वैश्विक मीडिया को पता तक नहीं चला ,भारत ने मॉरीशस में सैन्य अड्डा तक बना डाला

जब भी चीन अकड़ दिखाएगा,भारत उसको उसकी औकात बताएगा

बाइडन प्रशासन के आने से अमेरिका की नीति चीन के विरुद्ध चाहे जैसी हो, परंतु भारत की नीति में कोई बदलाव नहीं आया है। विश्व में कोई भी स्थान हो, यदि चीन हेकड़ी दिखा रहा है तो वहीं उसे उसकी औकात बताने का जिम्मा भारत ने ले लिया है, और अब वह अफ्रीकी महाद्वीप पर चीन की कुदृष्टि का मुकाबला करने हेतु मॉरीशस के निकट एक अहम सैन्य बेस तैयार कर रहा है।

हाल ही में ये सामने आया है कि मॉरीशस के मूल क्षेत्र से लगभग 700 मील दूर मॉरीशस द्वारा शासित द्वीप उत्तरी अगलेगा में एक अहम सैन्य बेस तैयार किया जा रहा है, जिसका प्रमुख उद्देश्य होगा हिन्द महासागर के दक्षिण पश्चिमी क्षेत्र की हवाई और नौसैनिक तौर पर निगरानी करना। ये बेस डिएगो गार्शिया में स्थित अमेरिका और यूके के संयुक्त बेस के तर्ज पर निर्मित होगा, जिसके लिए 2015 में मोदी सरकार और मॉरीशस की सरकार में एक संधि भी हुई थी। इस पूरे प्रोजेक्ट की लागत लगभग 87 मिलियन डॉलर हो सकती है।

यहाँ पर एक 3 किलोमीटर लंबा रनवे है, जिस पर भारतीय नौसेना की अत्याधुनिक Boeing P-8I maritime patrol aircraft आराम से लैन्ड कर सकती है, और जिसे हर प्रकार से सुरक्षित भी रखा जा सकता है।

लेकिन बात यहीं पर खत्म नहीं होती। मॉरीशस के सहयोग से भारत ने ये अहम सैन्य बेस जिस प्रकार से विकसित किया है, वही काम वह सेशेल्स के साथ भी करना चाहता है, और यह पीएम मोदी की विस्तृत अफ्रीकी रक्षा नीति ‘सागर’ के अंतर्गत ही आती है। परंतु इस नीति से भारत को क्या फायदा होगा, और चीन को क्या नुकसान होगा?

दरअसल अफ्रीकी महाद्वीप पर चीन की पैनी नजर है, क्योंकि साम्राज्यवादियों का एक ही लक्ष्य होता है – दुनिया के कोने कोने पर कब्जा। पिछले कुछ दशकों में अपनी debt-diplomacy के तहत चीन ने अफ्रीकी देशों को बड़े पैमाने पर कर्ज दिये हैं। अभी चीन ना सिर्फ अफ्रीका का सबसे बड़ा trading पार्टनर है, बल्कि अफ्रीका पर सबसे ज़्यादा कर्ज़ भी चीन का ही है। अभी अफ्रीका पर चीन का लगभग 150 बिलियन डॉलर का कर्ज़ है।

हालांकि, कोरोना के बाद की स्थिति को देखते हुए अब अमेरिका ने अफ्रीका में चीनी प्रभाव को कम करने के लिए कदम उठाने शुरू कर दिये हैं। दरअसल, SCMP की एक रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका ने अफ्रीकी देश मोजाम्बिक में LNG गैस प्रोजेक्ट में निवेश करने का बड़ा फैसला लिया है, जिसे सीधे तौर पर चीनी विरोधी कदम माना जा रहा है।

न तो अफ्रीका चीन के सामने झुकने को तैयार है, और न ही भारत चीन की कोशिशों को कामयाब होने देना चाहता है। ऐसे में अफ्रीका और भारत का एक होना स्वाभाविक भी था, और कई क्षेत्रों में ये बात सच भी होती दिखाई दी है, जैसा कि अभी मॉरीशस में सैन्य बेस के निर्माण में देखने को मिला है, जहां ज्यादा शोर भी नहीं मचा, और अब एक ऐसा बेस तैयार है, जो किसी भी प्रकार के शत्रु से निपटने में पूर्णतया सक्षम है।

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