती है, जिनके कारण भारत को आर्थिक तौर पर काफी नुकसान उठाना पड़ा है।
अब जिस प्रकार से सीबीआई ने 71 उपद्रवियों के विरुद्ध चार्जशीट दाखिल की है, उससे स्पष्ट होता है कि नीति आयोग कोरे वादे नहीं कर रहा था। सीबीआई द्वारा स्टरलाइट प्लांट बंद कराने वाले उपद्रवियों के विरुद्ध कार्रवाई करने का निर्णय लेना न केवल सराहनीय है, बल्कि देश में विकासशील परियोजनाओं पर घात लगाए बैठे EcoFascists के लिए एक कड़ा संदेश भी है।
न्यायपालिका को किसी भी मामले में फैसला सुनाने से पहले पर्यावरण, इक्विटी और आर्थिक विचारों को भी ध्यान में रखना चाहिए और इसके लिए एक तंत्र को संस्थागत बनाने की जरूरत है।