हाल ही में हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को परेशानियों का सामना करना पड़ा जब अकाली दल के कुछ नेताओं ने चंडीगढ़ विधानसभा के बाहर उन्हें घेर लिया था। चंडीगढ़ में हरियाणा के मुख्यमंत्री के साथ इस तरह का व्यवहार कई अहम सवाल उठाता है। सवाल ये की चंडीगढ़ भी हरियाणा की राजधानी है फिर भी मुख्यमंत्री के साथ ये व्यवहार किस तरह से उचित है? हर साल करोड़ो रुपये हरियाणा चंडीगढ़ के विकास के लिए खर्च करता है फिर भी यहाँ पंजाबियों का प्रभाव रहा है और हरियाणा चाहकर भी यहाँ कभी वो हक नहीं जता पाता। अब हरियाणा को चंडीगढ़ से ऊपर उठकर अपनी एक नयी राजधानी बनाने की आवश्यकता है जो राज्य की नयी पहचान बन सके।
वक़्त आ चुका है कि अब हरियाणा को नई राजधानी मिले और इसके कई कारण हैं। सबसे पहले तो चंडीगढ़ और दक्षिण हरियाणा के बीच काफी दूरी है, जिससे कि वहाँ के लोगों को सरकारी कामकाज के लिए बहुत कष्ट उठाना पड़ता है। राजधानी हमेशा राज्य के बीच में होनी चाहिए ताकि राज्य के हर एक क्षेत्र में रहने वाले लोगों को राजधानी मे होने वाले काम के लिए सहूलियत हो।
दूसरी वजह यह है कि, चंडीगढ़ हरियाणा से ज्यादा पंजाबियों का है, चाहे इसकी भाषा हो, त्योहार हो या राजनीतिक दबदबा ही क्यों न हो।
यही नहीं, चंडीगढ़ प्रशासन के अंदर 60 प्रतिशत अफसरों की नियुक्ति पंजाब सरकार ही करती है, बाकी 40 प्रतिशत अफसर हरियाणा सरकार द्वारा नियुक्त किए जाते है। चंडीगढ़ का प्रशासक पंजाब के गवर्नर को ही बनाया जाता है। यह पंजाब और हरियाणा के बीच असमानता का बहुत बड़ा कारण हैं। चंडीगढ़ प्रशासन के अंदर हरियाणा के नौकरशाहों को बहुत कठिनाई और अनादर झेलना पड़ता है, जिसका सबसे बड़ा प्रमाण है चंडीगढ़ का विधानसभा जिसमे हरियाणा ने अपने लिए थोड़ी और जगह की मांग की थी और उसको पंजाब सरकार ने सिरे से नकार दिया और कहा कि हम एक इंच जमीन भी हरियाणा को नहीं देंगे।
इसके अलावा पंजाब और हरियाणा के बीच सतलेज यमुना लिंक कनाल को लेकर लड़ाई अभी भी कानूनी पेंच में फंसी हुई है। इससे यह बात साफ समझ में आती है कि चंडीगढ़ को लेकर हरियाणा के साथ कितना भेदभाव किया जाता है। हुमेशा यहाँ पंजाब का ही अपर हैंड रहता है।
तीसरी वजह – हरियाणा हर वर्ष लाखो करोड़ चंडीगढ़ के सौंदर्यीकरण के लिए खर्च करता है और उसके बावजूद हरियाणा के मुख्यमंत्री को उनके विधानसभा के सामने घेर लिया जाता है। चंडीगढ़ की सौंदर्यीकरण का पैसा हरियाणा के टैक्स देने वालों की वजह से होता हैं, लेकिन जब हरियाणा की जनता को चंडीगढ़ की सुविधाओं का लुत्फ उठाने का मौका आता है, पंजाब की जनता हमेशा ठेंगा दिखा देती है।
अब सवाल आता है कि अगर हरियाणा की राजधानी चंडीगढ़ नहीं तो और क्या विकल्प हैं ? बात यह है कि अब हरियाणा 1966 वाला हरियाणा नहीं रहा, आज का हरियाणा भारत के सबसे प्रगतिशील राज्यों में से एक है और अब हरियाणा राज्य में कई ऐसे शहर और नगर हैं जिनको राजधानी बनाया जा सकता है जैसे कि सोनीपत, पानीपत , करनाल ,पंचुकला। गुरुग्राम को राजधानी की सूची में इस वजह से नहीं रखा गया है क्योंकि गुरुग्राम बेहद महंगा शहर है जो हरियाणा की आम जनता के लिए किफ़ायती नहीं होगा।
जब हरियाणा और पंजाब का विभाजन हुआ था तब हरियाणवी बोलने वाले लोगों को हरियाणा दिया गया और पंजाबी बोलने लोगों को पंजाब दिया गया, लेकिन बात चंडीगढ़ पर जा अटकी और इसी कारण चंडीगढ़ को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया। मूल रूप से चंडीगढ़ पर हक़ ज्यादा हरियाणा का ही है, तभी इन्दिरा गांधी ने उस समय के हरियाणा के मुख्यमंत्री बंसी लाल को वादा किया था कि आने वाले भविष्य में हरियाणा को सौंप दिया जाएगा।
अब वक़्त आ चुका है कि हरियाणा को नई राजधानी मिले जिससे वो अपने राज्य में विकास आसानी से कर पाए। ऐसी राजधानी जिस में हरियाणवी की बात सुनी जाए, उनके मुद्दों पर गंभीर विचार किया जाए। और सबसे ज़रूरी बात कि हर राज्य की अपनी राजधानी होनी चाहिए जिससे वो आगे बढ़े और निरंतर प्रगति करे अथवा उस राज्य की संस्कृति को दर्शाए।