शिकागो सिटी काउंसिल ने CAA और मानवाधिकारों पर भारत विरोधी प्रस्ताव किया ख़ारिज

अमेरिका में रह रहे भारतीयों ने एक बार फिर से अपने देश की गरिमा को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाई है। हालांकि, इस बार कोई भारतीय NASA में वैज्ञानिक नहीं बना और न कोई भारतीय अमेरिका के सिलिकॉन वैली कंपनी में CEO का पद संभाला है। इस बार भारत को अमेरिका में राजनयिक जीत हासिल हुई है। दरअसल, बात यह है कि अमेरिका के शिकागो शहर के परिषद में भारत के खिलाफ, CAA कानूनों के विरुद्ध प्रस्ताव पारित किया जाना था, लेकिन प्रवासी भारतीयों के प्रयास के बाद प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया गया है।

न्यूयॉर्क के बाद शिकागो सिटी काउंसिल अमेरिका के सबसे शक्तिशाली नगर परिषदों में से एक है, जहां नागरिकता (संशोधन) अधिनियम मुद्दे पर भारत की आलोचना की गई थी। इस प्रस्ताव को 18 के मुकाबले 26 मतों से खारिज कर दिया गया। प्रस्ताव को 26-18 वोट से खारिज किया गया है। बुधवार को शिकागो की महापौर लोरी लाइटफुट ने पत्रकारों से कहा, ‘परिषद के कई सदस्य प्रस्ताव का समर्थन करने में असहज महसूस कर रहे थे, क्योंकि हमें CAA क़ानूनों के बारे में ज़मीनी हक़ीक़त नहीं पता।” लाइटफुट ने आगे कहा, “शिकागो परिषद में प्रस्ताव न पारित होने के पीछे का कारण यह भी है कि हमें कानून को लेकर पूरी जानकारी नहीं है और हमारे पास अपने शहर की निजी समस्या बहुत है, हमें उस पर ध्यान केन्द्रित करना चाहते है।”

शिकागो परिषद के एक सदस्य Alderman George A Cardenas ने कहा कि जब परिषद में भारत की बात हो सकती है तो चीन में रह रहे Uighur मुस्लिमनों के मानोधिकर के बारे में क्यों बात नहीं कर सकते? Cardenas ने यह भी कहा कि “दुनीया में कई जगह बहुत कुछ हो रहा है लेकिन उसके खिलाफ कोई क्यों नहीं आवाज़ उठाता। इज़रायल-फिलिस्तीन मुद्दे पर कोई कुछ नहीं बोलता और इसके साथ ही बोको हराम द्वारा नाइज़ीरिया में महिलाओं पर हो रहे उत्पीड़न के ऊपर हम क्यों चुप है”

वास्तव में यह जीत भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि शिकागो शहर परिषद से पहले अमेरिका के छह अलग-अलग शहरों में ऐसे प्रस्ताव पारित हो चुके हैं। आरोप है कि अमेरिका के भारत विरोधी गुट और इस्लामिक संगठनों  जैसे Council on American Islamic relations के इशारे पर परिषद की एक सदस्य, Alderman Maria Hadden ने भारत के खिलाफ इस प्रस्ताव को पेश किया था। इस प्रस्ताव में भारत के संशोधित नागरिकता कानून (CAA) एवं मानवाधिकार के मुद्दे पर आलोचना की गई थी।

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प्रस्ताव के पीछे Council on American Islamic relations का सबसे बड़ा भूमिका माना जा रहा। बता दें कि, इस संगठन का हाथ आतंकी संगठनों से जुड़ा हुआ है। कई रिपोर्टस के अनुसार इस संगठन का हमास और Muslim Brotherhood जैसे समूहों से सीधा कनेक्शन रहा है। Council on American Islamic relations UAE में पूर्ण रूप से प्रतिबंधित भी है।

भारत विरोधी इस प्रस्ताव को खारिज करने में सबसे बड़ा सहयोग, शिकागो स्थित प्रख्यात भारतीय-अमेरिकी डॉ भरत बरई का बताया जा रहा है। बताया जा रहा है कि, डॉ बरई ने कई भारतीय-अमेरिकियों के साथ मिलकर CAA विरोधी प्रस्ताव के खिलाफ अभियान चलाया था। डॉ बरई ने प्रधानमंत्री मोदी की मेडिसन स्क्वायर में हुए कार्यक्रम को सफ़ल बनाने में मुख्य भूमिका निभाई थी। इसके साथ ही उन्होंने Council on American Islamic relations की भूमिका पर जांच बैठाने की मांग भी की है।

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जब कोई निरंतर तरक्की की ओर बढ़ता है तो उसे नीचा दिखाने वाले लोगों की कोई कमी नहीं होती है और भारत के साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। जब से नरेंद्र मोदी की सरकार दिल्ली में बैठी है भारत विरोधी आवाज़ें और तेज़ हो गई हैं, लेकिन इतनी कोशिशों के बावजूद भी वो अपने मंसूबों में कामयाब होते नहीं दिख रहे। आप चाहे खालिस्तानी संगठन Sikhs For Justice की बातें करे या इस्लामिक संगठन Council on American Islamic relations, इनकी कोशिशें हर बार असफल रही हैं। ऐसे कई और संगठन विदेशों में बैठकर भारत को कमजोर करने की कोशिशों में लगे रहते हैं। ऐसे में जिस तरह से भारत के बाहर बैठे भारतीय इसके खिलाफ एकजुट हुए हैं वो सराहनीय है।

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