भारत की न्यायव्यवस्था अचम्भों से भरी है। हाल ही में बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक विवादित फैसला देते हुए यह कहा था यदि एक नाबालिग के तन को नहीं छुआ गया तो कपड़ों के ऊपर से हुई छेड़छाड़ को सेक्सुअल असाल्ट नहीं माना जा सकता। इसके बाद सुप्रीम ने हाल ही में एक फैसले में रेप के आरोपी से पूछा की क्या वह रेप विक्टिम से शादी करने को तैयार है, कोर्ट के इस तरह के प्रश्न पर विवाद भी हुआ था। ऐसे कई और मामले हैं जिनमे कानूनी दावपेंच के कारण ऐसे अजीब फैसले आते हैं।
इसी क्रम में बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक ऐसे आरोपी को जेल से छोड़ने का फैसला किया है, जिसपर ISIS की ओर से लड़ने का आरोप है। अरीब मजीद नामक यह व्यक्ति 2014 में भारत से आबूधाबी होते हुए इराक गया था, जहां यह ISIS में शामिल हुआ। यह भारतीय युवाओं के पहले जत्थे में था जिन्होंने आंतकी संगठन में शामिल होने के लिए भारत छोड़ा था।
अरीब मजीद सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था, अतः ऐसा नहीं कहा जा सकता की उसे इस बात का अंदाजा नहीं था की वह जो कर रहा है वह जघन्य अपराध है। अरीब 21 वर्ष का था, वह अपने उद्देश्य को लेकर बिल्कुल साफ़ था, खिलाफत की स्थापना के लिए संघर्ष। लेकिन बॉम्बे हाई कोर्ट ने उसे बेल देने के लिए एक प्रमुख आधार उसकी शिक्षा को ही बताया है।
कोर्ट का कहना है कि, “संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आरोपी को यह सुविधा है की वह लम्बी कानूनी प्रक्रिया के दौरान जेल में समय न बिताए, क्यूंकि इससे उसके जीवन का अधिकार बाधित होता है। कोर्ट को अपने फैसले में “balancing act” रखना होता है।”
अरीब 2014 में कल्याण से अपने दोस्तों, अमन फहद और सहीन के साथ, मई महीने में गायब हुआ था। उनके परिवार वालों ने उनकी गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखाई, उसके बाद मामले की जाँच महाराष्ट्र पुलिस और ATS ने शुरू की। जब 28 नवंबर 2014 को अरीब तुर्की के रास्ते भारत वापस आया तो उसे एयरपोर्ट पर गिरफ्तार कर लिया गया और इसके बाद मामले की जाँच NIA को सौंप दी गई।
अभी मामले में 107 चश्मदीदों की गवाही बाकी है। पहले ही 12 गवाह अपने बयान बदल चुके हैं ऐसे में आगे गवाहों पर दबाव नहीं बनेगा इसकी क्या गारंटी है? सबसे बड़ा प्रश्न है की ISIS जैसे कुख्यात संगठन के लिए काम करने वाले व्यक्ति को मानवीय आधार पर छोड़ा जाना चाहिए। NIA का कहना है कि, अरीब भारत वापस आने के बाद मुंबई में पुलिस स्टेशन को बम से उड़ाने की तैयारी में था। ऐसे में बॉम्बे हाई कोर्ट का फैसला कितना सही है यह चर्चा का विषय बनना ही चाहिए था। किन्तु दुर्भाग्य से भारतीय मीडिया में इस मुद्दे को उतनी तवज्जो नहीं मिली जितनी मिलनी चाहिए थी।
ऑस्ट्रेलिया ने अपने एक नागरिक को, ISIS से जुड़े होने के कारण नागरिकता से वंचित कर दिया था। ब्रिटिश नागरिक शमीमा बेग को ब्रिटेन की नागरिकता से वंचित कर दिया गया और उसके देश लौटने पर रोक लगा दी गई। कनाडा ने अपने उन नागरिकों के पासपोर्ट स्थगित कर दिए जिन्होंने इस्लामिक आतंवादी संगठनों की ओर से लड़ने के लिए देश छोड़ा था। फिर भारत में क्यों ऐसे लोगों के लिए संविधान की दुहाई मिलती है?
कल को अरीब मजीद खुले में घूमे और दूसरे मुस्लिम लड़कों के लिए एक रोल मॉडल बन जाए तो इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? मुस्लिम साम्प्रदायिकता वैसे ही आज भारत की सबसे बड़ी समस्या है। ऐसे में हाई कोर्ट का फैसला अपने पीछे कई शंकाएं और अफ़सोस छोड़ गया है।