MBS ने बनाया ड्रोन खरीद कर, तुर्की और ईरान को एक ही वार में पटखनी देने का मास्टरप्लान

एक ड्रोने से दो निशाने

सऊदी अरब तुर्की से ड्रोन खरीदने का प्रयास कर रहा है और यह दावा किया है तुर्की के राष्ट्रपति और स्वघोषित खलीफा एर्दोगान ने।तुर्की के ड्रोन कितने घातक हैं यह दुनिया ने अजरबैजान और आर्मेनिया की लड़ाई के दौरान देखा है, लेकिन सऊदी द्वारा इनकी खरीद करने का कारण केवल इनका सामरिक महत्व ही नहीं है, बल्कि इसके पीछे मुहम्मद बिन सलमान की कूटनीतिक चाल भी है।

एर्दोगान मुस्लिम जगत के एकमात्र प्रवक्ता बनना चाहते हैं। अपने मकसद में कामयाब होने के लिए उन्होंने मलेशिया के पूर्व प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान और ईरान के प्रमुख अयातुल्ला ख़ोमैनी के साथ मिलकर सऊदी अरब के विरुद्ध एक संयुक्त मोर्चा बनाने की कोशिश की थी। इसमें से महातिर मोहम्मद को कुछ समय बाद, मलेशिया की आंतरिक राजनीति के कारण अपना पद छोड़ना पड़ा और इमरान खान की बुद्धि सऊदी अरब ने ठिकाने लगा दी। अब एर्दोगान का एक ही पक्षकार बचा था, ईरान। किंतु यदि तुर्की सऊदी को ड्रोन बेचता है, जो कि लगभग तय है, तो तुर्की और ईरान के संबंध भी बिगड़ जाएंगे।

ऐसा इसलिए क्योंकि सऊदी इसका इस्तेमाल यमन गृहयुद्ध में ईरान समर्थक हूती आतंकियों के खिलाफ करेगा। तुर्की के घातक ड्रोन ईरान के लड़ाकों को मारें तो इससे ईरान तुर्की संबंध प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होंगे। तुर्की की आर्थिक हालत खस्ता है और ऐसे में वह मजबूर है कि वह सऊदी अरब को ड्रोन बेचे। सऊदी दुनिया का सबसे बड़ा हथियार निर्यातक देश है, उसका मुस्लिम जगत पर अच्छा खासा प्रभाव है, ऐसे में यदि सऊदी तुर्की के हथियारों पर भरोसा दिखाता है तो तुर्की उम्मीद कर सकता है कि सऊदी का देखादेखी कई देश ऐसा करेंगे।

तुर्की से ड्रोन खरीदना सऊदी के प्रिंस सलमान का मास्टर स्ट्रोक है। बाइडन प्रशासन के आते ही अमेरिका ने यमन गृहयुद्ध से अपने को लगभग अलग कर लिया। साथ ही सऊदी को हथियारों की आपूर्ति भी रोक दी, जिससे युद्ध में ईरान समर्थक हूतियों का पलड़ा भारी होने लगा था। किंतु तुर्की के ड्रोन युद्ध को पुनः सऊदी के पक्ष में झुका सकते हैं।

वहीं इसका एक अन्य लाभ है। अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन प्रिंस सलमान को सत्ता से बेदखल करना चाहते हैं। इसके लिए उन्होंने पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या के मामले को अपना हथियार बनाया है। खशोगी सऊदी मूल के अमेरिकी नागरिक थे, जिनकी हत्या 2018 में तुर्की में हुई थी। माना जाता है कि यह हत्या सीधे बिन सलमान के इशारे पर हुई थी। बाइडन प्रशासन इसे आधार बनाकर सलमान के विरुद्ध कार्रवाई कर सकता है। लेकिन यह सारा तामझाम तुर्की के समर्थन के बिना बहुत कारगर सिद्ध नहीं हो सकेगा, और ड्रोन डील के लालच में तुर्की सऊदी प्रिंस सलमान को कभी फसने नहीं देगा।

तुर्की की ड्रोन की डील उसके लिए आर्थिक लाभ की भले साबित हो, किंतु यह उसे कूटनीतिक स्तर पर अकेला कर देगी। इसके कारण ईरान से तो उसके संबंध बिगड़ेंगे ही, बाइडन भी तुर्की के खिलाफ हो जाएंगे। इन सबके बाद भी एर्दोगान, सऊदी को ड्रोन देने से मना शायद ही कर सकें, क्योंकि तुर्की की अर्थव्यवस्था की सेहत उन्हें ऐसा नहीं करने देगी।

मुहम्मद बिन सलमान ने एकबार पुनः सिद्ध कर दिया है कि क्यों उन्हें सऊदी का अब तक का सबसे चालाक प्रिंस माना जाता है। सलमान जब से सत्ता के केंद्र में आये हैं, उन्होंने सिर्फ सफलता हासिल की है। चाहे अरब इजराइल सम्बंध को सामान्य करना हो, या ईरान के पंख कुतरने हों, या सऊदी को तेल आधारित अर्थव्यवस्था से निकालकर, ‘Bussiness Hub’ बनाने की योजना हो, उन्होंने हमेशा दुनिया को चौकाया है। लेकिन इस समय उन्हें अपने शासन का सबसे बुरा दौर देखना पड़ रहा है, जब अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन उनके पीछे पड़ गए हैं। इतने के बाद भी सलमान ने हार नहीं मानी है, और अपनी एक ही कूटनीतिक चाल से बिगड़ते हालात को अपने अनुकूल कर लिया है।

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