अभी हाल ही में शिक्षाविद एवं इंडियन एक्सप्रेस के संपादक रहे प्रताप भानु मेहता को अशोका विश्वविद्यालय के कुलपति के पद से इस्तीफा देना पड़ा है। इसके पीछे कई कारण है, लेकिन वामपंथी यह सिद्ध करना चाहती है कि प्रताप भानु मेहता के जाने से उक्त विश्वविद्यालय की स्वतंत्रता छिन गई है, और इसके पीछे एक बेहद विषैली सोच है, जिसका शिकार कई केन्द्रीय शिक्षण संस्थान बन चुके हैं, और अब अगला निशाना निजी शिक्षण संस्थान को बनाना चाहते हैं।
लेकिन प्रताप भानु मेहता को इस्तीफा देने के लिए बाध्य क्यों होना पड़ा? असल में प्रताप भानु मेहता ने इस्तीफा नहीं दिया है, बल्कि अपने ऊपर होने वाली संभावित कार्रवाई के भय से वे मैदान छोड़कर भाग रहे हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि प्रताप भानु मेहता ने पिछले कुछ वर्षों में सरकार के विरोध के नाम पर जिन असामाजिक तत्वों को बढ़ावा दिया है, और जिस प्रकार से प्रताप भानु मेहता ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि खराब करने का प्रयास किया है, उसके लिए वे संभावित तौर पर सरकार की कार्रवाई झेल सकते थे। स्वयं विश्वविद्यालय के संस्थापक उनके इस रवैये से काफी नाराज रहे हैं।
लेकिन वामपंथी प्रताप भानु मेहता को ‘शहीद’ का दर्जा दे केंद्र सरकार को विलेन बनाना चाहते हैं। इसकी शुरुआत भी हो चुकी है, क्योंकि प्रताप के इस्तीफा देने के बाद आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने इस विषय पर कहा कि अशोका विश्वविद्यालय ने प्रताप भानु मेहता को इस्तीफा देने के लिए बाध्य कर अपनी आत्मा बेच दी है। इसके अलावा शशि थरूर ने भी तंज कसते हुए कहा कि अशोका विश्वविद्यालय को अपने आप को निजी विश्वविद्यालय कहना बंद कर देना चाहिए।
लेकिन इस झूठ के मायाजाल के पीछे इन वामपंथियों का उद्देश्य क्या है? आखिर वे प्रताप भानु मेहता की आड़ में सरकार को दोषी ठहराकर क्या सिद्ध करना चाहते हैं? दरअसल, पिछले कुछ वर्षों में वामपंथियों का जनाधार उनके हाथ से फिसलता जा रहा है। एक समय देश के राजनीतिक, सांस्कृतिक और शैक्षणिक संस्थानों पर एकछत्र राज्य करने वाले वामपंथी बुद्धिजीवियों को अब कई जगहों से चुनौती मिलने लगी हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय, आईआईटी, IIM तो छोड़िए, इन्हें अब इनके गढ़ JNU और जादवपुर विश्वविद्यालय में भी छोटे स्तर पर ही सही, पर चुनौती दी जा रही है।
लेकिन बुराई और बुरे लोग के साथ एक बात और भी है – वह पलटकर फिर वापस आते हैं। अब वामपंथी केन्द्रीय शैक्षणिक संस्थानों में दुष्प्रचार करने के बाद निजी विश्वविद्यालयों को भी अपनी कुत्सित राजनीति का अखाड़ा बनाना चाहते हैं। अशोका विश्वविद्यालय से प्रताप भानु मेहता अकेले नहीं है जो निकाले गए हैं। जब निधि राज़दान के हावर्ड कांड का खुलासा हुआ था, तो ये भी सामने आया था कि राहुल कंवल के भाई द्वारा संचालित एक शैक्षणिक संस्थान ‘Kautilya School of Policy’ में वह न सिर्फ अतिथि शिक्षिका थी, बल्कि उस कॉलेज के एड्वाइज़री बोर्ड में भी शामिल हैं, जिससे स्पष्ट होता है कि इन वामपंथियों की जड़ें कहाँ कहाँ तक हैं।
आम तौर पर निजी संस्थान राजनीति से काफी दूर रहते हैं, लेकिन जिस प्रकार से ये उदाहरण सामने आ रहे हैं, उससे ये स्पष्ट होता है कि वामपंथियों की दृष्टि अब निजी संस्थानों पर भी पड़ चुकी है, और वे अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं।