वर्ष 1995 में चीनी राष्ट्रपति रहे Jiang Zemin ने ताइवान को वापस चीन में शामिल करने पर कहा था “एक चीनी दूसरे चीनी से कभी नहीं लड़ेगा”। इसका अर्थ यह था कि चीनी सरकार बल के प्रयोग से Taiwan को चीन में शामिल करने के पक्ष में नहीं थी। हालांकि, शी जिनपिंग के नेतृत्व में चीन अपनी इस नीति को पीछे छोड़ चुका है। वर्ष 2019 की शुरुआत में जिनपिंग ने ताइवान पर एक लंबा चौड़ा भाषण दिया था, जिसमें उन्होंने बल के प्रयोग को अपने विकल्पों से बाहर नहीं रखा था। विश्लेषक इस बात को स्वीकार करते हैं कि ताइवान को वापस चीन में शामिल करना जिनपिंग के असीमित शासन काल का सबसे प्रमुख एजेंडा हो सकता है। अब चूंकि, अमेरिका में बाइडन प्रशासन चीन को लेकर नर्म रूख दिखा रहा है, ऐसे में चीन को Taiwan पर दावा मजबूत करने का सुनहरा अवसर मिल गया है।
वर्ष 2021 में चीन ने ताइवान के प्रति आक्रामकता के साथ ही अपने सुरक्षा बजट में बड़ा इजाफ़ा किया है। चीन ने वर्ष 2021 के लिए अपने सुरक्षा बजट में 6.8 प्रतिशत का इजाफा कर उसे करीब 209 बिलियन डॉलर कर दिया है, जो कि अमेरिका के बाद किसी भी देश का सबसे बड़ा सुरक्षा बजट है। रक्षा बजट में इस वृद्धि का बचाव करते हुए NPC के प्रवक्ता झांग येसुई ने कहा कि चीन अपने रक्षा बजट को इसलिए बढ़ा रहा है ताकि उसे कोई निशाना न बना सके या उसे कोई धमका न सके। वह भी तब हुआ है जब दुनियाभर के देश कोरोना महामारी से जूझ रहे हैं और चीन की अर्थव्यवस्था को भी बड़ा नुकसान झेलना पड़ा है। ऐसे में चीन ने अपने सुरक्षा बजट को बढ़ाकर साफ़ संकेत दिया है कि वह इस साल भी दक्षिण चीन सागर में अपनी आक्रामकता को कई गुना बढ़ाने वाला है। चीन पहले ही अपनी कोस्ट गार्ड को “दुश्मनों” पर ओपन फायर करने की छूट दे चुका है।
चीन ने सिर्फ अपने सुरक्षा बजट में ही इजाफा नहीं किया है बल्कि उसने Taiwan के खिलाफ अपनी भाषा को भी सख्त किया है। शुक्रवार को चीनी प्रिमियर Li Keqiang ने ताइवान को वापस चीन को शामिल करने पर अपना बयान दिया। उनके मुताबिक “चीन आज भी वन चाइना सिद्धान्त का पालन करता है और ताइवान को अपना हिस्सा मानता है। हम Taiwan की स्वतन्त्रता को बढ़ावा देने से संबन्धित शक्तियों का डटकर मुक़ाबला करेंगे और साथ ही ताइवान को शांतिपूर्वक तरीके से चीन में शामिल करने पर ज़ोर देते रहेंगे।”
बाइडन प्रशासन के आने के बाद चीन को अपने ताइवान एजेंडे पर काम करने के लिए और अधिक प्रोत्साहन मिला है। ट्रम्प प्रशासन के समय ताइवान का मुद्दा अमेरिका-चीन के रिश्तों में तनाव का सबसे बड़ा कारण बनकर उभरा था, लेकिन बाइडन प्रशासन ने आने के तुरंत बाद वन चाइना पॉलिसी के प्रति अमेरिका की प्रतिबद्धता को दोबारा प्रकाशित किया। 3 फरवरी को एक बयान में स्टेट डिपार्टमेन्ट के प्रवक्ता Ned Price ने अपने बयान में कहा था “अमेरिका आज भी One China Policy को लेकर प्रतिबद्ध है, और अमेरिका की इस नीति में कोई बदलाव नहीं आया है।”
ताइवान को लेकर ट्रम्प प्रशासन ने चीन पर जितना दबाव बनाया, उतना दबाव बाइडन शायद कभी बना ही ना पाएँ! ताइवान भी इस बात को भलि-भांति जानता है और इसीलिए पिछले कुछ समय में ताईवानी मीडिया ने भारत को Taiwan के प्रति अपना समर्थन जताने का आह्वान किया है। इसके अलावा ताइवान ने पिछले अगस्त अपने डिफेंस बजट में 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी भी की थी, ताकि किसी भी चीनी आक्रामकता से निपटने के लिए उसके पास एक मजबूत सुरक्षा तंत्र मौजूद हो! अब जब अमेरिका ताइवान के प्रति अपने समर्थन से हाथ पीछे खींचता दिखाई दे रहा है, तो दुनिया के बाकी देशों को Taiwan का समर्थन करने के लिए आगे आना चाहिए ताकि ताइवान को अगला Hong-Kong बनने से रोका जा सके।